भोपाल।मध्यप्रदेश में चुनावी साल में राजनीतिक दलों का फोकस एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग पर है. बीजेपी और कांग्रेस ने अपना चुनावी प्लान इनको साधने के लिए बना लिया है. दोनों दलों ने जमीनी स्तर पर काम भी शुरू कर दिया है. कांग्रेस अनुसूचित जनजाति विभाग का सम्मेलन करने जा रही है, जिसमें पूर्व सीएम कमलनाथ सियासी जातिगत प्लान तैयार कर रहे हैं. कांग्रेस को लगता है कि एसटी को अपने तरफ मोड़ लिया तो जीत की संभावना बढ़ जाएगी. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी भी लगातार इन वर्गों को साथ जुटाने के लिए मैदान में है. बीजेपी फरवरी से विधानसभावार अनुसूचित जाति वर्ग के सम्मेलन करने जा रही है और खासतौर से बूथ लेवल तक ये कार्यक्रम किए जाएंगे.
आदिवासी वोटर्स की अहम भूमिका :मध्यप्रदेश में आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए प्रदेश की दोनो सियासी पार्टियां अपने अपने दांव खेलती रही हैं. लोकसभा में आदिवासियों के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. वहीं विधानसभा की 90 सीटों पर आदिवासियों का वोट बैंक खासा प्रभाव डालता है. केंद्रीय नेतृत्व ने आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर आदिवासियों के वोट बैंक में सेंधमारी है, जिसके नतीजे गुजरात में देखने को मिले. जहां पर आदिवासियों ने बीजेपी को जमकर वोट दिया. केंद्र ने देश की 60 लोकसभा सीटों पर अपनी पकड़ बनाने के लिए ये मास्टर स्ट्रोक खेला है.
राहुल गांधी की यात्रा ने कांग्रेस में फूंकी जान :राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का असर ये रहा कि पार्टी नेताओं में जोश देखने को मिलने लगा है. यात्रा को उन क्षेत्रों से गुजारा गया है जहां पर कांग्रेस का वोट बैंक मजबूत था. एमपी में मालवा बेल्ट को इसलिए चुना गया क्योंकि ये संघ का गढ़ है और यहां कांग्रेस को वोट बैंक के लिहाज से फायदा हुआ था. वहीं बीजेपी ने राहुल की यात्रा का काट निकलने के लिए 2023 चुनावों के पहले जनजातीय इलाकों में रथयात्रा निकालने का प्लान बनाया है. रथयात्रा में टंट्या मामा बलिदान दिवस पर कार्यक्रम आयोजित कर आदिवासी वोटबैंक को रिझाने की भरपूर कोशिश की. रथयात्रा कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा की काट मानी जा रही है. राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश में 12 दिन यात्रा की जिसमे विधानसभा और लोकसभा सीटों पर फोकस किया.