अफगानिस्तान के तराह शहर से नूर मोहम्मद खान और उनके साहबजादे दोस्त मोहम्मद खान (Dost Mohammad Khan) निर्वासन के बाद भारत आए, तब भोपाल में रानी कमलापति का राज था. रानी के पति को उनके भतीजों ने जहर देकर मार दिया था. इस बात से रानी बहुत परेशान थीं और बदला लेना चाहती थी. उसने बदला लेने वाले व्यक्ति को एक लाख रुपए का इनाम देने की घोषणा भी की थी. रानी के पति की मौत का बदला दोस्त मोहम्मद खान ने लिया, जिसके बदले में रानी ने पचास हजार रुपये नगद और बाकी पचास हजार के बदले तत्कालीन फतेहगढ़ को दस हजार के वार्षिक लगान के साथ दोस्त मोहम्मद खान को सौंप दिया. बाद में दोस्त मोहम्मद खान ने ही इस जगह पर फतेहगढ़ किले का निर्माण कराया. बताया जाता है कि किले की नींव का पत्थर काजी मोहम्मद मोअज्जम साहब ने रखा था. किले की पश्चिमी दिशा में स्थित बुर्ज को मस्जिद की शक्ल दी गई थी, इस तरह वर्ष 1716 में 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' भोपाल की पहली मस्जिद बनी.
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भोपाल रियासत के संस्थापक दोस्त मोहम्मद खान ने ही आधुनिक शहर भोपाल की स्थापना की थी, जिसे बाद में प्रदेश की राजधानी बनाया गया. अफगानिस्तान के तिराह शहर से एक पश्तून दोस्त मोहम्मद खान 1703 में दिल्ली में मुगल सेना में शामिल हुआ था, वह तेजी से रैंकों के माध्यम से उठा और उसे मध्य भारत का मालवा प्रांत को सौंपा गया. औरंगजेब की मृत्यु के बाद खान ने राजनीतिक रूप से अस्थिर मालवा क्षेत्र में कई स्थानीय सरदारों को भाड़े की सेवाएं प्रदान करना शुरू कर दिया. 1709 में उसने मंगलगढ़ की छोटी राजपूत रियासत की भाड़े के रूप में सेवा करते हुए बैरसिया एस्टेट को लीज पर ले लिया और उत्तराधिकारी दहेज रानी की मृत्यु के बाद राज्य पर अधिकार कर लिया.