भोपाल। मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल गहरा गए हैं. विधानसभा में सरकार को सोमवार को फ्लोर टेस्ट पास करने की चुनौति है. सरकार इसमें नाकाम रहती है तो 14 साल के वनवास के बाद कांग्रेस एक बार फिर सत्ता से आउट हो जाएगी.
ऑपरेशन लोटस की इनसाइड स्टोरी कांग्रेस सरकार की इस हालत के पीछे की कहानी, इसके बनने के साथ ही शुरू हो गई थी, कमलनाथ के सीएम बनते ही अंदरूनी पावर पॉलिटिक्स की चिंगारी सुलग गई थी. हालांकि उस वक्त तो सत्ता का बंटवारा कर इसे रोक लिया गया.
सिंधिया की बगावत
लेकिन करीब 14 महीने की सरकार को कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने हिला कर रख दिया. जिससे मध्यप्रदेश का पूरा सियासी समीकरण बिगड़ गया. सिंधिया को ना तो केंद्रीय नेतृत्व ने तवज्जो दी और ना ही कमलनाथ सरकार ने , जिसकी वजह से उनकी बेचैनी बढ़ती गई और कई बार जाहिर भी हुई.
आखिरकार 9 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस बगावत कर दी, बताया जाता है कि बगावत की ये स्क्रिप्ट करीब एक महीने पहले से ही लिखी जा चुकी थी, सिंधिया और बीजेपी के बड़े नेताओं के बीच कई बार गुपचुप बैठकें भी हुईं. सिंधिया ने अमित शाह और पीएम मोदी से मुलाकात भी कर ली.
दरअसल सिंधिया, कांग्रेस से प्रदेश अध्यक्ष का पद या राज्यसभा की सीट चाहते थे, लेकिन कमलनाथ- दिग्विजय की जोड़ी ने सिंधिया को दोनों में से कुछ नहीं दिया. सिंधिया, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की इस मंशा को वो भांप चुके थे. लिहाजा उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया.
वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने सिंधिया के बीजेपी में आने के फार्मूले पर सहमति दे दी और आगे की बातचीत के लिए धर्मेंद्र प्रधान, शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर की अगुवाई में एक टीम बना दी थी. जिसका नेतृत्व पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कर रहे थे.
ऐसे शुरु हुआ 'ऑपरेशन लोटस'
अब आगे की रणनीति बनी. ऑपरेशन लोटस के तहत पहले कांग्रेस, निर्दलीय और बसपा विधायकों को गुरुग्राम शिफ्ट किया गया.लेकिन दिग्विजय को इस बात की खबर लग गई, जिसके बाद जयवर्धन और जीतू पटवारी के साथ वो उसी होटल में पहुंच गए. और बीजेपी का पहला ऑपरेशन फेल हो गया.
लेकिन बीजेपी और ज्योतिरादित्य सिंधिया हार मानने को तैयार नहीं थे, और इस बार पूरी प्लानिंग के साथ ऑपरेशन लोटस 2.0 शुरू हुआ. तोमर, शिवराज, सिंधिया और नरोत्तम मित्रा को कमान सौंपी गई. सबसे पहले सिंधिया गुट के 19 विधायकों को बेंगलुरु शिफ्ट किया गया. और यहीं पर सरकार गिराने की पूरी प्लानिंग की गई. अगले ही दिन इन विधायकों ने अपना इस्तीफा दे दिया.
इन सब के बीच सिंधिया ने बीजेपी की ओर से राज्यसभा का टिकट भी हासिल कर लिया और जोर शोर से उन्होंने अपना नामांकन दाखिल किया. वहीं दूसरी तरफ कमलनाथ ने सरकार पर खतरे के बादल मंडराते देख, अपने बाकी विधायकों को जयपुर के होटल में शिफ्ट करा दिया. इन सबके बीच दावों का दौर भी जारी रहा. कमलनाथ दावा कर रहे थे कि बेंगलुरू गए विधायक भी उनके संपर्क में हैं.
सोमवार को किसका होगा मंगल ?
तमाम सियासी हलचलों के बीच सीएम कलनाथ ने राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात की और बीजेपी पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाते हुए तीन पन्ने का पत्र सौंपा, जिसमें फ्लोर टेस्ट की बात थी, राज्यपाल ने 16 मार्च की तारीख तय की.
तारीख तय होते ही कांग्रेस विधायकों का राजनीतिक टूर खत्म हो गया और उन्हें स्पेशल विमान से वापस भोपाल बुला लिया गया. विधायकों को कड़ी सुरक्षा के बीच मैरिएट होटल में ठहराया गया है. जो फ्लोर टेस्ट का इंतजार कर रहे हैं.
नाथ बचा पाएंगे या कमल फिर खिलेगा ?
वहीं बेंगलुरू में मौजूद सिंधिया समर्थक विधायकों के 16 मार्च को सदन में पहुंचने पर सस्पेंस बरकरार है. 16 तारीख कमलनाथ सरकार के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. देखना बेहद दिलचस्प होगा कि मध्य प्रदेश में नाथ की सरकार बरकार रहती है कि या फिर से प्रदेश में कमल खिलेगा.