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देश के पहले रेलवे स्टेशन से Private Model Station तक, फर्श से 'फलक' पर भारतीय रेल - George Clark Chief Engineer Bombay Government

करीब 170 साल पहले बने रेलवे स्टेशन भी वक्त के साथ बदल रहे हैं, उनकी जगह अब अत्याधुनिक सुविधाओं वाले स्टेशन लेने लगे हैं, इसके लिए रेलवे का राष्ट्रीयकरण से निजीकरण भी चरणबद्ध तरीके से किया जा रहा है, ताकि रेलवे का कायाकल्प किया जा सके. 1853 में मुंबई के बोरी बंदर में बने पहले रेलवे स्टेशन (First Railway Station of India) और 2021 में भोपाल में तैयार हो रहे हबीबगंज रेलवे स्टेशन (Habibganj Railway Station) में जमीन आसमान जितना फर्क साफ नजर आता है.

indian railways histrory from 1853 to till now
हबीबगंज पहला प्राइवेट स्टेशन

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Published : Aug 5, 2021, 10:19 AM IST

Updated : Aug 11, 2021, 9:36 AM IST

16 अप्रैल 1853 को दिन में तीन बजकर 30 मिनट पर भीड़ की जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट और 21 तोपों की सलामी के बीच 400 मेहमानों को लेकर 14 बोगी वाली ट्रेन मुंबई से ठाणे के लिए रवाना हुई, तब एशिया के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया, साथ ही यातायात के क्षेत्र में क्रांति की नींव भी पड़ गई. बॉम्बे (First Railway Station of India) को ठाणे, कल्याण, थाल और भोर के घाटों को रेलवे के साथ जोड़ने का विचार पहली बार 1843 में भांडुप की यात्रा के दौरान बॉम्बे सरकार के मुख्य अभियंता जॉर्ज क्लार्क को आया था, जिसका औपचारिक उद्घाटन 16 अप्रैल 1853 को किया गया था,

ट्रैक पर दौड़ती ट्रेन (एनिमेशन)
चलने को तैयार भारत की पहली ट्रेन

15 अगस्त 1854 को पहली यात्री ट्रेन हावड़ा से हुगली के बीच चलाई गई, इसके साथ ही ईस्ट इंडियन रेलवे के पहले खंड को सार्वजनिक यातायात के लिए खोल दिया गया, जिससे पूर्वी हिस्से में रेलवे परिवहन की शुरुआत हुई. कई पड़ाव और बदलाव के बावजूद ट्रेन की यात्रा अनवरत जारी है.

जानकारी देते जनसंपर्क अधिकारी
भारत की पहली ट्रेन

भारतीय रेल जो बन गई भारतीयों की जीवनरेखा

वक्त के साथ रेलवे अपनी सूरत और सीरत भी बदलता रहा है. यही वजह है कि भारतीय रेलवे (Indian Railway) अब भारतीयों की जीवनरेखा बन गई है और इसकी गिनती दुनिया के बड़े रेल नेटवर्क में होती है. 1850 में इस क्षेत्र में 19 एकड़ भूमि पर पहला स्टेशन बोरी बंदर नाम से बनाया गया था. पहले स्टेशन के दक्षिण में शानदार विक्टोरिया टर्मिनस इमारत थी, आधुनिक वास्तुकला की अद्भुत कलाकारी से सुसज्जति ये इमारत 132 साल की हो चुकी है.

छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस

मई 1878 में वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम्स स्टीवन ने इसका निर्माण शुरू किया और 20 मई 1888 को ये इमारत बनकर तैयार हुई थी. तब इस भवन के निर्माण में 16 लाख 14 हजार रुपये की लागत आई थी. इस स्टेशन का तीन बार नाम बदला गया. विक्टोरिया टर्मिनस इसलिए रखा गया कि इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के जन्मदिन पर इसकी नींव रखी गई थी, 1996 में इस इमारत का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस कर दिया गया. फिर 2017 में महाराज शब्द को भी जोड़ दिया गया, तब से इसे छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (Chhatrapati Shivaji Maharaj Terminus) के नाम से जाना जाता है.

रेलवे स्टेशन से गुजरती ट्रेन

वक्त की जरूरत थी रेलवे का परिचालन

उस समय रेलवे का विस्तार वक्त की जरूरत थी क्योंकि अंग्रेज भारत से कपास का निर्यात करते थे, कपास का उत्पादन भारत के भीतरी इलाकों में होता था, जिसे मुंबई बंदरगाह तक और फिर मुंबई से ब्रिटेन तक जहाज के जरिये ले जाया जाता था, इसी के चलते अंग्रेजों ने रेल परिवहन (Rail Transport) शुरू करने का निर्णय लिया और 1832 में भारत में पहली रेलवे परिवहन योजना प्रस्तावित की गई थी, ब्रिटिश सरकार ने ग्रेट इंडियन पेनिनसुला (जीआईपी) को मुंबई से खानदेश तक 56 किमी लंबी रेल लाइन बिछाने का ठेका दिया था. 14 नवंबर 1849 को 30 वर्षीय ब्रिटिश इंजीनियर जेम्स जॉन बर्कले को सरकार ने रेलवे के निर्माण के लिए नियुक्त किया था.

हबीबगंज पहला प्राइवेट स्टेशन

बंटवारे के साथ बंट गया रेल नेटवर्क

15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने से पहले 14 अगस्त को ही रेलवे दो हिस्सों यानि दोनों देशों के बीच बंट गया था. हालांकि, 1951 में रेलवे का राष्ट्रीयकरण (Nationalisation of Railways) कर दिया गया. भारतीय रेल इस वक्त 16 लाख कर्मचारियों के साथ ही सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला विभाग है. 126,366 किमी लंबे ट्रैक पर दौड़ती ट्रेनें रोजाना 2.5 करोड़ से अधिक यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती है. भारतीय रेलवे अमेरिका, चीन और रूस के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है. इतने लंबे सफर में रेलवे ने कई बदलाव भी देखा है, मीटर गेज से नैनोगेज और फिर ब्रॉडगेज के बाद अब डबल लाइन ट्रैक पर ट्रेनें दौड़ने लगी हैं. इसके साथ ही शुरुआती स्टेशन भी अपना स्वरूप बदलते हुए एयरपोर्ट को टक्कर देने लगे हैं.

हबीबगंज पहला प्राइवेट स्टेशन

आधुनिकता की ओर बढ़ते कदम

बोरी बंदर से विक्टोरिया टर्मिनस और फिर छत्रपित शिवाजी महाराज टर्मिनस की खूबसूरती 132 साल बाद भी बेमिसाल है, यही वजह है कि इसे तारीख पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज किया जाने लगा है. हालांकि, आधुनिकता की दौड़ में खुद को आगे रखते हुए रेलवे नए कीर्तिमान बना रहा है. पुराने स्टेशनों की जगह अब आधुनिक और सर्व सुविधायुक्त प्राइवेट स्टेशन लेने लगे हैं, मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन (Habibganj Model Private Station) को देश के पहले प्राइवेट मॉडल स्टेशन के रूप में विकसित किया जा रहा है, जहां एयरपोर्ट जैसी लग्जरी सुविधाएं आम यात्रियों को भी मिलेंगी, जोकि रेलवे की आधुनिकता और समृद्धि का प्रतीक है.

स्टेशन के बगल से गुजरती ट्रेन

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संजोया जा रहा रेलवे का इतिहास

अब मुंबई और ठाणे में संग्रहालय बनाकर रेलवे की स्मृतियों को संजोया जा रहा है, ताकि आने वाली पीढ़ियां रेलवे की शताब्दियों की यात्रा के बारे में जान सकें, साथ ही सनद रहे कि कैसे यहां तक पहुंची है भारतीय रेलवे. (Chhatrapati Shivaji Maharaj Terminus) के भूतल पर एक छोटा विरासत संग्रहालय है, जिसमें रेलवे के इतिहास, पुरानी तस्वीरों, भवन के लेआउट, छोटे इंजनों और अन्य वस्तुओं के बारे में जानकारी संकलित की गई है. 1853 में मुंबई से ठाणे के लिए चली पहली ट्रेन के बाद से रेलवे में कई बदलाव हुए हैं. ट्रेनों के कोच और इंजन बदलते रहे हैं. 1925 में पहली इलेक्ट्रिक इंजन ट्रेन में जोड़ा गया. ये सभी ऐतिहासिक पेंटिंग हेरिटेज म्यूजियम में मौजूद हैं.

हबीबगंज प्राइवेट रेलवे स्टेशन

रेलवे के इतिहास को ब्रिटिश काल के दस्तावेजों, ट्रेनों के मॉडल, पुरानी तस्वीरों के रूप में देख सकते हैं. पूर्व में उपयोग की गई पुरानी तस्वीरें, संदेशवाहक वाहन की मोर्स मशीन, बर्तन, लालटेन, अधिकारियों का जत्था, इंजन पर लोगो और बॉक्स पर पुरानी मुहर भी खजाने में संरक्षित है. एशिया के पहले रेलवे स्टेशन के रूप में महत्वपूर्ण है. पहली यात्री ट्रेन बोरीबंदर से ठाणे के लिए चली थी, उसी दिन वहां के नक्शे पर रेलवे स्टेशन उभरकर आया था.

Last Updated : Aug 11, 2021, 9:36 AM IST

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