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MP Assembly Election 2023 आदिवासी तय करेगा किसका होगा 'सिंहासन', पेसा एक्ट के जरिए सीटें बढ़ाने की जुगत में भाजपा

मध्यप्रदेश में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अपना सारा फोकस आदिवासी वोटरों पर केंद्रित किए हुए हैं. यह भी लगभग तय माना जा रहा है कि जो पार्टी आदिवासी वोटरों से प्रभावित 47 विधानसभा सीटों में अधिक पर कब्जा जमाएगी, वही सत्ता का सिंहासन हासिल करने में कामयाब होगी. आदिवासियों की खैर ख्वाह बन रही 'जयस' का समीकरण बिगाड़ने के लिए भाजपा ने मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है. उसने पेसा योजना का श्रेय जयस से छीनकर अपने सिर बांध लिया है. अब देखना यह होगा कि पेसा एक्ट से बीजेपी आदिवासियों की कितने सीटें कलेक्ट कर पाने में सफल हो पाती. (mp assembly election 2023) (tribal will decide whose will be throne of power) (bjp trying to collect more seats by pesa act)

mp assembly election 2023
आदिवासी तय करेगा किसका होगा सत्ता का सिंहासन

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Published : Nov 3, 2022, 7:54 PM IST

Updated : Nov 3, 2022, 8:05 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में किस राजनीतिक दल की सरकार बनेगी? इस सवाल का जवाब आदिवासी क्षेत्र की जनता देगी. मध्यप्रदेश में आदिवासी वोटरों से प्रभावित करीब 47 विधासभा सीटें हैं. आदिवासी जिस राजनीतिक दल के साथ जाएगा उसी की सरकार सूबे में बनवाएगा. (mp assembly election 2023) (tribal will decide whose will be throne of power) (bjp trying to collect more seats by pesa act)

पेसा एक्ट से अधिक सीटें कलेक्ट करने की जुगत में भाजपा

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पार्टियों की प्राथमिकता में आदिवासी वोटरः चुनाव से कुल 14 महीने दूर खड़े मध्यप्रदेश की राजनीति में आदिवासी वोटर हाई डिमांड पर आ गया है. हर राजनीतिक दल अपनी चुनावी फिल्म हिट कराने के लिए आदिवासी को अपने साथ चाहता है. आदिवासी हमारे हैं का राग छेड़ रही पार्टियों का चुनाव से पहले निर्णायक दांव क्या होगा यह देखना भी महत्वपूर्ण होगा. सबसे बड़ा सवाल यह है कि आदिवासी का भरोसा किसके हिस्से आएगा. मालवा निमाड़ में 2018 के बाद से जयस भी कांग्रेस, बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. हालांकि बीजेपी जयस के हर शह पर मात देने की तैयारी में रणनीति बना रही है. (mp assembly election 2023) (tribal will decide whose will be throne of power)

आदिवासियों की अकेली आवाज होने का जयस का दावा

दावा आदिवासियों की अकेली आवाज जयसः 2018 के विधानसभा चुनाव में एक विधायक की जीत के साथ खाता खोलने वाले संगठन जयस को आदिवासियों के बीच भरोसे की जमीन तो पहले ही दांव में मिल गई. 2023 के चुनाव में इस भरोसे को मजबूती देनी है. जयस आदिवासियों के बीच इस दम के साथ पहुंचता कि उनकी आवाज उठाने वाला एक संगठन है जयस. पेसा एक्ट लागू कराने से लेकर वनवासियों को वनाधिकार का पट्टा दिलवाने जैसी जमीनी लड़ाई जयस लड़ता रहा है. अब चुनाव नजदीक आने के साथ जयस अब आदिवासी क्षेत्र में सदस्यता अभियान शुरु करने जा रहा है. वैसे तो पूरे प्रदेश में 25 लाख नए सदस्य बनाने की तैयारी में जुटा हुआ है जयस. लेकिन खास फोकस मालवा, निमाड़ के आदिवासी इलाकों पर है. (bhopal claim Jais is only voice of tribals) (mp assembly election 2023) (tribal will decide whose will be throne of power)

बीजेपी का आदिवासी यूथ पर फोकसः2018 में आदिवासी विधानसभा सीटों पर मिले झटके का असर है कि बीजेपी दूध के जले की तरह से बर्ताव कर रही है. लेकिन दांव ऐसे खेल रही है कि जिससे सबसे पहले इस वर्ग में सबसे मजबूत पकड़ रखने वाले जयस की जमीन खींची जा सके. आदिवासियों के हक में जिस पेसा एक्ट को लागू कराने को लेजकर जयस आंदोलन करती रही है. सीएम शिवराज ने पेसा एक्ट लागू करने का एलान तो पहले ही कर दिया था. इसी 15 नवंबर से प्रदेश में ये एक्ट लागू भी हो जाएगा. इससे ग्राम सभाओं की मजबूती के साथ आदिवासियों के हित संरक्षित हो सकेंगे. अब जब पेसा एक्ट शिवराज सरकार लागू करेगी तो जाहिर है कि जयस के मुकाबले क्रेडिट बीजेपी के खाते में ही जाएगा. इसके अलावा बीजेपी संगठन भी रणनीति के तहत जयस के सदस्यों को तोड़ने में जुटी है. इसके लिए बाकायदा उन्हें सरकार की आदिवासियों के लिए चलाई जा रही योजनाओं का लाभार्थी बनाने का टास्क दिया गया है. ( bjp focus on tribal youth) (mp assembly election 2023) (tribal will decide whose will be throne of power)

कांग्रेस की फिक्र वोट बैंक ना खिसक जाएः हमेशा से कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक रहा है आदिवासी. मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखें तो कांग्रेस से छिटकने के बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में ये वोट बैंक फिर कांग्रेस के पास आ गया. कांग्रेस इसे हाथ से जाने नहीं देना चाहती है. लिहाजा प्रदेश में दलितों, आदिवासियों पर हुए अपराध को मुद्दा बनाकर कांग्रेस बीजेपी सरकार को घेरेगी और आदिवासियों के हितैषी बनने का दांव चलेगी. कांग्रेस का अनुसूचित जाति और जनजाति विभाग पूरे प्रदेश में संविधान और आरक्षण बचाओ यात्रा की तैयारी कर रहा है. इस यात्रा के जरिए आदिवासियों और दलितों पर अत्याचारों का ब्योरा सामने रखते हुए सरकार की असफलताओं का चिट्ठा कांग्रेसी गांव गांव खोलेंगे. (congress worry about losing tribal vote bank) (mp assembly election 2023) (tribal will decide whose will be throne of power) (bhopal claim Jais is only voice of tribals)

आदिवासियों का पलायन कहां रोक पाई सरकार,अलावाः जयस संगठन के संरक्षक हीरालाल अलावा का कहना है कि शिवराज सरकार आदिवासी हितैषी खुद को दिखाने की कोशिश जरूर कर रही है, लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं. आदिवासियों का सबसे बड़ा मुद्दा है रोजगार. देखिए अब भी पश्चिमी मध्यप्रदेश में आदिवासियों का पलायन जारी है. ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामले सामने आ रहे हैं. सरकार ने रोजगार दिया होता तो आदिवासी क्यों जाता. अलावा कहते हैं हमें चुनाव के समय गांव-गांव घूमने की जरूरत नहीं है. हम तो गांव में ही रहते हैं आदिवासी के बीच ही रहते हैं. उनके हर संकट में उनके साथ ख़ड़े होते हैं. (congress worry about losing tribal vote bank) (mp assembly election 2023) (tribal will decide whose will be throne of power)

आदिवासियों के हाथ में सत्ता की चाबीःप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से एससी वर्ग के लिए 35 और एसटी वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में 47 आदिवासी सीटों में से केवल 16 सीटें बीजेपी के खाते में गईं. जबकि 30सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था. एक पर निर्दलीय की जीत हुई थी. आदिवासी सीटों के नतीजे काफी चौंकाने वाले रहे. आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली. हालांकि 2003 लेकर 2013 तक आदिवासियों पर बीजेपी की पकड़ बनी रही थी. (congress worry about losing tribal vote bank) (mp assembly election 2023) (tribal will decide whose will be throne of power)

Last Updated : Nov 3, 2022, 8:05 PM IST

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