भोपाल।करीब 300 वर्ष पहले इस स्थान की खोज संत परंपरा के एक महंत धर्मगिरी दास जी ने की थी. देश का एकमात्र स्थान है, जहां शिव का अभिषेक बरगद के वृक्ष से निकलने वाले जल से होता है. यह दृश्य देखकर भक्त ईश्वरीय वरदान कहते हैं. रातापानी जंगल के बीच स्थित इस महादेव मंदिर के बारे में जब ईटीवी भारत को जानकारी मिली तो शिवरात्रि के एक दिन पहले टीम मौके के लिए रवाना हुई. भोपाल से मंडीदीप और फिर वहां से दाहोद हाेते हुए हम जावरा गांव पहुंचे. यहां पर्वतों की कंदराओं से निकलकर और पेड़ों की जटाओं से बहकर मां नर्मदा शिवलिंग का अभिषेक करती हैं. इस घने जंगल में भगवान शिव की आराधना करने वाले महंत का दावा है कि, मां नर्मदा का ही यह जल है. इस स्थान पर जाने के लिए वन विभाग ने प्रतिबंध लगा दिया है.
ऊबड़-खाबड़ सीढ़ियां:यहां वन विभाग की चौकी थी, जिसके पार बिना अनुमति के जाना मना था. इस जगह से महादेव मंदिर की दूरी करीब 4.5 किमी दूर थी, तो पैदल ही उस स्थान के लिए निकल गए. रास्ते में एक बाइक मिली. उसी पर सवार होकर हम दोपहर करीब 1 बजे मंदिर के पास पास पहुंचे. मंदिर तक सीधे वाहन नहीं जाता है. यहां तक पहुंचने के दो रास्ते हैं. कुछ भक्तों ने प्रतिबंध लगने के पहले सीढ़ियां बनाई थी, जो अब ऊबड़ खाबड़ हो गई हैं.
पर्वत की कंदराओं के बीच से बहता है जल: दूसरा रास्ता नीचे की तरफ से आता है. यहां से कुछ गांव के लोग आते हैं. हम ऊपर के रास्ते से होते हुए पहांड़ियो के बीच स्थित इस मंदिर तक पहुंचे. दूर से हम पानी गिरने की आवाज आने लगी थी. महादेव मंदिर के पहले ही पार्वती धारा नामक स्थान मिला. इस स्थान पर पर्वत की कंदराओं के बीच से जल बहकर आ रहा था. इसके बाद भैरों का स्थान है. इससे नीचे ही पेड़ की जड़ से पानी गिरता हुआ हमें दिखाई दिया. पानी की तेज धारा अनवरत यहां बह रही थी. गिरने के बाद एक कुंड में पानी जमा हो रहा था, लेकिन फिर जमीन में ही समा जाता. ऐसा लगता, जैसे सिर्फ शिव अभिषेक के लिए ही नर्मदा जी यहां प्रकट हुई हैं.
300 वर्ष पहले हुई थी खोज:यहां देखरेख करने वाले महंत हरि गिरी दास जी महाराज से बात की तो उन्होंने बताया कि उनकी उम्र 70 वर्ष है. वे बीते 30 वर्ष से इस स्थान पर भगवान महादेव का पूजन कर रहे हैं. उनके पहले महंत रामगिरी दास जी बाबा और उनके पहले धर्म गिरी दास जी बाबा यहां रहते थे. उन दोनों ही संतों की समाधि मंदिर स्थल से ऊपर की तरफ से स्थानीय ग्रामीणों ने बनाई हुई है. हरि गिरी दास बाबा ने बताया कि इस स्थान की खोज धर्म गिरी दास जी ने की थी. उन्हें स्वप्न में यह स्थान दिखाई दिया और वे यहां आ गए. तब यह जंगल एकदम बियाबान था. आजादी मिलने तक यह नवाब की रियासत थी. फिर जमीदारी में चली गई. करीब 50 साल पहले यहां भक्तों के आने का सिलसिला शुरू हुआ. जिसे अब वन विभाग ने रोक दिया है.