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बच्चों पर कोरोना की दूसरी लहर का प्रभाव, लॉकडाउन ने मानसिक तौर पर किया कमजोर

कोरोना की दूसरी लहर में लगे लॉरकडाउन ने बच्चों को मानसिक तौर पर कमजोर कर दिया है. राजधानी भोपाल के चिकित्सकों के पास इस मानसिक समस्याओं से ग्रस्त बच्चे इलाज के लिए पहुंच रहे हैं. काउंसर्स का कहना है कि फिजिकल की बजाए बच्चे मेंटल और इमोशनल ट्रामा से ज्यादा गुजर रहे हैं.

Effect of second wave of corona on children
बच्चों पर कोरोना की दूसरी लहर का प्रभाव

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Published : Jul 21, 2021, 8:35 PM IST

भोपाल। कोरोना काल ने बच्चों पर बुरा प्रभाव छोड़ा है. करीब दो महीने से अधिक समय तक घरों में बंद रहे बच्चों की शारीरिक गतिविधियां थम सी गई थी. इसका खामियाजा ये हुआ कि बच्चों के रिएक्शन टाइम सहित दूसरे कई दुष्प्रभाव सामने आए हैं. राजधानी भोपाल के चिकित्सकों के पास इस तरह की समस्याओं से ग्रस्त बच्चे इलाज के लिए पहुंच रहे हैं. वहीं काउंसर्स का कहना है कि फिजिकल की बजाए बच्चे मेंटल और इमोशनल ट्रामा से ज्यादा गुजर रहे हैं.

केस-1

रोहित नगर निवासी 10 साल के आरव (परिवर्तित नाम) के व्यवहार में काफी समय से बदलाव देखने को मिल रहा है. मां दिल्ली में और पिता पूना में जॉब करते हैं. लॉकडाउन के कारण वह दोनों के साथ नहीं रह पाया. कुछ दिन पापा के साथ रहा. तो लॉकडाउन के बाद जब मां से मिला तो पता चला कि वह हाईपर एक्टिव हो गया है. हर बात पर ओवर रिएक्ट करता है. इसको लेकर चाइल्ड काउंसलर से उसकी काउंसलिंग कराई गई. अब उसकी स्थिति में सुधार आता जा रहा है.

केस-2

शिवाजी नगर निवासी 6 साल के राहुल (परिवर्तित नाम) को हर बात पर गुस्सा आने लगा है. कोरोना कर्फ्यू के कारण दो महीने अपनी बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर घर के अंदर ही उसका पूरा समय गुजरा. उसको पढ़ाने की पूरी कोशिश की जाती है, लेकिन उसका मन टीवी देखने और मोबाइल से हटता ही नहीं है. बीच में वो दो बार बीमार भी पड़ा. इसके चलते उसके पेरेंट्स डॉक्टर के पास ले गए, डॉक्टर ने बताया कि फिजिकल एक्टीविटी कम होने से उसके स्वास्थ्य पर असर पड़ा है.

  • मेंटल और इमोशनल ट्रामा की चपेट में है बच्चे
  • कोरोना के बाद सामने आ रहे निगेटिव इफेक्ट
  • आलस्य और मोटापे के साथ डिप्रेशन भी बढ़ा

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फिजिकल से ज्यादा मेंटल और इमोशनल ट्रामा

दरअसल कोरोन कर्फ्यू के कारण घर में रहते हुए बच्चों के टीवी देखने का समय बढ़ गया. वो खेल नहीं पा रहे हैं. इसके साथ ही वो अन्य बच्चों और दोस्तों के साथ नहीं मिल पा रहे हैं. घर के कमरे में बंद हैं, तो मम्मी और पापा टीवी देखने देते हैं. इन सबके कारण बच्चे आलसी और डिप्रेशन के शिकार होते जा रहे हैं.

चाइल्ड काउंसलर अवनि पाराशर बताती है कि फिजिकल से ज्यादा मेंटल और इमोशल ट्रामा से बच्चे गुजर रहे हैं. कोरोना काल में कई बच्चों के पेरेंट्स की जॉब नहीं रही जिसके कारण घर का माहौल अच्छा नहीं रहा. वहीं परिवार में क्लोज रिलेटिव की कोरोना से मौत के बाद जाते हुए देखने का प्रभाव भी बच्चों का खासा दिखाई दिया.
काउंसलर अवनि पाराशर का मानना है कि पेरेंट्स को बच्चों के इमोशनल और मेंटल ट्रामा को एक चैलेंज के रूप में लेकर सकारात्मक तरीके से इस पर काम करने की जरूरत है.

डॉ. जीके अग्रवाल, चाइल्ड स्पेशलिस्ट

बच्चों में बढ़ रहा मोटापा और याददाश्त में कमी

चाइल्ड स्पेशलिस्ट और भोपाल पीडियाट्रिक्स एसोसिशन के अध्यक्ष डॉ. जीके अग्रवाल का कहना है कि कोरोना ने बच्चों के स्वास्थ्य पर काफी असर किया है. घरों में रहने के कारण उनमें मोटापा बढ़ रहा है. फिजिकल एक्टीविटीज नहीं हो पा रही है. मोटापा बच्चों में इम्युनिटी को कम कर रहा है. डॉ अग्रवाल बताते हैं कि कोरोना के दौरान बच्चों की याददाश्त में भी कमी आई है. पेरेंट्स को इस पर ध्यान देना चाहिए.

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इस तरह रखें बच्चों का ख्याल

विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता अपने बच्चों को पर्याप्त समय दें. रोज उनके साथ कम से कम दो से तीन घंटे बिताएं. उनके साथ नियमित रूप से बातचीत करेंगे, तो वे ठीक रहेंगे. इसके साथ ही बच्चों को फोन और लैपटॉप न दे. जितना हो सके, उन्हें बाहर पार्कों में खेलने कूदने दें. इस दौरान ध्यान रहे कि वह भीड़ में न जाएं.

इस तरह की आ रही दिक्कतें

  1. चिड़चिड़ापन
  2. रिस्पांस टाइम कम होना
  3. बेवजह गुस्सा आना
  4. काम में मन न लगना
  5. पेट दर्द
  6. प्रतिरोधक क्षमता का काम होना

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