भोपाल।"हम तो पूरे राजनीतिक प्रणाली का ट्रेंड बदलना चाहते हैं, सरकार के रवैयों में लोकतांत्रिकता है ही नहीं, जनता का तत्काल फायदा लेते हैं. आज मैं नाराज हूं तो आपको चुन लूंगा और कल से उनसे नाराज हुआ तो फिर वापस उसी दल में, राजनीतिक दल की भी शैली है. जनता भी ऊब चुकी है, वादे पर वादे करते जाना और उन्हें पूरा नहीं करना. यह कहना है कि एमपी में नई उभरत अनरजिस्टर्ड पार्टी के प्रमुख अभय जैन का, जो कि संघ के पूर्व प्रचारक रहे हैं. अभय जैन ने कहा कि हमने अपनी नई पार्टी का नाम जनहित पार्टी रखा है, इसका मुख्य मुद्दा शासकीय दफ्तरों के कार्य की प्रणाली, जनता के प्रति जो रवैया है वो पारदर्शी करना है.
मुद्दों को बेहतर ढंग से हल करने के लिए पार्टी का गठनअभय जैन ने बताया कि "हम 15 साल से जन आंदोलन कर रहे हैं, सड़क पर आंदोलन करते हैं. जेल भी जाते हैं और मीडिया में भी जाते हैं, हमको लगा कि ज्यादा बेहतर तरीके से राजनीति की जो प्रणाली है, उसमें शायद जनता के मुद्दे बेहतर ढंग से हल कर पाएंगे. इसलिए 4 जून को हमने चर्चा करके निर्णय लिया." जब उनसे पूछा कि संघ में कितने समय काम किया तो बोले कि प्रचारक के रूप में 1986 से 2007 तक काम किया है, इसके बाद हमने एक साल तक भारत की यात्रा की है. अलग-अलग राज्यों में जो हमारे संघ के साथी मित्र थे, पुराने सब उनसे बात की. हमने उनसे कहा कि आपके राज्य में, गांव में, घरों में हमें आपकी जिंदगी समझने अनुभव करने का मौका दो. केरल से अरुणाचल प्रदेश तक 9 से 10 महीने तक घूमे, अचानक आंदोलन की नौबत आ गई. एक दंगे में हिंदुओं के ऊपर झूठे मामले दर्ज हो गए थे तो हमने उन्हें बचाने के लिए आंदोलन शुरू किया, मुझे बुलाया और आंदोलन चलाया. उस आंदोलन की परिणीति ठीक नहीं रही."
भाजपा को संघ के संस्कार और विचार करते हैं कंट्रोल: जब पूछा कि भाजपा को संघ नियंत्रित करती है तो फिर आपने संघ के जरिए क्याें अपनी बात नहीं रखी. इस पर बोले कि भाजपा को संघ के संस्कार और विचार हैं वो कंट्रोल करते हैं, संघ ने औपचारिक तौर पर न भाजपा को कंट्रोल करने का दावा किया है. जब कहा कि संघ के रूप में एक फोरम था और संघ के लोग ही भाजपा में संगठन मंत्री बनते हैं तो फिर बात क्यों नही रखी? इस बर बोले कि संघ के लोग अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं, उसका कोई संविधान नहीं है. उनसे कहा कि इस समय देश भर में हिंदुत्व की लहर है जो फिर क्या नाराजगी है? इस पर बोले कि गवर्नेंस की समस्या तो बनी ही हुई है, हिंदुत्व की विचारधारा पर राजनीति होने लगी है, लेकिन गवर्नेंस नहीं. जो सिस्टम भारतीय संस्कृति के अनुसार चलना चाहिए, वो नहीं चल रही है.