भोपाल।प्रदेश में कोरोना अब गांवों की ओर पैर पसारने लगा है. गावों में सरकार भले ही बड़े-बड़े दावे कर रही हो कि मेडिकल किट, किल कोरोना के तहत स्वास्थ्य कर्मी, डॉक्टर और अन्य हेल्थकेअर वर्कर्स को मैदान में उतार दिया है, लेकिन हकीकत दावों से बिल्कुल अलग है. यहां न डॉक्टर देखने को मिल रहे हैं और न ही कोई अन्य. प्रदेश में डॉक्टर्स की कमी के चलते मौजूद डॉक्टरों के कंधों पर जिम्मेदारी काफी बढ़ गई है.
प्रदेश में हैं 38180 डॉक्टर
दरअसल,मध्यप्रदेश जब बना था तब यहां डॉक्टरों की संख्या 7400 थीं, लेकिन आज प्रदेश में 38180 डॉक्टर हैं. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक एक हजार की आबादी पर एक एलोपैथिक डॉक्टर होना चाहिए. इस हिसाब से प्रदेश की आबादी साढे सात करोड़ है. ऐसे में देखा जाए तो 75 हजार से ज्यादा डॉक्टर होने चाहिए.
8717 चिकित्सा अधिकारी और विशेषज्ञों के पद
वहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला अस्पताल तक 8717 चिकित्सा अधिकारी और विशेषज्ञों के पद हैं, लेकिन 4527 अभी खाली हैं. 1199 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 284 बिना डॉक्टर , 645 बिना लेब टेक्नीशियन और 407 बिना फार्समेंसिस्ट के हैं.
2233 स्वास्थ्य केंद्रों की जरूरत
नेशनल हेल्थ सर्वे के मुताबिक, प्रदेश के लिए 2233 स्वास्थ्य केंद्रों की जरूरत है. यहां 334 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, जबकी 575 की जरूरत है. प्रदेश में अभी 10 सरकारी मेडीकल कॉलेज और 7 प्राइवेट मेडीकल कॉलेज हैं. सभी को मिलाकर करीब तीस हजार एमबीबीएस की सीटें हैं.