भोपाल।आपको याद होगा कांग्रेस में सबको साधने सबको संभालने कमलनाथ ने थोक के भाव में नियुक्तियां दी थी. आलम ये था बीजेपी तंज में कहा करती थी कि, कांग्रेस के कार्यकर्ता अपने हाथ में सील ठप्पा और लेटर हेड लेकर चलते हैं. यहां जो पद मुफीद लगा लिया. इसे कहा जा रहा था कि, कोई कार्यकर्ता नाराज ना हो इसके लिए जमावट की जा रही है. अब सवाल ये उठ रहा है कि, क्या उसी का सिक्वल अब शिवराज सरकार में दिखाई दे रहा है?
देर है अंधेर नहीं:पिछले कुछ दिनो का आंकड़ा निकाला जाए तो सरकार में थोक के भाव से कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री का दर्जा दिल खोलकर बांटा गया. प्राधिकरण के अध्यक्ष बनाए गए हैं. इससे क्या रणनीति यह है कि, कैबिनेट और राज्य मंत्री बूथ स्तर तक पार्टी में कार्यकर्ताओं को ये संदेश पहुंचा दें कि बीजेपी में देर है अंधेर नहीं.
मौका देख मारा चौका:हांलाकि जिन्हें ये पद बांटे जा रहे हैं उनकी पार्टी के लोग बखिया उधेड़ने से नहीं चूक रहे हैं. रतलाम विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बनाए गए अशोक पोरवाल का मामला एकदम ताजा है. इनका एक कथित ऑडियो रतलाम में चर्चा का विषय बना हुआ है. खुद प्राधिकरण अध्यक्ष इसे सियासी साजिश बता रहे हैं, लेकिन हिसाब बराबर करने वालों की काबिलियत देखिए कि ऑडियो निकाय चुनाव के दौरान का है और मौके से चौके के अंदाज में इसे फिर से वायरल कर दिया.
पार्टी में बुनियादी फर्क:कांग्रेस और बीजेपी में बुनियादी फर्क यही है कि, बीजेपी में कई स्तर पर सूचियां बनती है. फिर स्क्रूटनी होती है. फिर भोपाल से लेकर दिल्ली तक कई चरणों में पड़ताल की जाती है. फिर कई दौर की बैठकों के बाद फाइनली वो सूची बाहर आती है. इसमें उम्मीदवार का नाम होता है. कांग्रेस में रेफरेंस लगता है. किसके कितने नाम इस अंदाज में सूची बढ़ती है.