भोपाल। उमा भारती जो बोल रही हैं, वो तो सियासी बवाल होता ही है, उनकी तो चुप्पी भी संदेश होती है. तो एमपी के सियासी गलियारों में उठ रहा है सवाल कि क्या उमा भारती के सब्र का बांध अब टूटने लगा है. मध्यप्रदेश की सत्ता से रवानगी के बाद अब उमा भारती उस राह से बहुत आगे निकल आई हों, लेकिन जख्म क्या भर पाए हैं. उमा भारती अपनी पार्टी के भीतर जो सोहार्द दिखा रही हैं. क्या सद्भाव वाकई वैसा ही है. कांग्रेस की निगाह में शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे पर जिस तरह उमा भारती ने बीते दिनों सरकार को कटघरे में खड़ा किया, इसे अगर ट्रैलर मान लें तो फिल्म अभी बाकी है. सवाल ये है कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर उमा भारती का दबाव शिवराज सरकार के लिए आईना है या नसीहत. बाकी कांग्रेस को उमा के तेवर बागी दिखाई दे रहे हैं. कांग्रेस का अंदेशा है कि उमा किसी भी दिन अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए सड़क पर उतर सकती हैं.
2003 से 2023..बीस साल लंबा सब्र:एमपी में बीजेपी की सत्ता को बनाए रखने के रिकार्ड शिवराज सिंह चौहान ने भले बनाए हों, लेकिन एमपी में बीजेपी को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने वाली उमा भारती थी. उमा भारती बीते लंबे समय से अपने स्वभाव के विपरीत बर्ताव कर रही हैं. उनके तेवर उतने तल्ख नहीं. लंबे समय उन्होंने खामोशी भी ओढ़ी, लेकिन एन चुनाव के पहले उनकी एमपी के मैदान में सक्रीयता सियासी गलियारों में कुछ और संकेत दे रही है. पहला शराबबंदी को लेकर उन्होंने मोर्चा खोला. इसमें धरने प्रदर्शन से लेकर शराब की दुकानों पर पथराव के जितने स्टंट हो सकते थे सब किए. जब शिवराज सरकार ने उनकी बात मान ली तो उमा ने तसल्ली भी जताई, लेकिन शिक्षा और स्वास्थय के मुद्दे पर जिस तरह से मोर्चा खोला है. उसे कांग्रेस ने ट्रैलर मान लिया है.
सरकार की कलई क्यों उतार रही हैं उमा: एमपी में शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति पर किए गए उमा भारती के ट्वीट सामयिक बने हुए हैं. वहीं ट्वीट जिसमें उन्होंने कहा कि प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों में भयावह अंतर ने उन्हें बेचैन कर दिया है. उन्होंने प्राइवेट और सरकारी अस्पताल के अंतर की तरह सरकारी स्कूल और प्राइवेट स्कूल का फर्क भी बताया था, कहा था कि गरीब आदमी ना प्राइवेट अस्पताल का बिल भर सकता है और ना प्राइवेट स्कूलों में बच्चे की फीस. उन्होंने अपनी ही सरकार में नीचे तक योजनाओं का लाभ ना पहुंच पाने को लेकर कहा था कि गरीब ये जानते ही नहीं है कि सरकार उन्हें कोई रियायत दे रही है. जबकि केन्द्र राज्य दोनों सरकारों से मिल रही है रियायत.