भोपाल। राजा भोज की नगरी भोपाल में 250 से अधिक मकान जर्जर हैं. ऐसा नहीं है कि नगर निगम फिक्रमंद नहीं है. उसने अपने काम की इति बखूबी की है. नोटिस थमा कर. वो इसलिए ताकि भविष्य में अगर कोई हादसा हो तो नोटिस दिखाकर पल्ला झाड़ लिया जाए. नियमतः निगम को नोटिस के बाद ऐसे भवन तोड़ने चाहिए. लेकिन पिछले कुछ सालों में ऐसा हुआ नही है. शहर में जर्जर मकानों की स्थिति देखना और उन्हें नोटिस जारी करके तोड़ने की जिम्मेदारी निगम की भवन अनुज्ञा शाखा और सिविल शाखा की है. लेकिन यहां पर शाखा कुछ कर नहीं रही है. इतना जरूर है कि भयप्रद मकान बता कर नोटिस जारी कर काम की खानापूर्ति कर दी जाती है. गुरुवार को ईटीवी भारत की टीम ऐशबाग जनता क्वार्टर आवासीय कॉलोनी पहुंची और पड़ताल की तो पाया कि निगम नियमों और कानून की दुहाई दे अपना पिंड छुड़ा रहा है. यहां ये बताना जरूरी है कि ये वही ऐशबाग है जो अपने हॉकी स्टेडियम के लिए विख्यात है और इसके इर्द गिर्द ही 600 जनता क्वार्टर हैं जो कि 35 साल पहले हाउसिंग बोर्ड ने बनाए थे.
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देते हैं टैक्स, पर सुविधा का नहीं है अता पता (TAX)
लोगों से बात की तो पता चला कि 2016 के बाद नगर निगम लगातार हर बारिश में भयप्रद मकान को नोटिस भेजती है. जिसमें स्पष्ट होता है कि 3 दिन के अंदर या निगम की दी गई सीमा के अंदर मकान में मेंटेनेंस का काम करवा लिया जाए. लेकिन बारिश के बाद बाकी के 9 महीने कोई पुरसाहाल लेने नहीं आता. साफ-सफाई कैसी है, मूलभूत सुविधाओं का क्या हाल है, स्ट्रीट लाइट हैं तो क्या काम करती हैं? इसको लेकर कुछ नहीं किया जाता वो भी तब जब जलकर, प्रॉपर्टी टैक्स के नाम पर अच्छा खासा टैक्स वसूला जाता है. यहां रहने वाले बताते हैं कि मकान का कुल टैक्स लगभग 250 रुपए है लेकिन वसूले जाते हैं 2000 हजार रुपए फिर भी लोगों के हाथ मायूसी ही आती है. लोग नगर निगम गए तो जवाब मिला कि यह कॉलोनी मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड ने बनाई थी और नगर निगम भोपाल को ट्रांसफर कर दी गई है.
निगम की जुबानी मजबूरी की कहानी
ईटीवी ने जब भोपाल नगर निगम कमिश्नर केवीएस चौधरी से बात की तो उन्होंने वही कहा जो अपेक्षित था. यानी आंकड़ों की जुबानी मजबूरी की कहानी बयां कर दी.उन्होंने बताया कि शहर में 100 से अधिक मकान और अपार्टमेंट को निगम ने चिन्हित किया है जो कि जर्जर या ज्यादा जर्जर हालत में हैं. कोरोना काल के चलते और हाईकोर्ट के निर्देशानुसार अभी कोई कार्रवाई नहीं कर सकते थे. लेकिन अब आने वाले समय में इन मकानों पर कार्रवाई होगी और इन पर कार्रवाई के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए गए है.
10 साल से सिर्फ नोटिस ही तो मिली है
अधिकारी और साहब तो अपनी बात, अपनी सुविधानुसार रखते हैं लेकिन जनता क्वार्टर में रहने वाले अजहर की सुनें तो इनकी तकलीफों का एहसास हो जाता है. वो बताते हैं नोटिस का सिलसिला 10 साल से बदस्तूर जारी है लेकिन निगम की ओर से सहायता की आस टूट गई है. निगम के नोटिस में यह लिखा रहता है कि या तो आप काम करवा ले या नगर निगम इस काम को करवा कर आपसे पैसे वसूल करेगा लकिन ऐसा आज तक तो नहीं हुआ. लोगों ने ये भी जानकारी दी कि 2016 से जनता क्वार्टर में रहने वाले लोगों को लगातार इस तरह के नोटिस आ रहे हैं लेकिन बरसात के बाद वो भी थम जाता है.
नियमों का भंवरजाल कहीं न छीन ले छत
लोग थोड़े सहमे भी हैं. उन्हें बेघर होने का डर भी सता रहा है. वो भी उन लोगों को जिनके कागज पक्के नहीं हैं. मकान अगर टूटे तो लोग नियमों के भंवरजाल में फंस कर रह जाएंगे. दरअसल, कागजों पर 600 में से केवल 56 मकान मालिकों की ही रजिस्ट्री हुई है. बाकी लोगों ने लॉटरी के आधार पर लिखा-पढ़ी कर मकान लिया है. ऐसे में अगर यह मकान टूट कर फिर से बनाए जाते हैं तो केवल उन 56 लोगों का ही दावा स्वीकार होगा जिनके नाम पर रजिस्ट्री है. जिन लोगों ने विक्रय अनुबंध पत्र के आधार पर इन मकानों का क्रय विक्रय किया है उनका दावा खारिज हो जाएगा. इन घरों में रहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कही याद दिलाते हैं. पीएम आवास योजना का जिक्र करते हैं जिसमें 2022 तक सबको मकान दिलाने की योजना है. अजहर कहते हैं- घरों को तोड़ कर जो लोगों को बसाने की बात कही जा रही है वो दरअसल 600 घरों में रहने वाले लगभग 3800 लोगों को बेसहारा करने की तरफ बढ़ाया गया कदम है. नियमों के सहारे निगम हमारी छत छीनने वाला है.