भोपाल। उमा भारती को इस वक्त उस खिलाड़ी के तौर पर देखिए जिस मैदान में कभी उन्होंने नाबाद पारी खेली थी. उसी पिच पर उनकी हैसियत 12 वें खिलाड़ी की कर दी जाए तो छटपटाहट होने लगती है. शराबबंदी को लेकर उमा भारती की नाराजगी, गऊ अदालत का ऐलान और अपनी ही पार्टी नेताओं को कटघरे में खड़ा कर उमा भारती अपना रास्ता बना रही हैं. या फिर ये कहें कि, एमपी में बीजेपी की राह बिगाड़ रही हैं. अब सवाल यह है कि, क्या उमा भारती 2005 वाला तेवर दिखाने की तैयारी कर रही हैं. या फिर 2023 में उमा रिटर्न चाहती हैं.
ये माजरा क्या है: पिछले कुछ दिनों से उमा भारती की राजनीति को करीब से देखिए, किस तरह से वो शराबबंदी पर सड़क पर उतरने का दम दिखाती हैं. फिर पलट जाती हैं. फिर मोर्चा बनाती हैं. किस तरह से वो अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोलने मे भी झिझकती नही. रायसेन मंदिर में ताला खोलने के विवाद पर वे खुलकर बोल चुकी हैं कि पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा की वजह से मंदिर का ताला नहीं खुल पाया. फिर उन्होंने खुलकर ये बयान भी दे दिया कि पार्टी के भीतर ही कुछ लोग उनकी ट्रोलिंग कर रहे हैं. उमा ने चेतावनी भरे लहजे में कह भी दिया कि वॉर छेंड़ना ही है तो फिर तैयार हो जाओ. उमा अपने मूल स्वभाव में लौट रही हैं. 2005 के वही तेवर अब उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं लिहाजा उमा का हर दुस्साहस बीजेपी की मुसीबतें बढ़ाएगा इसमें दो राय नहीं.
बीजेपी में हिंदुत्व की हुंकार, उमा हाशिए पर:अयोध्या रामजन्मभूमि आंदोलन के समय जो चेहरे बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व का सिम्बल बन गए थे. उनमें एक चेहरा उमा भारती का भी था. बीजेपी में किसी संत का सियासत मे सूरज की तरह ऊगना उमा भारती के तौर पर ही देखा गया. जब उमा एमपी मे मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन इस समय जब बीजेपी हार्डकोर हिंदुत्व किसी नेता के लिए विशिष्ट योग्यता की तरह देखा जाता हो तब इस विषय विशेषज्ञता हासिल कर चुकी साध्वी उमा भारती हाशिए पर हैं. उनकी ये योग्यता भी उन्हें फ्रंट लाईन में लाने का अवसर नही दे पा रही. ये उमा भारती की छटपटाहट का सबसे बड़ा कारण है. शराबबंदी के सहारे उमा भारती एक तीर से कई शिकार कर रही हैं. ये घर घर में महिलाओं के बीच उनकी पुरानी छवि को जिंदा कर लेने का दांव तो है ही. सामाजिक सरोकार दिखाकर वो अपनी उसी क्राउड पुलर इमेज को लौटाना चाहती हैं.