भोपाल।देश के नामी संस्थान मैनिट की वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की एक्सपर्ट कमेटी के एक प्रोफेसर आलोक मित्तल और एक कंसलटेंट गोपी कृष्ण एनओसी जारी करने के बदले रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़े गए. इन्होंने एक्सपर्ट कमेटी की एनओसी जारी करने के बदले 7 लाख रुपए की रिश्वत मांगी थी. इनकी शिकायत प्रमिला रिछारिया ने की. इसके बाद लोकायुक्त पुलिस ने डेढ़ लाख रुपये की रिश्वत लेते वक्त इन दोनों को रंगे हाथों पकड़ा. रिश्वत देने के लिए जो राशि उपयोग की गई थी, वह शिकायतकर्ता ने दी थी. यह मामला इसी साल जनवरी 2023 का है. इसके बाद आरोपी तो पकड़े गए, लेकिन शिकायतकर्ता के डेढ़ लाख रुपए उलझकर रह गए. अब जब तक इस मामले में चालान पेश नहीं हो जाता और कोई कार्रवाई नहीं होती, तब तक उनकी राशि अटकी रहेगी.
शासन को प्रस्ताव भेजने की दुहाई :ऐसा केवल इसी मामले में नहीं, बल्कि उन सभी मामलों में होता है, जिनमें रिश्वतखोर को रंगे हाथों पकड़ा जाता है. ऐसे बीते 13 साल से करीब 4.50 करोड़ रुपए प्रदेश के शिकायतकर्ताओं के अटके हैं. इस मामले में लोकायुक्त पुलिस के एडीजी योगेश चौधरी का कहना है कि इस मामले में हम शासन को प्रस्ताव भेज रहे हैं, ताकि शिकायतकर्ताओं को उनकी राशि वापस मिल सके. बता दें कि लोकायुक्त संगठन सामान्य प्रशासन विभाग के अंतर्गत आता है. इसमें पुलिस की जो टीम रिश्वतखोरों को पकड़ने के लिए काम करती है, उन्हें ऑपरेशन के दौरान इस्तेमाल करने के लिए अलग से विभाग की तरफ से राशि नहीं दी जाती है. ऐसे में जब कोई शिकायतकर्ता जाता है तो उसे ही राशि देनी पड़ती है. यही कारण है कि पुलिस बहुत बड़े रिश्वतखोर को पकड़ने की बजाय छोटे भ्रष्ट अफसरों को ही ट्रैप कर पाती है. इन पर 200 रुपए से अधिकतम 10 हजार रुपए ही खर्च कर पाती है.
लोकायुक्त के पास अलग से बजट नहीं :प्रदेश में आम आदमी की रकम से लोकायुक्त पुलिस ट्रैप की कार्रवाई करती है, जबकि सीबीआई और दूसरे राज्यों की एजेंसीज के पास इसके लिए अलग से बजट होता है. लोकायुक्त संगठन के पास ट्रैप के लिए फंड नहीं होने के कारण बड़े रिश्वतखोर बच निकल जाते हैं, शिकायतकर्ता ट्रैप के केस में बड़ी राशि देने में हिचकते हैं. बजट नहीं होने के कारण रीवा और उज्जैन जोन में कुल मामलों में से 65 फीसदी मामले ऐसे हैं, जिनमें 200 से 2000 रुपए तक ही राशि इस्तेमाल की गई है. जबकि 25% मामलों में 2 से 10 हजार रुपए इस्तेमाल किए गए. केवल 10 फीसदी मामलों में ही 10 हजार रुपए से अधिक की राशि इस्तेमाल हुई है. इसके बाद भी मध्यप्रदेश लोकायुक्त पुलिस कार्रवाई करने के मामले में देश के टॉप 5 राज्यों में है.