भोपाल। 1857 की क्रांति को इतिहासकार भले ही अलग-अलग तरह से परिभाषित करें लेकिन सभी मानते हैं कि यह एक ऐसी जनक्रांति थी, जिसकी नायिका रानी लक्ष्मी बाई थी. एक ऐसी रानी जिनकी तलवारबाजी और रण कौशल देखकर अंग्रेज दांतों तले उंगली दबा लेते थे. इतिहास गवाह है कि उनकी शहादत के साथ ही क्रांति की गति को भी तगड़ा झटका लगा. शायद यही वजह है कि हम भारत वासियों के लिए 18 जून 1858 मिश्रित भावनाओं का संचार करता है. एक अकेली रानी के दृढ़संकल्प की वीर गाथा जहां हमें गर्व की अनूभुति कराती है वहीं इस वीरांगना की शहादत मन मस्तिष्क को झकझोर जाती है. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को हुआ था और वे 18 जून 1858 में वीरगति को प्राप्त हुई थीं. वे मराठा शासित झांसी राज्य की रानी और 1857 की राज्यक्रान्ति की दूसरी शहीद वीरांगना थीं.
मणिकर्णिका से रानी लक्ष्मीबाई बनने तक (Manikarnika to Rani Laxmibai)
19 नवंबर 1828 को मोरोपंत तांबे और भागीरथी बाई के यहां एक बेटी का जन्म हुआ. मां-बाप ने बेटी का नाम मणिकर्णिका रखा और प्यार से मनु बुलाने लगे. मणिकर्णिका के बचपन में ही मां भागीरथी बाई का निधन हो गया. इसके बाद पिता मोरोपंत तांबे बेटी को लेकर झांसी आ गए.
यहां मणिकर्णिका ने घुड़सवारी और तलवारबाजी जैसी युद्ध कलाएं सीखीं. कम उम्र में ही उनकी शादी मराठा नरेश गंगाधर राव से हो गई और मणिकर्णिका का नाम लक्ष्मीबाई हो गया.
1851 में लक्ष्मीबाई को एक बेटा हुआ, लेकिन कुछ महीनों बाद ही उसका निधन हो गया. गंगाधर राव को अपने बेटे की मौत का गहरा सदमा लगा और उनकी तबीयत खराब रहने लगी. 20 नवंबर 1853 को गंगाधर राव ने एक बच्चे को गोद लिया जिसका नाम दामोदर राव रखा गया, लेकिन अगले ही दिन गंगाधर राव का निधन हो गया.
पति के निधन के बाद रानी लक्ष्मीबाई की मुसीबतें बढ़ने लगीं. अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा करने के लिए एक चाल चली. लॉर्ड डलहौजी ने दामोदर राव को उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया और रानी को किला खाली करने का आदेश दिया.
और ऐसे लिया अंग्रेजों से लोहा