भोपाल। मध्य प्रदेश के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस का रास्ता रोकने बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से गठबंधन के बाद बीएसपी, बीजेपी-कांग्रेस के रूठे नेताओं को साधने में जुटी है. बीएसपी ने राजनगर विधानसभा सीट से टिकट में बदलाव करते हुए बीजेपी के दो बार जिलाध्यक्ष रहे घासीराम पटेल को मैदान में उतारा है. इसी तरह चित्रकूट से बसपा ने बीजेपी के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य रहे सुभाष शर्मा डोली को टिकट दिया है. बीएसपी अब तक 42 उम्मीदवार घोषित कर चुकी है. बीएसपी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का गठबंधन चुनाव में कई सीटों पर कांग्रेस-बीजेपी के लिए करीब 82 सीटों पर परेशान खड़ी कर सकती है.
बीएसपी से चुनाव में उतरे कांग्रेस-बीजेपी के यह नेता: राजनगर सीट से बीजेपी के टिकट के तगड़े दावेदार रहे घासीराम पटेल को बीएसपी ने चुनाव मैदान में उतारा है. बीजेपी ने इस सीट से बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के कट्टर समर्थक अरविंद पटेरिया को टिकट दिया है. घासीराम पटेल खजुराहो विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी रहे हैं. बीएसपी ने सूची में बदलाव कर राजनगर से घासीराम को अपना उम्मीदवार बनाया है. बीएसपी की सूची में कांग्रेस नेता रहे दील मणि सिंह बब्बू राजा को छतरपुर से मैदान में उतारा है. चित्रकूट विधानसभा सीट से बीएसपी ने बीजेपी के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य सुभाष शर्मा को उम्मीदवार बताया है. डोली भी बीजेपी से टिकट के लिए दावेदारी कर रहे थे, लेकिन जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे बीएसपी में शामिल हो गए.
गठबंधन का नजर 59 विधानसभा सीटों पर: चुनाव के लिए एक साथ आए बीएसपी और जीजीपी की प्रदेश के आदिवासी और दलित वोटर्स पर नजर है. प्रदेश में 16 प्रतिशत दलित आबादी है. प्रदेश में 230 विधानसभा सीटों में से 35 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है. जबकि आदिवासियों की आबादी करीब 21 फीसदी है. प्रदेश में 24 सीटें एसटी के लिए रिजर्व है. देखा जाए तो बीएसपी और जीजीपी की नजर इन्हीं 82 विधानसभा सीटों पर टिकी है.
कितनी मजबूत है बीएसपी और जीजीपी: बहुजन समाज पार्टी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 227 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, लेकिन 2 उम्मीदवार ही जीतकर आ सके. 2013 के चुनाव में बीएसपी के चार विधायक, जबकि 2008 के विधानसभा चुनाव में 7 विधायक जीते थे. मध्यप्रदेश में बीएसपी का यह सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा. उधर जीजीपी ने 2018 विधानसभा चुनाव में 73 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, इनमें से 68 अपनी जमानत भी नहीं बचा सके थे. 2013 के चुनाव में भी कमोवेश पार्टी का ऐसा ही परफॉर्मेंस रहा था. पार्टी ने 63 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन 62 की जमानत जब्त हो गई थी. 2003 में ही जीजीपी के तीन उम्मीदवार जीत सके थे.