भोपाल/ हरिद्वारः सनातन धर्म में गंगा का एक विशेष महत्व है क्योंकि इस धर्म में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है. यही नहीं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा में स्नान करने मात्र से ही सभी पाप धुल जाते हैं. यही वजह है कि सनातन धर्म से जुड़े लोग गंगा में स्नान करने आते हैं. वहीं, महाकुंभ के दौरान गंगा में स्नान करने का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि, महाकुंभ में मुख्य रूप से तिथि अनुसार शाही स्नान तय किए जाते हैं. जिस दौरान गंगा में स्नान करने से बड़ा पुण्य मिलता है. ऐसे में इस साल होने वाले महाकुंभ की तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही है. लेकिन गंगा की स्वच्छता और निर्मलता पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जा रहा है. आखिर क्या है हरिद्वार में गंगा की स्थिति और पहले की तुलना में गंगा के स्वरूप में कितना आया है बदलाव?
उद्गम स्थल से ही बदलने लगा गंगा का स्वरूप
कुछ दशकों पहले की बात करें तो गंगा अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से हरिद्वार तक संकरी रास्तों से होकर आती थीं, लेकिन पिछले कुछ दशकों से गंगा का स्वरूप बदल गया और अब अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से करीब 150 किलोमीटर दूर उत्तरकाशी तक ही संकरे रास्तों से होकर पहुंचती हैं और फिर उत्तरकाशी के बाद से ही गंगा का विस्तार हो जाता है. हालांकि, गंगा के बदले स्वरूप की मुख्य वजह मानव ही है. क्योंकि लगातार गंगा में हो रहे खनन के कारण ना सिर्फ गंगा का स्वरूप बदला है, बल्कि लगातार हो रहे पर्यावरण में बदलाव से गंगा नदी के तेज बहाव के चलते भी स्वरूप में बदलाव आया है.
अरबों खर्च के बावजूद निर्मल नहीं हुई गंगा लॉकडाउन के दौरान गंगा कम हुई प्रदूषित
गंगा नदी को खुद मानव जाति ने बहुत अधिक प्रदूषित किया है क्योंकि इसका जीता जागता उदाहरण हाल ही का है, जब वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते देशभर में लॉकडाउन लागू हो गया था. उस दौरान गंगा के निर्मलता और अविरलता को देखकर सभी हैरान हो गए थे, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान गंगा नदी शीशे की तरह साफ और पारदर्शी हो गई थी. यानी कुल मिलाकर देखें तो जब गंगा नदी में आने वाली सभी गंदगी पूरी तरह से बंद हो गई थी, तो उस दौरान गंगा का स्वरूप कुछ और ही निकल कर सामने आया, लेकिन मौजूदा स्थिति यह है कि एक बार फिर गंगा नदी प्रदूषित नजर आ रही है.
हरिद्वार के बाद अधिक प्रदूषित है गंगा
वर्तमान स्थिति को देखें तो अभी फिलहाल गंगा अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से हरिद्वार तक दैवीय गुणों से भरपूर है. लेकिन हरिद्वार के बाद से ही गंगा नदी की अविरलता और निर्मलता में काफी बदलाव आया है, क्योंकि पिछले कुछ दशकों से गंगा को प्रदूषित करने में मानव जाति ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. इसकी मुख्य वजह यह है कि गंगा नदी में ना सिर्फ सभी इंडस्ट्री के गंदे पानी को डाला जाता है, बल्कि कई जगहों पर सीवरेज भी इसी गंगा नदी में छोड़ा जाता रहा है, जिसके चलते हरिद्वार से आगे बहने वाली गंगा नदी प्रदूषित होती चली गई.
विकास कार्यों से प्रदूषित हो रही गंगा
जितनी तेजी से हम आधुनिकता के युग में प्रवेश कर रहे हैं, उतनी तेजी से हम अपने नेचुरल रिसोर्सेज को भूलते जा रहे हैं. यही वजह है कि जहां कुछ दशकों पहले गंगा साफ-सुथरी और निर्मल हुआ करती थी, तो वहीं अब गंगा धीरे-धीरे प्रदूषित होती जा रही है, जिसकी मुख्य वजह यह है कि लोग एक सुंदर दृश्य के लिए गंगा किनारे ना सिर्फ अपना घर बना रहे हैं, बल्कि तमाम विकास कार्यों को भी अंजाम तक पहुंचाया जा रहा है. हालांकि, एक तरह से देखा जाए तो देश के विकास के लिए विकास कार्यों का होना जरूरी है, लेकिन इस विकास कार्य के दौरान सारा मलबा गंगा नदी में फेंका जाता है, जो सीधे तौर पर गंगा को प्रदूषित करती है.
अरबों खर्च के बाद भी हालात जस के तस
गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक भी है. केंद्र और राज्य सरकार द्वारा गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इनमें प्रमुख नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए अरबों रुपये खर्च किए गए हैं, लेकिन हरिद्वार में गंगा की स्वच्छता का उद्देश्य धरातल पर उतरता नजर नहीं आ रहा है. वहीं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी गंगा में गंदगी डालने से रोकने के लिए सख्त निर्देश दिए थे. बावजूद इसके गंगा में प्लास्टिक, पूजा के फूल, पुराने कपड़े और कूड़ा आदि डालने से लोग बाज नहीं आ रहे हैं, जिसका ही नतीजा है कि गंगा प्रदूषित होती जा रही है.
गंगा के लिए किए गए प्रयास नहीं रहे सफल
नदी विशेषज्ञ सुरेश ने बताया कि पिछले कुछ सालों के भीतर राज्य और केंद्र सरकार ने गंगा नदी को बचाने के लिए तमाम प्रयास किए, लेकिन वह प्रयास सफल नहीं हो पाए. जिसकी मुख्य वजह है कि आज भी पहाड़ी क्षेत्रों में घरों से निकलने वाला गंदा पानी, समेत अन्य कूड़ा करकट गंगा नदी में ही फेंका जा रहा है. ऐसे में अगर इस पर लगाम नहीं लगाई जाती है तो गंगा नदी धीरे-धीरे ऐसे ही प्रदूषित होती रहेगी. हालांकि, जिस तरह से गंगा के चारों ओर सीमेंट की दीवारें बनाई जा रही हैं, उससे तमाम लोगों को रोजगार तो मिल रहा है, लेकिन गंगा के प्रदूषण, अतिक्रमण, शोषण और गंगा की निर्मलता-अविरलता के लिए जो सुझाव दिए गए हैं, उन सुझावों की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है. नहीं तो एक समय ऐसा आएगा कि गंगा आचमन के लायक भी नहीं रहेगी.
केंद्र सरकार के लाख प्रयासों के बाद भी निर्मल नही हो पाई गंगा
नवंबर 2020 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार हरिद्वार की विश्व प्रसिद्ध हरकी पैड़ी पर गंगाजल पीने के लायक नहीं है. हालांकि, गंगा जल में स्नान किया जा सकता है. हरकी पैड़ी समेत चार अलग-अलग स्थानों से लिए गए गंगा जल के सैम्पलों की जांच में पानी में टोटल क्लोरोफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा स्टैंडर्ड मानकों से अधिक पाई गई थी, जिसके चलते गंगा को इस क्षेत्र में बी श्रेणी का पाया गया था. वहीं, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार बी श्रेणी का पानी बिना फिल्टर के पीने लायक नहीं होता है. हालांकि, गंगाजल में ऑक्सीजन और बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड का स्तर सही पाया गया था.
गंगा को बचाने के लिए जन जागरण की आवश्यकता
इसके साथ ही नदी विशेषज्ञ सुरेश ने बताया कि गंगा नदी को अविरल और निर्मल बनाने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं वह बहुत ही कमजोर प्रयास हैं, जिसके चलते गंगा नदी की अविरलता और निर्मलता को बरकरार रखना बहुत मुश्किल हो गया है. हालांकि, वर्तमान समय में गंगा का नाम लोगों के जुबान पर पहले से ज्यादा आया है, लेकिन गंगा के प्रति जो संवेदनशीलता और व्यवस्था होनी चाहिए उसके लिए समाज के बीच जन जागरण होने की आवश्यकता है. लिहाजा गंगा को स्वच्छ रखने के लिए गंगा के चारों ओर सघन वन के साथ ही इस बात पर जोर देना होगा कि गंगा में किसी भी प्रकार का प्रदूषण ना जाए.
वहीं, शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक ने बताया कि गंगा नदी में गिरने वाला एक भी नाला ऐसा नहीं है, जिसकी टैपिंग ना की गई हो. यानी सभी नालों की टैपिंग की जा चुकी है. यही नहीं गंगा के प्रदूषण की स्थिति हर महीने चेक की जा रही है, जिसकी रिपोर्ट भी तैयार की जाती है. वर्तमान समय में गंगा की स्थिति अच्छी है, हालांकि लॉकडाउन के दौरान गंगा पूरी तरह से साफ हो गई थी.