भोपाल। इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार को ऐसे संकटमोचक का इंतजार है, जो उसकी डूबती कश्ती को किनारे लगा दे, 15 साल लंबे इंतजार के बाद प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस महज 15 महीने में ही अपनों की बेवफाई के चलते चौतरफा संकट से घिर गई. ऐसे में कांग्रेस को कुछ संकट मोचकों का ही सहारा है, जो प्रदेश सरकार को संकट से उबारकर डूबती कश्ती को किनारे लगा सकते हैं.
16 मार्च से विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने वाला है और सत्र के पहले ही दिन सरकार को अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ेगा, अग्निपरीक्षा की कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही सरकार का अस्तित्व बचेगा, वरना सरकार के नाम के आगे पूर्व लग जाएगा. हालांकि, इसका फैसला भी अब विधानसभा के अंदर होना है. वहीं सरकार के साख की असली परीक्षा होनी है.
कमलनाथ सरकार के संकटमोचक में पहला नाम दिग्विजय सिंह का है, ऐसा माना जाता है कि दिग्विजय सिंह की चाणक्य नीति ऐसे संकट से निपटने में कारगर साबित होती है. अब जब 22 विधायक बागी हो गए हैं और ग्वालियर-चंबल अंचल के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया सियासी पाला बदल लिए हैं, फिर भी दिग्विजय सिंह पूरी ताकत से बगावत की सूनामी से सरकार को बचाने में लगे हैं. हालांकि, सिंधिया को कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर करने के पीछे भी दिग्विजय सिंह को ही जिम्मेदार माना जाता है और उनके साथ राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा भी कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं. जो सरकार को बचाने के लिए हर वो दांवपेच आजमा रहे हैं, जो सरकार को इस संकट से उबार सके.
इसके बाद अगला संकट मोचक तेज तर्रार युवा नेता व मंत्री जीतू पटवारी को माना जा रहा है, जो राहुल गांधी के करीबी भी माने जाते हैं. फिलहाल वे प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं. हाल ही में बेंगलुरु में ठहरे बागी विधायकों को निकालने के चक्कर में उनकी पुलिस से झड़प भी हुई थी, इसके पहले भी गुरूग्राम के आईटीसी रिजॉर्ट से विधायकों को रेस्क्यू कर बीजेपी के ऑपरेशन लोटस वन को नाकाम कर दिए थे.