मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं.चुनाव प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ रहीं हैं. फिलहाल दोनों ही पार्टियों में कांटे का मुकाबला देखा जा रहा है.बाजी किसके हाथ लगेगी यह तो मतगणना के बाद ही तय होगा लेकिन इतना तो तय है कि इस बार का चुनाव जहां कई मायनों में खास है वहीं दोनों ही पार्टियों की साख दांव पर लगी है. खैर, ऊंट किस करवट बैठेगा इसके लिए तो फिलहाल इंतजार करना होगा लेकिन बीजेपी को इस बार भी कांग्रेस से मिल रही कड़ी टक्कर ने पिछले विधानसभा चुनाव की याद ताजा कर दी है. चलिए नई सरकार बनने में तो अभी समय है तब तक आपको पिछले विधानसभा चुनाव यानि 2018 के फ्लैशबैक में लिए चलते हैं और बताते हैं कि किन मायनों में यह चुनाव खास रहा था.
2018 के नतीजे: पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में 11 दिसंबर वह तारीख थी जिसे भूला नहीं जा सकता कारण इस दिन मतगणना हो रही थी और एक-एक कर जैसे जैसे रिजल्ट आ रहे थे दोनों ही पार्टियों के दिग्गजों की निगाहें नतीजों पर लगीं थीं. एक ओर शिवराज की धड़कन बढ़ रही थी तो दूसरी ओर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को अंतिम नतीजे का इंतजार था. देर रात जब क्रिकेट की तरह नतीजे फाइनल हुए तो बीजेपी की सांस अटक गई. वोटों की गिनती खत्म हो चुकी थी. चुनाव आयोग ने फाइनल नतीजे घोषित कर दिए. बीजेपी 165 से लुढ़कर 109 सीटों पर आकर सिमट गई और कांग्रेस की सीटें 58 से 114 हो गई. कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. हालांकि बहुमत का आंकड़ा 116 नहीं छू पाई.
15 साल का वनवास खत्म: 2003 के बाद 2018 यानि पूरे 15 साल के वनवास के बाद कांग्रेस की सरकार बनने की उम्मीद जाग गई थी. इस चुनाव में बसपा ने 2 और सपा ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी तो वहीं निर्दलियों ने भी 4 सीटें जीतीं थीं. ऐसे में कांग्रेस को सरकार बनाने में ज्यादा मुश्किल नहीं थी. एमपी में अब सरकार बनाने में बसपा, सपा और निर्दलीयों की भूमिका अहम हो गई थी. कांग्रेस का वोट प्रतिशत पिछले चुनाव से करीब आठ फीसदी बढ़ा. उसे 40.89% प्रतिशत वोट मिले जबकि बीजेपी को 41.02% वोट मिले. भले ही बीजेपी का वोट प्रतिशत ज्यादा था लेकिन कांग्रेस ने बसपा,सपा और निर्दलीयों के साथ मिलकर सरकार बना ली और कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए.
ग्राफिक्स के जरिेए 2018 के नतीजों पर एक नजर:
15 महीने बाद क्या हुआ:15 साल बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी. कार्यकर्ताओं में जोश था.हर तरफ कांग्रेस का झंडा लहरा रहा था लेकिन इधर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच तकरार बढ़ती जा रही थी उधर कांग्रेस की सरकार गिराने के लिए पटकथा लिखी जा रही थी. दिसंबर 2018 से मार्च 2020 तक ही कांग्रेस की सरकार चल सकी. 2 से 3 मार्च की रात अचानक एमपी के कई विधायक गुरुग्राम के एक होटल में पहुंचे. इन विधायकों में बसपा के संजीव सिंह कुशवाह और रामबाई, सपा के विधायक राजेश शुक्ला,कांग्रेस के हरदीप सिंह, बिसाहूलाल सिंह और निर्दलीय सुरेंद्र सिंह शेरा समेत कई विधायक शामिल थे. यहीं भाजपा के नरोत्तम मिश्रा, रामपाल सिंह और अरविंद भदौरिया भी पहुंचे. 15 महीने बाद ही कांग्रेस की सरकार गिर गई और कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा.
मामला सुलझाने की कोशिश: विधायकों के एक साथ पहुंचने की जानकारी लगने पर जीतू पटवारी और जयवर्धन सिंह बागी विधायकों को मनाने पहुंचे. कुछ घंटों के ड्रामे के बाद रामबाई समेत कांग्रेस के तीन विधायकों को लेकर वापस लौट आए इधर कुछ बागी विधायक बेंगलुरु चले गए.
ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से बगावत:अब सियासी ड्रामे का असली खेल शुरू हुआ. 5 मार्च के बाद बेंगलुरु में बागी विधायकों की संख्या 22 तक पहुंच गई. इसके बाद 10 मार्च 2020 को कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया नरेन्द्र मोदी और अमित शाह से मिलने दिल्ली पहुंच गए. इस मुलाकात के बाद अगले दिन 11 मार्च को उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर ली.