भोपाल।मध्यप्रदेश में करीबन 70 साल बाद लाए गए चीतों के बाद अब जंगली बिल्ली कैरकल कैट्स को लेकर भी वन विभाग सक्रिय हो गया है. चीतों की तरह कैरकल भी मध्यप्रदेश के जंगलों से विलुप्त हो गई हैं. पिछले करीबन 20 सालों से इसे मध्यप्रदेश के जंगलों में नहीं देखा गया है. अब यह जंगली बिल्ली महज तस्वीरों में ही दिखाई देती है. वन विभाग इस नुकीले कानों वाली जंगली बिल्ली कैरकल को प्रदेश के जंगलों में बसाने का विचार कर रहा है. इसके लिए ग्वालियर और बांधवगढ़ मूफीद हो सकते हैं.
वन विभाग करा चुका सर्वे:मध्यप्रदेश के जंगलों में कैराकल की मौजूदगी को लेकर जैवविविधता बोर्ड ने उज्जैन और ग्वालियर क्षेत्र के जंगलों में करीबन 10 साल पहले सर्वे कराया था. लेकिन सर्वे में वनकर्मियों को ऐसी एक भी कैरकल दिखाई नहीं दी. वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पिछले करीबन 20 सालों में टाइगर सर्वे के दौरान भी कैराकल जंगलों में दिखाई नहीं दी. हालांकि ग्वालियर और उज्जैन में कुछ ग्रामीणों ने ऐसी बिल्ली दिखाई देने के दावे किए थे. लेकिन सर्वे के दौरान बिल्ली के नहीं मिलने पर यह माना गया कि ग्रामीण जंगली बिल्ली को ही कैरकल समझ बैठे होंगे. क्योंकि दोनों कुछ हद तक एक जैसी ही दिखाई देती हैं.
आखिर क्यों खत्म हो गई कैरकल:रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी सुदेश बाघमारे कहते है कि कैरकल को वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत शेड्यूल 1 में रखा गया है. मतलब कैरकल विलुप्त होने की कगार पर है. जबकि मध्यप्रदेश उन राज्यों में शामिल था. जहां यह पाई जाती थी. मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान, महाराष्ट्र के जंगलों में पाई जाती थी. वैसे कैरकल एकदम हरे-भरे जंगलों में रहना पसंद नहीं करती.