भोपाल। देश में दो ही संगठन हैं, जिनका न तो फर्म एंड सोसायटी में पंजीयन है और न किसी सहकारिता समिति में ही इनका रजिस्ट्रेशन है. पहला है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जिसकी स्थापना 1925 में हुई और दूसरा है एमपी का जयस यानी आदिवासी युवा शक्ति, जिसकी स्थापना 16 मई 2013 में की गई थी. दोनों ने ही बिना पंजीयन के काम करते हैं और खुद चुनाव नहीं लड़कर दूसरे प्रत्याशी को समर्थन देते हैं. वर्ष 2018 में भाजपा की 15 साल पुरानी सरकार को बदलने का श्रेय इन्हीं को जाता है, बेकडोर से कांग्रेस को समर्थन दिया और कांग्रेस ने आदिवासी बाहुल्य वाली अधिकतम सीटें जीतकर सरकार बना ली. कमाल की बात यह है कि बिना किसी पंजीयन के यह संगठन पूरे मप्र में भारी भरकम तरीके से पापुलर है और इसका असर भी देखा जा रहा है.
निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतारेगा जयस:इस विधानसभा चुनाव में इस संगठन का भारी असर देखने को मिल रहा है, जब भाजपा ने अपनी पहली सूची जारी की तो उसमें 14 नए नामों को टिकट दिए. इससे बौखलाएं दावेदारों ने पहले बीजेपी के बड़े नेताओं से टिकट बदलने की गुहार लगाई और जब नहीं बदले गए तो फिर जयस के साथ चर्चा शुरू कर दी. सूत्रों से पता चला है कि चाचौड़ा, सोनकच्छ और निमाड़ की दो दूसरी सीटों से बीजेपी के बागी निर्दलीय की तैयारी कर रहे हैं और वे जयस के सपोर्ट से चुनाव कैंपेन चलाएंगे. इस बात की पुष्टि करने के लिए जयस के प्रदेश संयोजक डॉ. अभय ओहरी से बात की तो उन्होंने कहा कि "यह सही है कि हम निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतारेंगे. हमने जयस संगठन को केवल आदिवासियों तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि दलित और पिछ़ड़ाें को भी इसमें जोड़ लिया है." बातचीत में उन्होंने बताया कि वे खुद कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.