भोपाल। चुनावी साल लगते ही नेताओं का एक्शन मोड में आ जाना तो समझ में आता है, लेकिन अचानक बढ़ती बदजुबानी की वजह क्या है. चुनाव का अतिउत्साह कहें इसे या लगातार सत्ता में बने रहने का दंभ. पिछले कुछ दिनों में बीजेपी नेताओं के भाषा का संयम भी टूटा है और संस्कार भी. हिंदूवादी पार्टी बीजेपी में संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले नेता मोहन यादव अगर सीता माता को तलाकशुदा बता गए. तो आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते तो विरोध की राजनीति में गाली तक आ गए. गौरीशंकर बिसेन का गुस्सा भी काबिल ए गौर है. एमपी की राजनीति में दिनों दिन गलीज होती जा रही जुबान चुनावी पारा चढ़ने तक कहां पहुंचेगी. बीजेपी जैसी शुचिता का पाठ पढ़ाने वाली पार्टी में ये संक्रमण सेहत के लिए कितना खतरनाक है. 2020 के उपचुनाव में आइटम पर उलझी राजनीति क्या 2023 के विधानसभा चनाव तक भाषा के स्तर पर अपने पुराने सारे रिकार्ड ध्वस्त कर जाएगी.
शिवराज का बड़ा दिल और फग्गन की गाली: इत्तेफाक देखिए कि जिस वक्त सीएम शिवराज पिछले दिनों करणी सेना में मुख्यमंत्री को लेकर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी पर बड़ा दिल दिखा रहे थे. शिवराज ऐसे लोगों को माफी भिजवा रहे थे. उसी दौरान सोशल मीडिया पर केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते का एक वीडियो तेजी से दौड़ा. जहां कांग्रेस के कर्जमाफी का जिक्र करते हुए विरोध की राजनीति में केंद्रीय मंत्री की जुबान गाली तक आ गई. जाहिर है फग्गन सिंह के इस बयान के साथ बीजेपी ने ना केवल कर्जमाफी के सोए जिन्न को जगा दिया, बल्कि बीजेपी में नेताओं के भाषा संस्कार पर भी कांग्रेस हमलावर हुई है. कृषि मंत्री कमल पटेल के सदन में दिए जवाब को उछालते कांग्रेस मैदान में आ गई. जिसमें कृषि मंत्री ने खुद ये मंजूर किया था कि मध्यप्रदेश में कर्जमाफी हुई है और फिर आदिवासी नेता की भाषा शैली पर सवाल उठे कि क्या यही संस्कारों वाली पार्टी के प्रशिक्षण का नतीजा है.
आदिवासी वोट और आदिवासी की छवि पर चोट: एक तरफ बीजेपी 2023 के मद्देनजर 47 आदिवासी सीटों पर फोकस किए हुए हैं. इन चुनावों में आदिवासी वोट बैंक पर पकड़ मजबूत करने की कवायद में चुनाव के दो साल पहले से जुटी हुई है. एमपी में 47 सीटें तो सीधे तौर पर आदिवासी रिजर्व है, बाकी 78 सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी वोटर निर्णायक है. आदिवासी जननायकों के नाम पर योजनाओं और स्थलों के नाम तय किए गए. पेसा एक्ट लागू किया गया. शिवराज सरकार लगातार ये जतन कर रही है कि किस तरह से आदिवासी वोटर पर पकड़ मजबूत की जाए. लेकिन इस कवायद के बीच फग्गन सिंह कुलस्ते जैसे बीजेपी के दिग्गज नेता की गलीज जुबान पार्टी की इस कवायद पर झटका नहीं है.