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Exclusive: छोटे घरों से निकलकर हासिल किया मुकाम, सुनिए Women's Hockey Team के खिलाड़ियों की कहानी

Olympics 2020 में सेमिफाइनल तक पहुंचने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम (Indian Women's Hockey Team) के खिलाड़ियों का मध्य प्रदेश सरकार ने सम्मान किया. इस दौरान खिलाड़ियों ने ईटीवी भारत (Etv Bharat) से खास बातचित की. खिलाड़ियों ने अपनी कहानियों को साझा किया. उन्होंने बताया कि किस तरह पितृसत्ता (Patriarchy) जैसी सोच को तोड़कर यहां तक पहुंचे है. जानिए खिलाड़ियों की कहानी उन्हीं की जुबानी...

Story of Players of Women's Hockey Team
Women's Hockey Team के खिलाड़ियों की कहानी

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Published : Sep 28, 2021, 10:43 PM IST

भोपाल।Olympics 2020 में अपना जोहर दिखाने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम (Indian Women's Hockey Team) की खिलाड़ियों का मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने सम्मान किया. सम्मान स्वरूप खिलाड़ियों को 31-31 लाख रुपए की राशि भेंट की. सीएम चौहान कहा कि बेटियों के सम्मान में कोई भी कमी नहीं रहने दी जाएगी. सम्मान प्राप्त करने के बाद ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए महिला खिलाड़ियों ने कहा कि ऐसे सम्मान मिलने से मनोबल बढ़ता है.

महिला खिलाड़ियों ने ईटीवी भारत (Etv Bharat) से अपने जीवन से जुड़ी कई बातें भी शेयर की. उन्होंने बताया कि अभाव और संघर्ष से वे आगे बढ़ी है. हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल, सुशीला चानू और अन्य खिलाड़ियों से संवाददाता आदर्श चौरसिया ने बात की.

Women's Hockey Team के खिलाड़ियों की कहानी

सम्मान से मिलता है प्रोत्साहन

हरियाणा की रहने वाली टीम की कप्तान रानी रामपालकहती हैं कि ऐसे सम्मान से निश्चित तौर पर प्रोत्साहन मिलता है. जब ऐसे सम्मान मिलते हैं, तो खिलाड़ी में खेलने की ललक पैदा होती है. टीम की एक और खिलाड़ी मणिपुर की सुशीला चानूका कहना है कि उन्होंने मध्यप्रदेश की ग्वालियर अकादमी में ही प्रैक्टिस की है. यहीं से निकलकर वह आगे गई है. सुशीला बताती हैं कि जब सेमीफाइनल का मैच था, उस समय सभी खिलाड़ियों के मन में यह था कि मैच को किसी भी तरह से जीतना है. लेकिन उसके पहले से सब की यही सोच थी कि एक-एक मैच पर ध्यान लगाया जाए.

किसी ने नहीं सोचा था सेमीफाइनल तक पहुंचेंगे

सुशीला चानू बताती है कि टीम के किसी भी सदस्य ने यह नहीं सोचा था कि वह क्वार्टर फाइनल से लेकर सेमीफाइनल फाइनल तक पहुंचेंगे. उनका उद्देश्य हर मैच को जीतना था. सुशीला कहती हैं कि उनके जीवन में भी काफी संघर्ष रहा है. खेल के दौरान कई कठिनाइयां आई, लेकिन उन कठिनाइयों को पार कर लिया. खेल के साथ-साथ उनको भाषा की भी सबसे ज्यादा समस्या होती थी. हिंदी के कारण उन्हें कई बात समझ में ही नहीं आती थी. ऐसे में उन्होंने धीरे-धीरे हिंदी को भी सीखा.

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खिलाड़ियों को भी होती है पैसे की जरूरत

हरियाणा की रहने वाली खिलाड़ी नवनीत कौरकहती हैं कि जिस तरह से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने खिलाड़ियों का सम्मान किया हैं, वैसे ही अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भी आगे आएंगे. खिलाड़ियों को भी पैसे की जरूरत होती है. खिलाड़ी जो है वह छोटे-छोटे गांव से आती हैं, उनके पिता भी किसान हैं. इनके गांव में लड़कियों को आगे आने की अनुमति नहीं थी, लेकिन पिता के सहयोग से यह आगे आई.

आगे बढ़ने के लिए सम्मान जरूरी होता है

ओलंपिक में सबसे ज्यादा गोल दागने वाली खिलाड़ी गुरजीत कौरअमृतसर की रहने वाली है. वह कहती हैं कि जब इस तरह से सम्मान और राशि मिलती है तो अन्य राज्य भी आगे आते हैं. वहीं खिलाड़ी सविता पूनियाभी कहती हैं कि सम्मान आगे बढ़ाते हैं और ये जरूरी भी होते हैं.

आंध्र प्रदेश की खिलाड़ी रजनीकहती हैं की सरकार जिस तरह से मोटिवेट कर रही है, इसके माध्यम से कई और खिलाड़ी निकल के आएंगे. रजनी के पिता कारपेंटर का काम करते हैं. वह भी एक सामान्य परिवार से हैं. वह कहती हैं कि 3 बहने होने के बाद भी बड़ी परेशानी जीवन में आई. लेकिन पिता का सहयोग मिला, तो मैं आगे बढ़ पाई. इस मुकाम तक अपने पिता के कारण ही हूं.

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सुविधा नहीं, फिर भी खेल रहे ग्रामीण खिलाड़ी

झारखंड की रहने वाली खिलाड़ी निक्की प्रधानभी इस तरह से जब राशि मिलने को बेहतर बताती हैं. वह कहती है कि आने वाले खिलाड़ी हैं उनको भी यह लगता है कि जब आप देश के लिए खेलते हैं, अच्छा परफॉर्मेंस करते हैं, तो ऐसे सम्मान और राशि मिलती है. निक्की कहती है कि जिस गांव में वह थी उस गांव में आज भी हॉकी की सुविधा नहीं है.

लेकिन कई खिलाड़ी उस गांव से निकले हैं. उनकी भी कोशिश है कि वह गांव में खेल का माहौल बना सकें. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि जब हम हारने के बाद जब देश में आएंगे तो इतना प्यार और सम्मान मिलेगा. लेकिन इतना सम्मान मिलने के बाद काफी खुशी होती है. अब अगला लक्ष्य वर्ल्ड कप और कॉमनवेल्थ में मेडल लाना है.

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