भोपाल।योगी आदित्यनाथ की सभा के बाद उड़न खटोला उड़ चुका है, वोटर धूल के गुबार में तरक्की की तकरीर को दोहरा रहा है और फिर जमीन पर आ रहा है. उस जमीन पर जिसमें रोजी रोटी के सवाल हैं, जिसमें गुजरते त्योहार में गांव की हाट से बच्चों के लिए खुशियां खरीदने जाना है. गले में सियासी दलों के गमछे, सिर पर टोपियां है और हाट बाजार में झंडे.. गांव में त्योहार पर इस बार सियासी रंग चढ़ाने की भी कोशिश हुई है.
ईटीवी भारत की टीम वोटिंग के 48 घंटे पहले गांव देवबरखेडी में मौजूद है. बैरसिया विधानसभा सीट जो बीजेपी का गढ़ कही जाती है, क्या मतदाता एक रस्म की तरह वोट देता है. क्या मुद्दे हैं जनता के. मुद्दे हैं या हवा में बह रहा है वोटर... हम नब्ज थामने की कोशिश कर रहे थे और कार्यकर्ताओं की आवाज में तलाश रहे थे वोटर जो जनता की आवाज बनकर सुनाई दे. क्या आंखों पर पट्टी बांधे हैं वोटर या जो देख सुन रहा है उसे समझने के बाद वोट करेगा. बैरसिया विधानसभा सीट से ईटीवी भारत के लिए शिफाली की ग्राउण्ड रिपोर्ट.
रिवाज की तरह वोट भी रस्म है क्या:हम देवबरखेड़ी के हाट बाजार का रुख करते हैं, जानना चाहते हैं सियासी माहौल क्या है, हवा का रुख क्या है.. ग्रामीण बुजुर्गों से सवाल होता है, दादा करण सिंह गुर्जर से मुलाकात होती है. क्या मुद्दे हैं चुनाव में और जवाब आता है फूल पे वोट डालेंगे. कमोबेश यही जवाब उनके साथ के बुजुर्गों का होता है, मुद्दे नहीं बताते एक रिवाज की तरह वोट डालने की रस्म निभाते हैं. सवाल गुम है या सवाल खो गए हैं, कहना मुश्किल है. दादा गांव में सब सुविधाएं हैं, हमारे ये पूछने पर भी जबाव आता है सब आनंद चल रिया है, सब मौज है. जो दादा ये कह रहे हैं उनके कुर्ते में पांच जगह पैबंद है, ये किस मौज में हैं समझ पाना मुश्किल होता है.