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पत्रकारिता विकास के साथ हिंदी विकास की कहानी कहता सप्रे संग्रहालय - etv bharat news

पत्रकारिता के विकास के साथ-साथ हिंदी विकास की कहानी कहने वाले माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध विभाग की निदेशक डॉ मंगला अनुजा ने हिंदी दिवस के मौके पर ईटीवी भारत से की खास बातचीत.

हिंदी विकास की कहानी कहता सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय

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Published : Sep 14, 2019, 10:11 AM IST

Updated : Sep 14, 2019, 10:35 AM IST

भोपाल। राजधानी का माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध विभाग न सिर्फ पत्रकारिता के विकास से रूबरु कराता है बल्कि हिंदी विकास की कहानी भी बताता है. सन्1982-83 में हिंदी ग्रंथ अकादमी के लिए मध्य प्रदेश में पत्रकारिता के इतिहास की पांडुलिपि तैयार करने के सफर के दौरान पद्मश्री पत्रकार विजय दत्त श्रीधर प्रदेश के कई इलाकों में घूमे. इतिहास को संजोने के लिये जब पत्रकार श्रीधर हिंदी और पत्रकारिता के विकास के लिए अतुलनीय योगदान देने वालों के परिवारों से मिले तो उन्हें समझ आया कि पत्रकारिता जगत की महान विभूतियों की पत्र-पत्रिकाओं और दस्तावेजों का संग्रह जर्जर हो रहा है. जबलपुर के पंडित रामेश्वर गुरु ने विजय दत्त श्रीधर को प्रेरणा दी कि वह इन दुर्लभ दस्तावेजों को जगह संग्रहित करें. 19 जून 1984 से माधव राव सप्रे समाचारपत्र संग्रहालय का मिशन शुरू हुआ, जो आज देश का ऐसा संग्रहालय है जहां सालों पुराने साहित्यकारों और पत्रकारों के हस्तलिखित दस्तावेज मौजूद हैं.

हिंदी विकास की कहानी कहता सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय

सप्रे संग्राहलय एवं शोध संस्थान का महत्व-


हिंदी विकास में संस्थान के योगदान को लेकर संस्थान की निदेशक डॉं. मंगला अनुजा ने बताया कि इस संग्राहलय में सन् 1512 से लेकर आज तक की बौद्धिक विरासत यहां संरक्षित की जा रही है. माधवराव सप्रे ने मराठी भाषी होकर भी हिंदी के लिये बहुत काम किया है. हिंदी भाषा के विकास के जीवंत दस्तावेज हमें सप्रे संग्रहालय में मिल जाते हैं.

सप्रे संग्रहालय: हिंदी की विरासत को सहेजने का प्रयास -


डॉ. मंगला अनुजा बताती हैं कि यह संग्रहालय हिंदी की संपन्न विरासत का एकमात्र स्थान है, जहां जाकर मालूम चलता है हमारी भाषा इतनी समृद्ध और संपन्न हैं कि हम उससे जुड़ा कोई भी संदर्भ या विषय देखना चाहें तो सब कुछ मिल जाता है. भाषा कितनी संपन्न रही है इसके जीवंत दस्तावेज संग्रहालय में मिलते है.

नई पीढ़ी को हिंदी से जोड़े-


हिंदी से नई पीढ़ी को जोड़ने के लिए डॉ. मंगल अनुजा का मानना है कि सबसे पहले हिंदी को रोजगार से जोड़ना होगा. हिंदी के प्रति उनका रूझान लाना होगा, क्योंकि इस समय टीवी और फिल्मों पर अच्छी हिंदी बोलने वालों का ही राज है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण अमिताभ बच्चन है. हरिवंश राय के बेटे से शुरू हुआ उनका सफर यहां तक पहुंच गया है कि नई पीढ़ी उन्हें इस रूप में जानती है कि हरिवंश राय अमिताभ बच्चन के पिता थे. हिंदी भाषा वाणी की सुंदरता बढ़ाती है.

Last Updated : Sep 14, 2019, 10:35 AM IST

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