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Independence Day 2023: बेगम अंग्रेज से बोली शाहजहां की जूती जिसके सिर पड़ती है वो ग्रीफन बन जाता है.. - अंग्रेजों के खिलाफ लिखते थे सिद्दीक हसन

शाहजहां बेगम अपनी आजादी के लिए अंग्रेजों के अफसर ग्रीफन से लड़ गईं थीं और उन्होंने कहा था कि शाहजहां की जूती जिसके सिर पड़ती है वो ग्रीफन बन जाता है

bhopal Shah Jahan Begum
शाहजहां बेगम आजादी की लड़ाई

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Published : Aug 14, 2023, 9:14 PM IST

Updated : Aug 14, 2023, 9:55 PM IST

बेगम अंग्रेज से बोली शाहजहां की जूती जिसके सिर पड़ती है वो ग्रीफन बन जाता है.

भोपाल। पर्दे का जमाना था वो, औरतों को देहरी पार जाने की इजाजत नहीं थी, लेकिन उस दौर में भी एक बेगम थी जो अंग्रेजों के सामने हौसले से खड़ी थी. अंग्रेज अफसर को ललकारती कह रही थी, जिसके सिर मेरी जूती पड़ती है, फिर वो ग्रीफन बन जाता है. भोपाल पर राज करने वाली बेगम, जिन्हें इतिहास में बाद में जिद्दी शासक भी कहा गया. उसकी जिद के आगे अंग्रेज अफसरों ने भी हार मानी, क्यों कांपते थे अफसर उस बेगम के नाम से... गुलाम भारत के दौर में एक बेगम कैसे अपनी जज्बे से अंग्रेजों को मात दे रही थी.

बेगम, जिसने अंग्रेज अफसर को उसकी हैसियत याद दिलाई:26 अक्टूबर 1885 का दिन था, भोपाल के शौकत महल में दरबार सजा था. रियासत के ओहेदेदार एजेंट वायसराय का संदेश पढ़कर सुना रहे थे, कह रहे थे सिद्दीक हसन से उनका खिताब वालसा अमीर उल मुल्क वापिस लिया जाता है. 17 तोपों की उन्हें जो सलामी दी जाती है, वो भी खत्म की जाती है. सिद्दीक हसन रियासत के मामलों में दखलंदाजी भी नहीं कर सकेंगे. शाहजहां बेगम के दरबार में ये सबकुछ हो रहा था, इतिहासकार सैय्यद खालिद गनी बताते हैं "ये वाकया इतिहास में दर्ज है कि किस तरह से शाहजहा बेगम ने एजेंट ग्रीफन का संदेश पूरा भी नहीं होने दिया और अपने शौहर सिद्दीक हसन का हाथ थामकर बोलीं शाहजहां की जूती जिसके सिर पड़ती है, वो ग्रीफन बन जाता है. ये वो दौर था कि जब रियासतें में बैठे हुक्मरानों की आवाज नहीं निकलती थी, अंग्रेजों के आगे तक एक बेगम ने अंग्रेजों के सामने ये हिम्मत दिखाई और सबसे बड़ी बात ये सिर्फ अल्फाज नहीं थे. उस समय ग्रीफन का भोपाल में ठहरना मुश्किल हो गया था, लाल कोठी में जाकर उन्हें पनाह लेनी पड़ी थी."

अंग्रेजों के खिलाफ लिखते थे सिद्दीक हसन:शाहजहां बेगम के दूसरे शौहर सिद्दीक हसन जिनके साथ बेगम का निकाह सिर्फ इसलिए मजबूरी में करवाया गया कि कम उम्र में अपने पति को खो देने वाली शाहजहां बेगम की सल्तनत को संभालने उनके साथ कोई पुरुष रहे. सिद्दीक हसन ने लिखने पढ़ने वाले इंसान थे, 200 से ज्यादा किताबें लिखी उन्होंने. खास बात ये कि बेखौफ होकर वे अंग्रेजों के खिलाफ भी लिखा करते थे, इतिहासकार सैय्यद खालिद गनी बताते हैं "ये जो पूरा वाकया शौकत महल में हुआ था. सिद्दीक हसन के अंग्रेजों के खिलाफ लिखने के बाद हुआ, जिसकी पहले शिकायत की गई शाहजहां बेगम से, जिसे उन्होंने नजर अंदाज कर दिया. असल में सिद्दीक हसन ने उर्दू में जो कुछ अंग्रेजों के खिलाफ लिखा था वो अंग्रेजी में ट्रांसलेट होकर अंग्रेजों तक पहुंच भी गया था."

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अंग्रेजो से हक के लिए लड़ी शाहजहां बेगम:अंग्रेजों की दखलंदाजी रियासतो में बढ़ गई थी, सैद्दयद खालिद गनी बताते हैं कि "इस काल खंड को ग्रीफन गर्दी यानि उनकी गुंडागिरी के नाम से भी जाना जाता है. जब शाहजहां बेगम के सारे खिताब छीन लिए गए तो शाहजहां बेगम खामोश नहीं रही. वो आखिरी दम तक लड़ती रहीं, खतोकिताबत किया उन्होंने, अंग्रेंजो से और अड़ी रही कि सिद्दीक हसन का खिताब उन्हें वापिस दिया जाए. यही वजह है कि 1890 में जब सिद्दीक हसन का इंतकाल हुआ तो अंग्रेजों को ये मजूरी भेजनी पड़ी कि मरने के बाद सिद्दीक हसन नवाब ही कहे जाएंगे."

Last Updated : Aug 14, 2023, 9:55 PM IST

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