भोपाल। समर्थक भले अपने अपने आकाओं के साथ कैलाश विजयवर्गीय, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रहलाद पटेल, नरेन्द्र सिंह तोमर का नाम बढ़ाएं, लेकिन जो नाम इस रेस में सबसे आगे है वो शिवराज सिंह चौहान का है. बावजूद इसके कि वो 18 साल से इस प्रदेश के मुख्यममंत्री हैं 2023 में एंटी इन्कबमेंसी के डर में पार्टी ने उन्हें चेहरा नहीं बनाया. लेकिन नतीजों ने कहानी बदल दी है, क्यों शिवराज सत्ता की दौड़ में शामिल बाकी नेताओं से आगे चल रहे हैं. लेकिन इस बीच शिवराज ने एक ऐसा ऐलान कर दिया है जो सबको हैरत में डाल देगा. उन्होंने खुद को सीएम पद की रेस से अलग कर लिया है.
एमपी में बीजेपी की आंधी..शिवराज की बहना का भी कमाल:बेशक एमपी में बीजेपी को मिली बंपर जीत में पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने का नतीजा है. लेकिन इसमें शिवराज की अथक मेहनत और लाड़ली बहना योजना के इम्पैक्ट से भी इंकार नहीं किया जा सकता. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पवन देवलिया कहते हैं, "पीएम मोदी के चेहरे से तो एमपी में बाजी पलटी ही, लेकिन जिस तरह से शिवराज सिंह चौहान ने इस चुनाव में मेहनत की है. 165 से ज्यादा रैलियां और सभाएं और उसके साथ उन्होंने अपने ट्रस्टेड वोटर महिलाओं से जो आत्मीय जुड़ाव बनाया, उसने भी कमाल किया है. शिवराज असल में एमपी में किनारे होकर भी किनारे नहीं हुए."
किनारे होकर भी अपना वजूद साबित किया:शिवराज की जगह कोई दूसरा नेता होता तो शायद इस तरह से किनारे किए जाने के बाद खुद भी किनारे हो जाता, लेकिन शिवराज ने इसे चुनौती की तरह लिया. उन्होंने अकेले ही अपना अभियान जारी रखा और प्रचार के आखिरी दो दिनों में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री केवल भाई बन गए. बेहद रणनीतिक तरीके से वो सभाओं में जज्बाती सवाल करते और दूसरी तरफ उनकी लगातार बहनों के बीच से बेहद आत्मीय तस्वीरें वायरल होती गईं. ये शिवराज की ही रणनीति थी कि चुनाव के महीने तक लाड़ली बहना योजना की राशि महिलाओं के खाते में पहुंचे. वो महिलाओं को ये भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि अगर बीजेपी सरकार नहीं आई तो उनके खाते में आ रही राशि बंद हो जाएगी. महिलाओं का बढ़ चढ़कर मतदान में शामिल होना इसकी तस्दीक है.