भोपाल।राजनीति में बयानों की टाइमिंग बहुत मायने रखती है. नेता बखूबी जानते हैं कि कब क्या कहा जाना कितना असर दिखाएगा...तो इस नजरिए से 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी संगठन के कसावट को निकले कैलाश विजयवर्गीय के बयानों को क्या माना जाए. यूं विवादित बयानों से विजयवर्गीय का पुराना वास्ता रहा है. लेकिन चुनाव में चंद महीने पहले विवादित बयानों के साथ विजयवर्गीय जिस तरह से कई मौकों पर पार्टी की ही बखिया उधेड़ रहे हैं. कहीं ये बयान चुनाव के ऐन पहले बीजेपी के लिए ही बड़ा संकट तो नहीं. भारत के खिलाफ बोलने वालों की जान लेने से भी पीछे नहीं हटने का विवादित बयान देने वाले विजयवर्गीय का चुनाव से पहले व्यापम का मुद्दा उठाना.. क्या किसी नई राजनीति का हिस्सा है.
विजयवर्गीय के विवादित बोल...क्या नहीं क्यों बोले: एमपी में बीजेपी संगठन की कसावट के लिए निकले कैलाश विजयर्गीय का टारगेट क्या है. ये सवाल उनके बयानों के साथ उठ रहा है. वो विवादित बयान जो कैलाश विजयवर्गीय से ज्यादा पार्टी की मुश्किल बढ़ा रहे है. बीजेपी के लिए चुनावी इम्तेहान बीते चुनाव के मुकाबले इस बार मुश्किल दिखाई दे रहा है. केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे इस बात की पुष्टि करती हैं. अब ऐसे में पार्टी के पास पुराने रायता समेटने से ही फुर्सत नहीं कि नए मुश्किलों को संभाला जाए, लेकिन कैलाश विजयवर्गीय लगातार पार्टी के सामने यही हालात बना रहे हैं. बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव के बयान का विरोध इसी आधार पर हुआ है कि वे कानून हाथ में लेने की बात कर रहे हैं. रतलाम पहुंचे कैलश विजयवर्गीय ने अपने भाषण के दौरान कह दिया कि भारत माता के विरोध में बोलने वाले की जान लेने से भी हम पीछे नहीं हटेंगे. भले इसे कैलाश विजयवर्गीय के समर्थन में कार्यकर्ताओं में जोश भरने के कैलाश उपक्रम की तरह बता रहे हों, लेकिन कांग्रेस को तो इस बयान ने हाथ में मुद्दा दे दिया, कि क्या एमपी में बीजेपी के दिग्गज नेता कानून हाथ में लेने की पैरवी कर रहे हैं.