भोपाल। राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र में गाय भी आ गई, लेकिन मासूम बच्चों को जगह नहीं मिल पाई. क्या केवल इसलिए कि गाय का वोट कनेक्शन बना हुआ है. क्या बच्चों के मुद्दे केवल इसलिए सियासी दलों की फिक्र नहीं बन पाते क्योंकि वो खुद भी वोटर नहीं है और वोटिंग को किसी तरह से प्रभावित भी नहीं कर पाते. क्या वोटिंग की उम्र में पहुंच जाने के बाद ही बच्चों के मुद्दे राजनीतिक दलों को सुनाई देंगे. ये तमाम सवाल अपनी जगह और इन सवालों को दरकिनार कर सियासी दल राजनेताओं से जवाब मांगती मीना की चिट्ठी अपनी जगह. 2024 के आम चुनाव के पहले प्रदेश और देश में मीना की चिट्ठी भी दौड़ रही है. जिसमें मीना राजनीतिक दलों के साथ चुनाव में दावेदारी की तैयारी कर रहे नेताओं से पूछ रही है कि अगर आपको टिकट मिला तो आप मीना और मीना की उम्र के लाखों दोस्त और सहेलियों के लिए क्या सोच रहे हैं ? मीना यूनिसेफ का गढ़ा हुआ वो किरदार है जो दक्षिण एशियाई चिल्ड्रन टेलीविजन शो का हिस्सा रही है. आप जान लें कि एमपी की कुल आबादी में करीब 33 फीसदी बच्चे हैं.
क्यों लिखनी पड़ी मीना को चिट्ठी:मीना ने चिट्ठी में क्या लिखा ये भी आपको बताएंगे, लेकिन पहले ये जान लीजिए कि ये चिट्ठी क्यों लिखनी पड़ी है. वजह ये है कि अकेले मध्यप्रदेश में ही कम वजन वाले बच्चों की तादात करीब 42 फीसदी है. 42 फीसदी बच्चे ही ठिगनेपन से प्रभावित हैं. दुबले और कमजोर बच्चे करीब 25 फीसदी हैं. मुश्किल ये है कि बच्चों के मुद्दे मैनिफेस्टों में जगह नहीं पाते. इसकी एक वजह ये भी है कि बच्चे वोटर नहीं है, सवाल ये है कि बच्चों की शिक्षा उनके पोषण से जुड़े मुद्दों पर राजनीतिक दल कब ध्यान देंगे.
मीना ने चिट्ठी में लिखा क्या है: अब आप मीना की चिट्ठी को उसी के शब्दों में पढ़िए. राजनीतिक दलों और नेताओं को संबोधित करते हुए मीना लिखती हैं. आशा है इस वक्त आप कमर कसकर हमारे राज्य में लोकतंत्र के होने वाले उत्सव के लिए खुद को तैयार कर रहे होंगे. टीवी, अखबार और सोशल मीडिया में हम आप लोगों को अक्सर देखते रहते हैं. स्कूल में मैडम भी बताती हैं कि किस तरह आप हम सबके मुद्दे विधानसभा में उठाते हैं. वो बताती हैं कि जब आप जनता की बात रखते हैं, तो उस पर चर्चा होती है और सदन में कदम उठाने की योजना और नीतियां बनती हैं.