भोपाल। सियासत की राह आसान हो जाती है, जब धर्म का नाम हो, दंगों की आग हो, जातियों की जमावट हो और दौलत का साथ हो. कुछ यही देखने मिल रहा है एमपी की राजनीति में जहां धर्म की टोपी पहने नेता दंगों के नाम पर वोटों की जुगाड़ कर रहे हैं. विकास के नाम पर सियासी दलों की जेब ढीली हो न हो लेकिन चुनावी कार्यक्रमों और रैलियों के लिए दौलत के खजाने में कमी नहीं आती. कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख के.के मिश्रा ने इस पर मोहर भी लगा दी है. कमलनाथ और शिवराज के बयानों ने विकास की पटरी से इतर चुनावी खिचड़ी में दंगे और धर्म का तड़का लगा ही दिया है.
वोटर को खींचने के लिए विकास की सुगंध:सियासत की खिचड़ी तब पकती है जब चुनावों में धर्म का रंग डले या दंगे की खटाई पड़े, दौलत का तड़का लगे. इस बार भी एमपी के चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस, आप, भीम आर्मी और अन्य दलों ने खिचड़ी पकानी शुरू कर दी है. वोटर को अपनी ओर खींचने के लिए विकास की सुगंध डाली जा रही है, जिसमें रंग, धर्म, जाति और संप्रदाय का भरपूर फ्लेवर है. वोटर इस खिचड़ी को खाए बिना न रहे, इसके लिए तड़के में अलग-अलग तरह के मसाले भी डाले जा रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तो इफ्तार पार्टी में पहुंचकर कांग्रेस की खिचड़ी में दंगे की जुबानी खटाई घोल दी, ऐसे में शिवराज भी कहां पीछे रहते वे कमलनाथ की सियासी खिचड़ी को बदनीयत, कुटिलता और तुष्टिकरण का घोल बताते हुए नजर आए. कमलनाथ पर वार करते हुए सीएम शिवराज ने कहा कि "एक तरह वो हनुमान भक्त होने का प्रचार करवाते हैं और दूसरी तरफ वे रोजा इफ्तार में जाकर दंगे फसादों की बात करते हैं. इस्लाम को इकट्ठा कर के उनके वोट को प्राप्त करना चाहते हैं इसलिए वे रोजा इफ्तार में जा रहे हैं. ये घटिया राजनीति है."
साम-दाम-दंड-भेद की राजनीति: राजनीति में धर्म, तुष्टिकरण, दौलत का प्रयोग और साम-दाम-दंड-भेद की नीति कब नहीं रही, जीत के लिए राजनीति किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है, यह बात खुलकर स्वीकार की कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख केके मिश्रा ने, उन्होंने कहा "अब विकास के नाम पर राजनीति नहीं चलती, चुनाव जीतना हो तो धर्म, दंगे और दौलत का सहारा लेना ही पड़ता है." इस दौरान पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल पर कि इसमें कांग्रेस भी शामिल है, इसपर केके मिश्रा ने कहा कि इस सामाजिक बुराई में सभी राजनैतिक दल शामिल हैं.