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सियासत का चाणक्य: जिसने कइयों को बनाया राजनीति का 'चंद्रगुप्त'

मध्यप्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में पर्दे के पीछे रहकर राजनीति करने वाले सियासत के चाणक्य इन दिनों नए रोल में नजर आ रहे हैं. मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव संपन्न हो गया है. ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत से गिरी कमलनाथ सरकार की घर वापसी कराने का तंत्र-मंत्र इसी चाणक्य के पास है, जो अब तक न जाने कितनों को सियासत का चंद्रगुप्त बना चुका है.

Digvijay Singh
दिग्विजय सिंह

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Published : Nov 3, 2020, 6:07 PM IST

Updated : Nov 10, 2020, 6:20 AM IST

भोपाल। राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह के लिए कहा जाता है कि वे पर्दे के पीछे रहकर राजनीति करते हैं और कमलनाथ को मुख्यमंत्री का ताज दिलाने में दिग्विजय सिंह की अहम भूमिका रही है. दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश की सियासत में कांग्रेस की अहम कड़ी माने जाते हैं, दिग्गी राजा को उनके दौर के उन चुनिंदा नेताओं में गिना जाता है, जो सिर्फ अपनी रणनीति के दम पर सियासी धारा का रुख बदलने में माहिर माने जाते हैं. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत से गिरी कमलनाथ सरकार की घर वापसी कराने वाला सिर्फ एक ही करिश्माई नेता है, जो हाथ के पंजे से कमल को मसलकर कमलनाथ को एमपी का नाथ बना सकता है.

दिग्विजय सिंह का सियासी सफर

दिग्विजय सिंह का जीवन परिचय

  • एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह का जन्म 28 फरवरी, 1947 को गुना जिले में एक शाही परिवार में हुआ था.
  • दिग्विजय सिंह की प्रारंभिक शिक्षा इंदौर के एक प्राइवेट स्कूल में हुई.
  • उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई डेली कॉलेज इंदौर से पूरी की.
  • वे इंजीनियरिंग में स्नातक हैं.

राजनीतिक सफर

  • 22 साल की उम्र में दिग्विजय सिंह राघौगढ़ नगरपालिका के अध्यक्ष बने.
  • 1971 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की.
  • 1977 में दिग्विजय सिंह कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े और जीते भी.
  • तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के कार्यकाल 1980-1984 के बीच दिग्विजय सिंह पहले राज्य मंत्री और बाद में कैबिनेट मंत्री बनाए गए.
  • 1985 में वह मध्यप्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने.
  • 1984 से 1991 तक दिग्विजय सिंह राघौगढ़ से सांसद बने.
  • वे लगातार दो बार 1993 से 2003 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.
  • 2003 का चुनाव कांग्रेस हार गई और दिग्विजय सिंह ने संकल्प लिया कि वे कोई पद नहीं लेंगे.
  • इसके बाद वह लगातार कई सालों तक अपने गृहनगर और निर्वाचन क्षेत्र राघौगढ़ का प्रतिनिधित्व करते रहे.
  • दस सालों तक सीएम रहने के नाते उनका प्रदेशव्यापी असर है. कांग्रेस संगठन पर उनके जैसी पकड़ वर्तमानमें किसी की भी नहीं मानी जाती है, यही वजह है कि कांग्रेस ने इन्हें चुनाव समन्वय समिति का प्रमुख बनाया है.

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पर्दे के पीछे से राजनीति

जानकारों की मानें तो दिग्विजय सिंह बहुत ही अनुभवी नेता हैं. वे अच्छे से जानते हैं कि किस तरह से चुनाव लड़े जाते हैं. यह चुनाव कमलनाथ का चुनाव है. सीधी सी बात है कि जो चुनाव कमलनाथ के चेहरे पर लड़ा जा रहा है. एक बड़ा तबका मानता है कि दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की दूरी सिर्फ दिखावे की है, जिस तरह दिग्विजय सिंह 2018 के विधानसभा चुनाव में पर्दे के पीछे रहकर समन्वय और चुनावी रणनीति को अंजाम दे रहे थे.

नए रोल में नजर आ रहे दिग्गी राजा

चुनाव में अब दिग्विजय सिंह नई भूमिका में नजर आ रहे हैं. कांग्रेस पार्टी ने चुनाव आयोग से जुड़े मामलों को लेकर दिग्विजय सिंह को नई जिम्मेदारी दी है. यानी अब आयोग से जुड़े मसलों पर दिग्विजय सिंह का फोकस है. ऐसे में कहा जा सकता है खासतौर पर विरोधी दलों को आयोग के जरिए घेरने की तैयारी की जा रही है, ताकि विरोधियों पर दबाव बनाया जा सके.

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दिग्विजय सिंह अब रैलियां कर रहे हैं. अशोकनगर, गुना और ब्यावरा सीट पर प्रचार का पूरा जिम्मा दिग्गी राजा को दिया गया था. वहीं धार में जन सभा की. जहां के प्रत्याशियों का प्रचार करने वे गए.

कांग्रेस का बड़ा चेहरा हैं दिग्विजय सिंह

दिग्विजय सिंह वो शख्सियत हैं, जिसने सूबे की सत्ता पर दस साल तक एक छत्र राज किया. वे अपने आपको प्रासंगिक बनाए रखने की कला में माहिर हैं और अपनी राय सार्वजनिक करने के किसी भी मौके से नहीं चूकते हैं. उनकी रणनीति क्या रहती है, ये ठीक-ठीक जानकार भी नहीं समझ पाते हैं. लेकिन इतना तो उनको भी समझ में आता है कि पार्टी में वह जिस मुकाम पर पहुंच गए हैं, वह उनका आखिरी पायदान है, उसके आगे या ऊपर जाने की कोई गुंजाइश वह नहीं देख सकते.

Last Updated : Nov 10, 2020, 6:20 AM IST

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