भोपाल। 2018 के विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनावी मैदान में आई सपाक्स पार्टी इस बार फिर विधानसभा चुनाव में दम दिखाएगी. 2023 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर आरक्षण को मुद्दा बनाकर चुनाव मैदान में उतर रही सपाक्स की रणनीति ये है कि अगला विधानसभा चुनाव सपाक्स पार्टी केवल उन चुने हुए स्थानों पर लड़ेगी जहां उनके कैंडिडेट मजबूत हैं और जहां जीत की पूरी संभावना है. सपाक्स पार्टी के संरक्षक हीरालाल त्रिवेदी के मुताबिक पार्टी फिलहाल प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर जिताऊ उम्मीदवार की संभावनाएं तलाश रही है.
क्या सपाक्स को मिल पाएगी जमीन: 2018 के विधानसभा चुनाव में सरकार के खिलाफ आरक्षण के मुद्दे को भुनाते हुए तुरंत फार्म होकर मैदान में आई सपाक्स पार्टी में ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत बचा पाना भी मुश्किल रहा था. लेकिन फिर भी इस नई नवेली पार्टी ने 109 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. करीब 0.4 फीसदी वोट इस पार्टी को मिल पाए थे. हालांकि इस बार आम आदमी पार्टी के अलावा कुछ क्षेत्रीय दल भी चुनाव मैदान में सपाक्स की चुनौती बन रहे हैं, लेकिन पार्टी मैदान में आने की तैयारी कर चुकी है. सपाक्स पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. हीरालाल त्रिवेदी का कहना है कि "पिछले चुनाव में हमारी पार्टी ने सत्ता के समीकरण बदले थे इस बार और ज्यादा तैयारी के साथ सपाक्स मैदान में उतरेगी."
इस बार भी गर्माएगा आरक्षण का मुद्दा:सपाक्स पार्टी पदोन्नति में आरक्षण समाप्त करने, आरक्षण गरीबों को देने के साथ एक बार आरक्षण लेने वालों को आरक्षण की सीमा से बाहर किए जाने के मुद्दों के साथ बीते विधानसभा चुनाव में सियासी दल के तौर पर मैदान में आई थी. सपाक्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरालाल अलावा का कहना है कि "जिन मुद्दों पर पार्टी की बुनियाद रखी गई वो मुद्दे तो इस बार भी रहेंगे, लेकिन हम सबके लिए समान कानून का मुद्दा भी उठाएंगे. केवल सिविल कानून नहीं, केन्द्र की बीजेपी सरकार को सभी प्रकार के कानूनों में समानता लानी चाहिए. इसी तरह से सपाक्स एट्रोसिटी एक्ट का मुद्दा भी उठाएगी. जिसमें कहा गया है एट्रोसिटी जैसे जातिवादी कानून को बदले जाने की आवश्यक्ता है."