भोपाल। मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर पहली बार हो रहे उपचुनाव को महासंग्राम माना जा रहा है. एक तरफ कांग्रेस से 18 साल पुराना नाता तोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं, तो वहीं दूसरी तरफ हाल ही में मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने वाले कमलनाथ. लिहाजा ये उपचुनाव कमलनाथ बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया है. यही वजह है कि, हर सभा में कांग्रेस का चुनावी मुद्दा ज्योतिरादित्य सिंधिया के इर्द गिर्द ही घूम रहा है और कांग्रेस नेता जनता के बीच सिंधिया को गद्दार बताने में जुटे हैं. वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी 15 महीने की पूर्व कमलनाथ सरकार में जमकर प्रहार किए, जबकि दोनों ही दलों के नेताओं ने चुनावी तरकश से अमर्यादित भाषा के तीर भी खूब चलाए.
ग्वालियर-चंबल का सीट गेम
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र को सिंधिया का गढ़ माना जाता है जहां 16 सीटों पर उपचुनाव है. इस क्षेत्र में पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी प्लेयर के तौर पर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. इस क्षेत्र से बीजेपी के अन्य दिग्गजों में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और चौहान सरकार में वरिष्ठ मंत्री नरोत्तम मिश्रा शामिल हैं. यहीं वजह है कि बीजेपी और कांग्रेस ने जीत के लिए यहां पूरी ताकत झोंक दी. इस स्थिति में कमलनाथ पर पूरा दबाव है कि, वे अपने स्तर पर सिंधिया की गैरमौजूदगी में चंबल की कितनी सीटें निकाल पाते हैं.
सिंधिया पर दिखी कांग्रेस की बौखलाहट
कांग्रेस और कमलनाथ ने चंबल सहित पूरे मध्यप्रदेश में वोटर्स तक अपनी बात पहुंचाई कि जिन लोगों ने जनादेश के साथ धोखा किया, जो लोग कांग्रेस के वोट पर जीत कर आए और आज बीजेपी के साथ हैं, उन्हें उपचुनाव में नकार देना चाहिए. कांग्रेस की यह अपील कितनी कारगर साबित होती है, यह देखने वाली बात होगी. इसके साथ ही कांग्रेस ने कृषि कानून के मुद्दे पर भी बीजेपी को घेरा है क्योंकि मध्यप्रदेश का उपचुनाव किसानों के मुद्दे पर प्रमुखता से लड़ा जा रहा है.
सिंधिया समर्थकों की अग्निपरीक्षा
जिन सिंधिया समर्थकों को शिवराज मंत्रिमंडल में जगह मिली हुई है, उनके लिए अपनी सीट बचाए रखने के लिए उपचुनाव जीतना जरूरी है, नहीं तो उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है. इनमें महेंद्र सिंह सिसोदिया, प्रभुराम चौधरी, प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, बिसाहू लाल सिंह, एदल सिंह कंसान, राज्यवर्धन सिंह कैबिनेट मंत्री हैं, तो वहीं राज्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे ओपीएस भदौरिया, गिरिराज दंडोतिया, सुरेश धाकड़ और बृजेंद्र सिंह यादव शामिल हैं.
बसपा बिगाड़ सकती है वोटों का गणित
बसपा ने सभी 28 सीटों पर कैंडिडेट उतारे हैं, जबकि सपाक्स (सामान्य, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक कल्याण समाज) पार्टी ने भी 16 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. चंबल की 16 सीटों में 12 सीटें ऐसी हैं, जहां बीएसपी के उम्मीदवार कभी न कभी जीत दर्ज कर चुके हैं. इस लिहाज से बीएसपी की तैयारी पहले की तरह पुख्ता मानी जा रही है और वह बीजेपी-कांग्रेस को टक्कर देने की स्थिति में दिख रही है. चंबल का इलाका उत्तर प्रदेश से सटा है, इसलिए बीएसपी प्रमुख मायावती का यहां दबदबा माना जाता है. बीएसपी हालांकि मध्यप्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन चंबल संभाग की सीटों पर कड़ी टक्कर दे रही है.