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MP Politics Gossips: चुनावी साल में इवेंट में कितने हो रहे खर्च, किसके खाते से जाएगा पैसा...जानें सियासी गलियारों में जुबानी हल-चल - madhya pradesh news in hindi

इस हफ्ते 'अंदर की लाएं हैं' में आप पढ़ेंगे कि चुनावी साल में राजनीतिक पार्टियों की आपस में खट-पट, साम-दाम-दंड-भेद का जोर लगाते राजनेता और फिसलती जुबान और बिगड़ते बोल से सियासत में आता भूचाल.

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एमपी राजनीतिक गपशप

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Published : Apr 9, 2023, 1:28 PM IST

भोपाल।अब एमपी का गजब सीन और इवेंट में किसकी बजेगी बीन... किसके खाते का रुपया किन पर किया जाएगा खर्च, क्या वोट मिलेगें पार्टियों को वोट... फिसलती जुबान बिगड़े बोल, कहां तक और क्या-क्या दिखाएा चुनाव का पारा. 2023 के चुनाव कौन गद्दार के जुमले पर घेरा जाएगा, किसने की थी शुरुआत और कौन अंजाम तक ले जाएगा... जानेंगे सब कुछ यहां, पढ़िए अंदर की लाएं हैं-

एमपी राजनीतिक गपशप

किसके खाते से इवेंट पर करोड़ों न्यौछावर:इसमें दो राय नहीं कि इवेंट मैनेजमेंट में शिवराज सरकार का कोई जवाब नहीं. मुसीबत को भी मौके में बदलने का हुनर कहां सबको आता है. खैर यहां मामला इलेक्शन इयर में इवेंट का है. चुनावी साल में एंटी इन्कमबेंसी से घबराई सरकार हर हाथ को थाम रही है कि क्या पता कहां से बिगड़ा गणित संभल जाए. किसी को मत छोड़ो के अंदाज में बढ़ रहे शिवराज सेफर साइड लाड़ली बहना का दांव खेल चुके हैं, लेकिन यहां मामला तो गजब ही हो गया है. सुना ये है कि ग्वालियर में भव्य तरीके से बाबा साहेब अम्बेडकर की जयंती मनाने जा रही, शिवराज सरकार पैसा पानी की तरह बहा रही है. सुना ये है कि ग्वालियर चंबल के 8 जिलों से बसों के जरिए 1 लाख से ज्यादा लोगों का जमावड़ा किए जाने की तैयारी है, लेकिन मुद्दे की बात अब सुनिए लोगों को भरकर जो बसें आएंगी अकेले उनके किराए पर ही 6 करोड़ 18 लाख रुपए खर्च का अनुमान लगाया गया है. ये जो रकम है अनुसूचित जाति कल्याण विभाग से मांगी गई है. अब बाकी का खर्चा कितना बैठेगा अंदाजा लगा लीजिए. लेकिन गजब ये है कि अनुसूचित जाति कल्याण विभाग से जो ये पैसा जाएगा तो जाहिर है विभाग का खजाना कम होगा और असर सीधा इस विभाग की योजनाओं पर आएगा. यानि जितने की रसोई नहीं बनीं उतने का तेल जल गया वाला किस्सा हो गया ये तो. वोट बैंक तक पकड़ कितनी मजबूत होगी ये तो बाद की बात है, पहले तो देखिए उसी वर्ग पर खर्च होने वाली रकम कितनी चली गई.

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चुनाव तक संभल पाएगी क्या जुबान:याद कीजिए 2020 का उपचुनाव, जिसमें भाषा का स्तर औंधे मूंह गिरा था, तो क्या 2023 भी 2020 का रीमेक होगा. सियासी गलियारों में ये सवाल पिछले दो चार दिन से जरा तेजी पकड़ रहा है. वजह ये है कि अभी चुनावी पारा उस तरीके से बढ़ा भी नहीं लेकिन भाषा के स्तर में तेजी से गिराव देखा जा रहा है. सीएम शिवराज ने पूर्व सीएम कमलनाथ से जो सवालों का सिलसिला शुरु किया था. तब माना जा रहा था कि माहौल बनाया जा रहा है, लेकिन चुनावी गर्मी तो चुनाव के छ: महीने पहले ही पकड़ा गई जब सीएम शिवराज और कमलनाथ के बीच भाषा का स्तर गिरा. सीएम शिवराज ने कमलनाथ को पागल कह दिया और पलटवार में कमलनाथ ने भी उन्हें गुड़ों की भाषा का इस्तेमाल करने वाले बोल दिए. अब सियासी हल्कों में ये चर्चा उठ रही है कि ये नुराकुश्ती है या वाकई पारा चढ़ा हुआ है. अगर वाकई चुनावी गर्मी बढ़ गई है तो सोचिए कि साल के आखिर में होने वाले चुनाव के दौरान तक बयानों की गर्मी के माहौल में क्या असर दिखाएगी.

कहां तक जाएगा ये गद्दार एपीसोड:गद्दार एपीसोड की हवाएं दिल्ली से उठी थी और जिस तरह से एमपी में उसे लपका गया है लगता है कि ये मामला चुनाव आते-आते तक सिंधिया जी के गले की फांस न बन जाए. असल में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बाकायदा प्रेस कान्फ्रेंस कर कांग्रेस पर हमला बोला था. इस दौरान उन्होंने कांग्रेस को गद्दार कह दिया, अब कांग्रेस ने इस पूरे एपीसोड को वो रंग दिया कि जैसे सिंधिया बर्रये के छत्ते में हाथ दे दिया हो. पहले तो जयराम रमेश झांसी की रानी का इतिहास निकाल लाए फिर दिग्विजय सिंह ने जूनियर सिंधिया के कांग्रेस में हुई तरक्की की तस्वीरें पेश कर दीं और पूछ लिया कि बताइए सिंधिया जी गद्दार कैसे न कहा जाए. सुना ये है कि कांग्रेस इस चुनाव में सिंधिया को गद्दार पर ही टारगेट करने की पूरी प्लानिंग कर चुकी है. बावजूद इसके की 2020 में ये वाला प्लान कुछ खास काम नहीं कर पाया. कांग्रेस इस मामले को इस तरह बढ़ा रही है कि शुरु आपने किया सिंधिया जी खत्म हम करेंगे. देखिए अब आगे-आगे होता है क्या.

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