भोपाल। कोरोना काल ने बच्चों पर बुरा प्रभाव छोड़ा है. करीब दो महीने से अधिक समय तक घरों में बंद रहे बच्चों की शारीरिक गतिविधियां थम सी गई थी. इसका खामियाजा ये हुआ कि बच्चों के रिएक्शन टाइम सहित दूसरे कई दुष्प्रभाव सामने आए हैं. राजधानी भोपाल के चिकित्सकों के पास इस तरह की समस्याओं से ग्रस्त बच्चे इलाज के लिए पहुंच रहे हैं. वहीं काउंसर्स का कहना है कि फिजिकल की बजाए बच्चे मेंटल और इमोशनल ट्रामा से ज्यादा गुजर रहे हैं.
केस-1 |
रोहित नगर निवासी 10 साल के आरव (परिवर्तित नाम) के व्यवहार में काफी समय से बदलाव देखने को मिल रहा है. मां दिल्ली में और पिता पूना में जॉब करते हैं. लॉकडाउन के कारण वह दोनों के साथ नहीं रह पाया. कुछ दिन पापा के साथ रहा. तो लॉकडाउन के बाद जब मां से मिला तो पता चला कि वह हाईपर एक्टिव हो गया है. हर बात पर ओवर रिएक्ट करता है. इसको लेकर चाइल्ड काउंसलर से उसकी काउंसलिंग कराई गई. अब उसकी स्थिति में सुधार आता जा रहा है.
केस-2 |
शिवाजी नगर निवासी 6 साल के राहुल (परिवर्तित नाम) को हर बात पर गुस्सा आने लगा है. कोरोना कर्फ्यू के कारण दो महीने अपनी बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर घर के अंदर ही उसका पूरा समय गुजरा. उसको पढ़ाने की पूरी कोशिश की जाती है, लेकिन उसका मन टीवी देखने और मोबाइल से हटता ही नहीं है. बीच में वो दो बार बीमार भी पड़ा. इसके चलते उसके पेरेंट्स डॉक्टर के पास ले गए, डॉक्टर ने बताया कि फिजिकल एक्टीविटी कम होने से उसके स्वास्थ्य पर असर पड़ा है.
- मेंटल और इमोशनल ट्रामा की चपेट में है बच्चे
- कोरोना के बाद सामने आ रहे निगेटिव इफेक्ट
- आलस्य और मोटापे के साथ डिप्रेशन भी बढ़ा
अनुमानः कोरोना की तीसरी लहर में 14 वर्ष तक के बच्चों को ज्यादा खतरा
फिजिकल से ज्यादा मेंटल और इमोशनल ट्रामा
दरअसल कोरोन कर्फ्यू के कारण घर में रहते हुए बच्चों के टीवी देखने का समय बढ़ गया. वो खेल नहीं पा रहे हैं. इसके साथ ही वो अन्य बच्चों और दोस्तों के साथ नहीं मिल पा रहे हैं. घर के कमरे में बंद हैं, तो मम्मी और पापा टीवी देखने देते हैं. इन सबके कारण बच्चे आलसी और डिप्रेशन के शिकार होते जा रहे हैं.