भोपाल। सत्ता गिराने और बनाने के लिए मध्य प्रदेश में उपचुनाव की वोटिंग के बाद अब काउंटिंग का काउंटडाउन शुरु हो गया है. लेकिन वोटिंग होने तक यह चुनाव केवल सरकार बनाने और बचाने का चुनाव नहीं रहा, यह चुनाव कद्दावर नेताओं के लिए साख का सवाल बन गया तो कई नेताओं के लिए उनका भविष्य.
कांग्रेस से बगावत कर आए सिंधिया के लिए यह चुनाव उनकी प्रतिष्ठा का सवाल बन गया, तो सीएम शिवराज के लिए उनकी सरकार बचाने का. काउंटिंग से पहले कई राजनीतिक विश्लेषक शिवराज की सरकार बनना फिक्स मान रहे हैं, लेकिन बीजेपी की जीत का भरोसा होने के बाद भी कई नेता चिंता में है. बीजेपी में लगातार बढ़ रहे सिंधिया का कद ग्वालियर चंबल अंचल में बीजेपी के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर के लिए जहां एक खतरा है, वहीं शिवराज का एक विकल्प भी.
जाने वो 14 मंत्री जिनपर है सबकी नजर.
सुरखी से बीजेपी प्रत्याशी गोविंद सिंह राजपूत के सामने 2018 के चुनाव में बीजेपी के सुधीर यादव थे, जिसमें उन्होंने 14.88 फीसदी मतों से जीत हासिल की थी, यानि 2018 के चुनावों में गोविंद सिंह को 56.15 तो सुधीर यादव को 41.27 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन 2020 के उपचुनाव में गोविंद सिंह राजपूत की टक्कर 2013 में बीजेपी से विधायक रही पारुल साहू से है. पारुल साहू ने 2013 के चुनावों में कांग्रेस के गोविंद सिंह को कड़ी टक्कर दी थी और 0.1 प्रतिशत के वोट मार्जिंन से जीत हासिल की थी. सांवेर से बीजेपी प्रत्याशी तुलसीराम सिलावट के सामने 2018 के चुनाव में बीजेपी के राजेश सोनकर थे, जिसमें उन्होंने 1.5 फीसदी मतों से जीत हासिल की थी, यानी 2018 के चुनावों में तुलसीराम सिलावट को 49.01 तो राजेश सोनकर को 47.51 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन 2020 के उपचुनाव में तुलसीराम सिलावट की टक्कर 2018 में बीजेपी में शामिल हुए प्रेमचंद गुड्डू से है. सिंधिया की खास और चुनाव प्रचार के दौरान कमलनाथ के बयान के बाद सिंपैथी बटोरने वाली इमरती देवी के मुकाबले में इस बार कांग्रेस के सुरेश राजे हैं. खास बात ये की सुरेश राजे इमरती देवी के समधी हैं, इस कारण यहां पर इमरती देवी को वो कड़ी टक्कर देते हुए नजर आ रहे हैं. वहीं 2013 के चुनाव में सुरेश राजे बीजेपी के टिकट से लड़े थे. हालांकि उस समय भी वो इमरती देवी से 26.4 फीसदी के अंतर से हार गए थे. हलांकि इमरती देवी डबरा से पिछले तीन चुनावों में लगातार जीत हासिल करती आ रही हैं. 2018 की बात करें तो इमरती देवी ने 39.05% से जीत हासिल की थी, उन दिनों उनके सामने बीजेपी के कप्तान सिंह थे, जिन्हें 22.54 फीसदी वोट हासिल हुए थे. ग्वालियर विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी प्रद्युम्न सिंह तोमर के सामने कांग्रेस के सुनील शर्मा हैं. सुनील शर्मा का यह पहला चुनाव है, ऐसे में प्रद्युम्न सिंह के जीत की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. हालांकि यहां बीएसपी की भी कड़ी दावेदारी है और वो यहां से जीत का दावा भी करती रही हैं. 2018 के चुनाव में प्रद्युम्न सिंह तोमर के सामने बीजेपी के कद्दावर नेता जयभान सिंह पवैया थे, जिनसे 2013 में प्रद्युम्न सिंह तोमर 10.08 फीसदी के मत से हार चुके हैं. कांग्रेस से सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए महेंद्र सिंह सिसोदिया के सामने इस बार कन्हैया लाल अग्रवाल हैं. कन्हैया लाल अग्रवाल 2008 में बीजेपी के टिकट से महेंद्र सिंह सिसोदिया को हरा चुके हैं. वहीं 2013 में वे महेंद्र सिंह सिसोदिया से हार भी चुके हैं. ये दोनों ही प्रत्याशी तीसरी बार आमने सामने होंगे. इस कारण यहां टक्कर कांटे की मानी जा रही है. सांची से बीजेपी के उम्मीदवार प्रभुराम चौधरी के सामने कांग्रेस के मदनलाल चौधरी हैं. मदनलाल चौधरी जिला पंचायत के सदस्य हैं, वहीं इनके राजनीतिक सफर की बात करें तो इनका करियर प्रभुराम चौधरी के मुकाबले तीन गुना कम है. इस कारण प्रभुराम चौधरी 2020 के उस उपचुनाव में जीत को लेकर आश्वस्त हैं. दिग्विजय सरकार में प्रदेश के मंत्री रह चुके बिसाहूलाल सिंह भी सिंधिया के साथ ही, बीजेपी में शामिल हो गए और मंत्री पद से नवाजे गए. साथ ही उपचुनाव का टिकट भी हासिल किया. उपचुनाव में इनके सामने कांग्रेस के विश्वनाथ सिंह कुंजाम हैं. 2018 के चुनाव में बिसाहूलाल सिंह के सामने रामलाल रौतेल थे, जिन्हें बिसाहूलाल सिंह ने 9.4 फीसदी के मत अंतर से शिकस्त दी थी. हालांकि 2020 के चुनाव प्रचार के दौरान बिसाहूलाल सिंह विवाद में बने रहे, लेकिन इनकी जीत सिंधिया के क्लोस न होने के कारण बाजेपी के लिए जरूरी हो जाती है. सुमावली से बीजेपी के प्रत्याशी ऐदल सिंह कंषाना के सामने कांग्रेस के अजब सिंह कुशवाहा हैं. 2018 के चुनाव में भी ऐदल सिंह कंषाना के सामने अजब सिंह कुशवाहा थे, जो 8.41 फीसदी मतों के अंतर से हार गए थे. लेकिन अब वो पार्टी बदल कर फिर एक बार ऐदल सिंह के सामने हैं. अजब सिंह कुशवाहा एक बार बीजेपी से तो दो बार बीएसपी से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन जीत एक बार भी उनका हाथ नहीं लगी, इसलिए उम्मीद जताई जा रही है, कि ऐदल सिंह कंषाना की जीत एक बार फिर हो सकती है. पिछले तीन चुनावों में बीजेपी के राधेश्याम पाटीदार के सामने चुनाव लड़ कांग्रेस को जीत दिलाने वाले हरदीप सिंह डंग अब बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं. हरदीप सिंह डंग सामने इस बार छात्र राजनीती से एंट्री करने वाले कांग्रेस के राकेश पाटीदार हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव के बात करें तो हरदीप सिंह डंग ने बीजेपी के राधेश्याम पाटीदार को 0.17 फीसदी के वोट से हरा दिया था, लेकिन दलबदल के कारण राधेश्याम पाटीदार का टिकट हरदीप सिंह को दे दी गई, इसलिए उपचुनाव के दौरान भितरघात की आशंका भी बनी रही. राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव बदनावर से बीजेपी प्रत्याशीराज्यवर्धनसिंह दत्तीगांव के सामने इस बार कांग्रेस के कमल सिंह पटेल से है. कमल सिंह पटेलराज्यवर्धनसिंह दत्तीगांव के सिपहसलार भी रह चुके हैं. इसी कारण कुछ लोग तो इस सीट में गुना आम चुनाव के परिणाम दोहराने के बात कर रहे हैं. बता दें आम चुनाव में गुना से सिंधिया के सिपहसलार रह चुके केपी सिंह ने ही उन्हें हरा दिया था. 2018 के चुनाव के बात करें तोराज्यवर्धनसिंह का मुकाबला बीजेपी के भंवर सिंह शेखावत से था, जिन्हें उन्होंने 2018 में 25.16 फीसदी के मत अंतर से हरा दिया था, वहींराज्यवर्धनसिंह दत्तीगांव 2013 के चुनाव में भंवर सिंह शेखावत से 6.78 फीसदी के मतों से हार भी चुके हैं. मुंगावली विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के प्रत्याशी बृजेंद्र सिंह यादव का मुकाबला कांग्रेस के कन्हईराम लोधी से है. 2018 के चुनाव में बृजेंद्र सिंह यादव ने बीजेपी के कृष्ण पाल सिंह को 1.55 फीसदी मतों के अंतर से हरा दिया था. 2020 के उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट से मैदान में आए कन्हईराम लोधी का कोई बड़ा राजनीतिक करियर न होने के बाद भी चुनाव प्रचार में उन्हें जनता का समर्थन उनके पक्ष में देखने को मिला. माना जा रहा है कन्हईराम मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से हैं, लिहाजा जनता की सहानुभूति मिल सकती. बीजेपी के टिकट से चुनाव मैदान में उतरे कांग्रेस के बागी गिर्राज डंडोतिया का मुकाबला कांग्रेस के राघवेंद्र सिंह तोमर से है. राघवेंद्र सिंह तोमर 2013 में टिकट न मिलने पर बीएसपी छोड़ कांग्रेस का दामन थामा और चुनाव भी लड़ा. लेकिन बीएसपी के बलबीर सिंह डंडोतिया से चुनाव हार गए. जिस कारण 2018 में उनता टिकट कट गया. लेकिन अब गिर्राज डंडोतिया के दलबदल के कारण उन्हें फिर से कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है, देखना होगा की अपने करीबी प्रतिद्वंदी को कड़ी टक्कर देने वाले राघवेंद्र सिंह तोमर, गिर्राज डंडोतिया को कितनी टक्कर दे पाएंगे. पोहरी से बीजेपी के टिकट में चुनाव लड़ रहे सुरेश धाकड़ के सामने 2018 में उनसे मात खा चुके बीएसपी के कैलाश कुशवाहा हैं. 2018 के चुनाव में कैलाश कुशवाहा 4.85 फीसदी मतों के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश धाकड़ से हार गए थे. एक बार फिर दोनों आमने सामने हैं. वहीं बीजेपी ने यहां से हरिवलल्व शुक्ला को मैदान में उतारा है. पोहरी कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है, लेकिन यहां बीएसपी का दबदला हमेशा रहा है, इस कारण सुरेश धाकड़ की जीत का संशय आखिरी राउंड की काउंटिंग तक बरकरार रहने वाला है. मेहगांव विधानसभा क्षेत्र से ओपीएस भदौरिया ने 2018 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ कर बीजेपी के राकेश शुक्ला को 15.92 फीसदी मतों से हरा दिया था, लेकिन दल बदलकर अब वो बीजेपी के टिकट से मैदान पर हैं, तो उनके सामने कांग्रेस का नामी चेहरा और अटेर से विधायक रह चुके हेमंत कटारे से है. हेमंत कटारे का कांग्रेस से पुराना नाता रहा है और चुनाव प्रचार के दौरान जनता भी उनके पक्ष में नजर आई, इसलिए माना जा रहा है कि ओपीएस भदौरिया के हाथ से हेमंत जीत को खीच सकते हैं. बीजेपी में सिंधिया के कद का सवाल
सिंधिया के बढ़ते वर्चस्व को बरकरार रहने के लिए सिंधिया समर्थक उन गैर विधायक 14 मंत्रियों का जीतना जरूरी होगा, जिन्होंने 2018 के चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर लड़ कर कांग्रेस की सरकार बनाने में सहयोग किया था. वहीं इन्हीं 14 मंत्रियों की हार-जीत से मध्य प्रदेश बीजेपी के फ्रंटलाइन नेताओं का भविष्य भी तय होगा. अगर ये सभी मंत्री जीत दर्ज करते हैं, तो निश्चित ही बीजेपी में सिंधिया का कद बढ़ेगा.