भोपाल।मध्यप्रदेश के भोजपुर मंदिर को उत्तर का सोमनाथ कहा जाता है, क्योंकि इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है. महाशिवरात्रि को यहां भव्य मेला लगता है. भक्तों की दो किमी लंबी कतार लगती है, लेकिन सोमनाथ मंदिर की तरह इसे सरकार ने संवारा नहीं. जबकि इस मंदिर के ऊपर भी मुगल काल में हमले हुए हैं. 997 साल पहले जब भोपाल मंडल को तोड़ा गया था, इतिहासकारों के अनुसार उसी समय भोजपुर मंदिर को भी ध्वस्त करने का प्रयास किया गया और भी ऐसी कई बातें हैं, जिनसे लोग अंजान हैं. पहली बार ईटीवी भारत ने मंदिर संबंधी दस्तावेज जुटाए और प्राप्त किए ऐसे तथ्य जो आपको चौंका देंगे.
ईटीवी भारत ने खोजी कई कहांनियां:शहर के केंद्रीय बिंदु एमपी नगर से करीब 25 किमी दूर स्थित भोजपुर मंदिर का 2.25 मीटर ऊंचा शिवलिंग ही इसका आकर्षण है. भगवान महादेव के इतने विशाल शिवलिंग के दर्शन करने के लिए पूरे भारत से भक्त यहां आते हैं. पूरे वर्ष में श्रावण मास, मकर सक्रांति और महाशिवरात्रि पर भक्तों की भारी भीड़ जुटती है. इसका अधूरा स्वरूप देखकर लोगों के मन में कई सवाल उठते हैं. उनके जवाब के रूप में महाभारत कालीन एक कथा सर्वाधिक प्रचलित है. इसके अनुसार पांडवों ने वनवास के दौरान अपनी मां कुंती के लिए इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में किया था, लेकिन ईटीवी भारत की खोज में ऐसी कुछ और भी कहानियां सामने आई हैं, जिनसे पता चलता है कि सोमनाथ मंदिर की तरह भोजपुर मंदिर ने भी मुगल काल में हमले सहे हैं.
किताब में मिलता है उल्लेख: लेखक श्याम सुंदर सक्सेना की किताब में उल्लेखित है कि भोजपुर मंदिर में एक अभिलेख है, जिसमें संवत 1051 अंकित है. इस अभिलेख के अनुसार राजा भोज के उत्तराधिकारियों ने अपने राज्य में मंदिरों का निर्माण जारी रखा था. परमार काल में 1148 तक यह परंपरा जारी रही, लेकिन बाद में मुगल कालीन हमले शुरू हो गए. डॉ. अशफाक अली की किताब भोपाल पास्ट एंड प्रेजेंट के अनुसार वर्ष 1236 ईसवी में सुल्तान शम्सउद्दीन अल्तमश ने भोपाल के सभा मंडल को तोड़ दिया था. लेखक ने इसी समय भोजपुर मंदिर पर भी हमले की आशंका जताई है, क्योंकि इस समय मुगल शासन का विस्तार यहां होना बताया गया है. इसी मंदिर पर दूसरे हमले का जिक्र 1405 से 1434 ईसवी के बीच मिलता है. राजाभोज द्वारा जिस ताल का निर्माण भोजपुर मंदिर के आसपास कराया था, उसके डैम को मालवा के शासक एहसान उद्दीन अलपखां होशंगाशाह ने तोपों से उड़वा दिया था. बताया जाता कि डैम इतना विशाल था कि होशंगाशाह की सेना इसे तीन महीने तक लगातार तोड़ती रही और इसके बाद इसे खाली होने में तीन साल का समय लग गया.