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पदोन्नति में आरक्षण: 10 अक्टूबर को आ सकता है 'सुप्रीम' फैसला, कोर्ट ने कहा 2 हफ्ते में अपना पक्ष रखें राज्य

कोर्ट ने मध्य प्रदेश सहित दूसरे राज्यों को अपना पक्ष रखने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया है. सुप्रीम कोर्ट में आज हुई सुनवाई के बाद राज्यों के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण के मामले पर कोई फैसला आने के लिए तकरीबन 1 महीने का इंतजार करना होगा.

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पदोन्नति में आरक्षण: 10 अक्टूबर को आ सकता है 'सुप्रीम' फैसला

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Published : Sep 14, 2021, 9:20 PM IST

भोपाल। प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट 10 अक्टूबर को फैसला देगा. इस मामले में मंगलवार को लगभग 1 घंटे तक सुनवाई हुई. जिसके बाद कोर्ट ने मध्य प्रदेश सहित दूसरे राज्यों को अपना पक्ष रखने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया है. सुप्रीम कोर्ट में आज हुई सुनवाई के बाद राज्यों के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण के मामले पर कोई फैसला आने के लिए तकरीबन 1 महीने का इंतजार करना होगा.

पदोन्नति में आरक्षण: 10 अक्टूबर को आ सकता है 'सुप्रीम' फैसला
पदोन्नति में आरक्षण: 10 अक्टूबर को आ सकता है 'सुप्रीम' फैसला



प्रदेश में 5 साल से बंद हैं प्रमोशन
मप्र में बीते पांच साल से पदोन्नतियां होना बंद हैं. इस बीच हजारों अधिकारी-कर्मचारी पात्र होने के बावजूद बिना पदोन्न्त हुए ही सेवानिवृत हो गए. पदोन्नति में आरक्षण लागू होने से पहले, नियम 2002 के तहत अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नति होती थी, लेकिन 2016 में उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी थी, दरअसल, अनारक्षित वर्ग की ओर से अनुसूचित जाति-जनजाति को दिए जा रहे आरक्षण की वजह से उनके अधिकार प्रभावित होने का मुद्दा उठाया गया था. इस मामले में उच्च न्यायालय ने पदोन्नति नियम में आरक्षण, बैकलॉग के खाली पदों को कैरी फारवर्ड करने और रोस्टर संबंधी प्रावधान को संविधान के विरुद्ध मानते हुए इन पर रोक लगा दी थी.

पदोन्नति में आरक्षण: 10 अक्टूबर को आ सकता है 'सुप्रीम' फैसला

राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है
प्रमोशन में आरक्षण मामले को लेकर राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिस पर फैसला होना अभी बाकी है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार को फिलहाल यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए हैं. इस मामले में संभवत: 10 अक्टूबर को फैसला आ सकता है. इस मामले में राज्य अधिकारी कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष का कहना हैं कि सरकार को पदोन्नति देना चाहिए उनका कहना है कि बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के आधार पर प्रमोशन दे रही है मध्य प्रदेश सरकार भी वैसा ही कर सकती है.



OBC को रिजर्वेशन दिए जाने जैसा प्रावधान चाहते हैं कर्मचारी संगठन
मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और प्रदेश में पदोन्नतियां रुकी हुई हैं. ऐसे में कर्मचारी संगठनों को कहना है कि जिस तरह से पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिए जाने के मामले में न्यायालय में लंबित मामलों को छोड़कर बाकी परीक्षाओं में 27 प्रतिशत आरक्षण देने का सरकार ने फैसला लिाय है, वैसा ही प्रावधान अपनाकर सरकार उन्हें पदोन्नति दे सकती है. कई मामलों में सरकार ने ऐसा तरीका अपनाकर प्रमोशन दिया है. वहीं कर्मचारी संगठनों की नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि कोर्ट में सरकार के वकीलों ने अपना पक्ष सही तरीके से नही रखा इसी के चलते पदोन्नति रुकी हुई है. कर्मचारी नेताओं का कहना है कि जैसा गृह विभाग ने पदोन्नति दी है वैसी ही दूसरे विभागों में देना चाहिये.



तैयार हुआ नए नियम का मसौदा
सरकार नए पदोन्नति नियम का मसौदा तैयार कर चुकी है। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार, अपर मुख्य सचिव गृह डॉ.राजेश राजौरा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की समिति बनाई गई थी. समिति ने सभी पहलुओं पर विचार करने और विधि विशेषज्ञों का मत लेने के बाद नए नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है. इसे अब कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है, जिसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रस्ताव भेज दिया है. इसे लेकर प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का कहते हैं कि सभी पक्षों से बातचीत कर बेहतर समाधान निकालेंगे.



सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में सपाक्स
सामान्य वर्ग के कर्मचारियों की बात उठाने वाला सफाई कर्मचारी संगठन पदोन्नति में आरक्षण के मसले पर फिर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने जा रहा है. उसका कहना है कि मध्य प्रदेश में नौकरियों में जो 27% आरक्षण ओबीसी को दिया जा रहा है उसके वैधानिक संकट बन गया है, क्योंकि आरक्षण की सीमा 65% से ऊपर हो रही है जहां तक ओबीसी वर्ग का सवाल है तो आबादी के लिहाज से उन को 27% आरक्षण दिया जा सकता है, लेकिन sc-st को जो आरक्षण दिया जा रहा है वह आबादी के हिसाब से बहुत ज्यादा है

सरकार को भी पदोन्नति में आरक्षण के मसले पर 10 अक्टूबर को फैसला आने की उम्मीद है. क्योंकि यह मसला सरकार के भी गले की फांस बना हुआ है. कर्मचारियों की नाराजगी देखते हुए सरकार विधानसभा चुनावों से पहले सेवानिवृति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर चुकी है. लेकिन उसके बाद भी बड़ी संख्या में अधिकारी-कर्मचारी पदोन्नत हुए बिना ही सेवानिवृत्त होते जा रहे हैं जो आगे आने वाले चुनावों में सरकार की परेशानी बढ़ी सकते हैं.

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