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उपचुनाव से पहले शिवराज का 'मास्टर प्लान', MP के मूल निवासियों को ही मिलेगा रोजगार कितना संभव ?

कोरोना संकट के दौर में मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने सरकारी नौकरी को लेकर बड़ा ऐलान किया है. मंगलवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि, अब मध्यप्रदेश की सभी सरकारी नौकरियां सिर्फ राज्य के लोगों को ही मिलेंगी. इसके लिए जल्द ही जरूरी कानूनी बनाया जाएगा. उपचुनाव से ठीक पहले किए गया एलान के बाद क्या वाकई इस तरह का कानून बनेगा या फिर शिवराज सिंह की ये घोषणा सिर्फ चुनावी स्टंट है. देखिए ये रिपोर्ट.

Shivraj's master plan
शिवराज का मास्टर प्लान

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Published : Aug 20, 2020, 1:40 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश में होने जा रहे उपचुनाव के मौसम में शिवराज सरकार तरह- तरह की घोषणाएं कर रही है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की घोषणा ने मध्यप्रदेश में राजनीतिक माहौल गर्म कर दिया है. शिवराज सिंह ने एक बयान जारी करके कहा है कि, 'मध्यप्रदेश की सरकारी नौकरियां अब केवल मध्यप्रदेश के बच्चों को दी जाएगी. इसके लिए हम आवश्यक कानूनी प्रावधान करने जा रहे हैं'. उनके इस ऐलान के बाद सियासत तो तेज हो ही गई है, लेकिन बड़ा सवाल ये खड़ा हो रहा है कि, कोई भी राज्य क्या ऐसा प्रावधान कर सकता है कि, उसकी सरकारी नौकरियों में देश के किसी दूसरे राज्य के बच्चों का हक नहीं होगा.

उपचुनाव से पहले शिव'राज' का 'मास्टर प्लान'

कांग्रेस जहां इसे सिर्फ चुनावी शिगूफा बता रही है और भारत के संविधान के खिलाफ बता रही है, तो वहीं बीजेपी, कांग्रेस के पेट में दर्द होने की बात कर रही है, लेकिन कानून के जानकारों का कहना है कि, सभी सरकारी नौकरियों पर सिर्फ मध्यप्रदेश के युवाओं का हक हो, ऐसा कानून बनाना संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 का उल्लंघन होगा. इस तरह का कानून बनाना संविधान के अनुसार संभव नहीं है. ऐसा जरूर किया जा सकता है कि, मध्यप्रदेश के निवासियों को अन्य राज्यों के निवासियों की अपेक्षा कुछ प्राथमिकता या विशेष फायदा दिया जाए.

18 अगस्त को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का एक बयान जारी हुआ. इस छोटे से बयान में उन्होंने साफ तौर पर कहा कि "आज मध्य प्रदेश सरकार ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है. मध्य प्रदेश की शासकीय नौकरियां अब केवल मध्य प्रदेश के बच्चों को दी जाएंगी. इसके लिए हम आवश्यक कानूनी प्रावधान कर रहे हैं. मध्य प्रदेश के संसाधन मध्य प्रदेश के बच्चों के लिए है. नपे तुले शब्दों में जारी किए गए इस बयान के बाद बहस छिड़ गई, कि क्या वाकई में ऐसा किया जा सकता है. इसको लेकर मध्य प्रदेश कांग्रेस का कहना है कि, हाईकोर्ट में इसी सिलसिले में 2018 में एक याचिका दायर की गई थी. हाईकोर्ट ने इस तरह के फैसलों को सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 का उल्लंघन बताया था.

फाइल फोटो (सीएम शिवराज सिंह)

'सीएम शिवराज का ऐलान स्वागत योग्य'

इस मामले में भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि, शिवराज सिंह ने जो एलान किया है, वह स्वागत योग्य है और आम जनता के हित में हैं. बड़ा सवाल ये है कि, भाजपा की सरकार जब कोई जनहित का निर्णय लेती है, तो कांग्रेस के पेट में दर्द क्यों होता है. वहीं इस मामले में कानून के जानकार कहते हैं कि, संवैधानिक व्यवस्था के तहत इस तरह का प्रावधान किया जाना संभव नहीं है. अगर कोई राज्य इस तरह का कानून बना भी देगा, तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जाएगी और वो कानून अपने आप समाप्त हो जाएगा. जानकारों का ये कहना जरूर है कि, कोई भी राज्य अपनी ऐसी नौकरियों में जहां स्थानीय लोगों की आवश्यकता है. वहां अपने राज्य के मूल निवासियों को प्राथमिकता दे सकता है. कोई विशेष फायदा देने की व्यवस्था कर सकती है.

कांग्रेस ने सीएम शिवराज को बताया घोषणावीर

इस मामले में मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता विकी खोंगल का कहना है कि, मध्यप्रदेश के स्वघोषित मामा यानि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह झूठ इतनी सफाई से बोलते हैं कि, सच को भी पसीना आ जाए. इसी कड़ी में उन्होंने मध्यप्रदेश के मूल निवासी युवाओं से बोला है कि, प्रदेश के 100 फीसदी शासकीय पदों में उन्हें आरक्षण दिया जाएगा, जबकि इस मामले में 2018 में दायर की गई एक याचिका पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि, संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 का उल्लंघन कोई भी राज्य सरकार शासकीय पदों के मामले में नहीं कर सकती है, जिसमें स्पष्ट उल्लेख है कि, किसी भी क्षेत्र या राज्य के आधार पर शासकीय नौकरियों में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है. इसलिए 100 फीसदी आरक्षण देने की बात जो उन्होंने की है, वो सिर्फ चुनावी जुमले के अलावा कुछ नहीं है. पहले भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की 20,000 से ज्यादा घोषणाएं अधूरी हैं.

फाइल फोटो (सीएम शिवराज सिंह)

'कांग्रेस के पेट में दर्द होना स्वाभाविक'

वहीं इस मामले में भाजपा के प्रवक्ता राजपाल सिंह सिसोदिया का कहना है कि, 'मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश के संसाधनों पर पहला अधिकार मध्य प्रदेश के युवाओं का है, ऐसा निर्णय लेने का काम किया है, जो स्वागत योग्य है. जब-जब युवाओं या आम जनता के हित में भाजपा की सरकार कोई निर्णय लेती है, तो कांग्रेस के पेट में दर्द क्यों होता है ? मेरा यह प्रश्न है कि, कांग्रेस को क्यों आर्टिकल याद आते हैं ? क्यों संविधान और हाईकोर्ट याद आता है ? क्योंकि खुद तो कुछ करते नहीं हैं, वह तो इस प्रकार के निर्णय ले नहीं सकते हैं, लेकिन भाजपा के मुख्यमंत्री इस प्रकार के निर्णय लेते हैं, तो कांग्रेस के पेट में दर्द होना स्वाभाविक है'.

क्या कहता है कानून

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के वकील शांतनु सक्सेना का कहना है कि, इस घोषणा को लेकर जिस तरीके से जनता में बात आ रही है कि, मध्य प्रदेश की नौकरियां केवल मध्य प्रदेश के लोगों के लिए रहेंगी. देखा जाए तो संविधान का अनुच्छेद 16 सरकारी नौकरियों में अवसर और समानता की बात करता है. इसमें कोई भी प्रावधान जन्म स्थान के आधार पर नहीं किया जा सकता है. कोई भी व्यवस्था इस तरह से करना सही नहीं है. यह बात संविधान के खिलाफ जाएगी, लेकिन ये ऐसा करते हैं, तो व्यवस्था को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है. लेकिन दूसरा पहलू यह हो सकता है कि, कई बार जरूरी होता है कि कुछ नौकरियां ऐसी होती हैं, जिनमें हमें स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देनी होती है, जैसे पंचायत और आंगनबाड़ी से संबंधित नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दे सकते हैं. तो आप उनको मूल निवास के आधार पर या किसी दूसरे प्रावधान के आधार पर व्यवस्था कर सकते हैं.

कुल लोगों को प्राथमिकता देने का प्रावधान

वकील शांतनु सक्सेना का कहना है कि, यदि उस नौकरी में किसी दूसरे प्रदेश का व्यक्ति प्रयास कर रहा है, जिसमें हमें स्थानीय लोगों की जरूरत है, तो ऐसी स्थिति में हम स्थानीय व्यक्ति को किसी दूसरी व्यवस्था के तहत नौकरी दे सकते हैं या तो ऐसी नौकरियों में स्थानीय लोगों की आवश्यकता का प्रावधान किया जा सकता है या फिर कुछ बोनस नंबर दिए जा सकते हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े

रोजगार पंजीयन के दफ्तरों में बेरोजगारों की कुल संख्या 32 लाख 57 हजार 136 है. इनमें से मप्र के मूल निवासी 29 लाख 81 हजार हैं, शेष बाहरी हैं. राज्य सरकार ने फैसला लिया है कि, सरकारी नौकरी अब मप्र के लोगों को ही मिलेगी. साफ है कि, इस फैसले से मप्र के युवाओं को फायदा तो होगा, लेकिन रोजगार पंजीयन के दफ्तरों से मिले आंकड़ों पर ही भरोसा करें तो सभी बेरोजगारों को नौकरी देने में सरकार को करीब 20 साल से ज्यादा का समय लग जाएगा.

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