क्या चुनाव से ऐन पहले बना सकते हैं नई पार्टी? कैसे मिलता है पार्टी सिम्बल, जानें क्या कहती भारतीय चुनाव आयोग की रूल बुक? - गैर मान्यता प्राप्त
How Form New Political Party: मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावी तैयारियों के बीच, विंध्य प्रदेश की मांग करने वाले मैहर से विधायक नारायण त्रिपाठी ने नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है. इस पार्टी को चुनाव आयोग ने चुनाव चिन्ह भी जारी कर दिया है. ऐसे में हम आपको ईटीवी भारत की तरफ से खास इन्साइड स्टोरी के जरिए, बता रहे हैं, कि आखिर कैसे नई पार्टी बनाई जा सकती है. क्या कोई भी पार्टी बना सकता है? ये सभी जानकारी हमने चुनाव आयोग की तरफ से जारी जानकारी के तहत दी है. पढ़ें, हैदराबाद से कार्तिक सागर समाधिया की रिपोर्ट...
भोपाल। देश के पांच राज्यों में चुनावी गर्मी का दौर जारी है. इस सिलसिले में कई नेता पार्टी छोड़कर इधर, उधर हो रहे हैं. अब ऐसे में सबसे बड़ी खबर मध्यप्रदेश की मैहर सीट से आई है. यहां से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफा देना बड़ी खबर नहीं है बल्कि उनके बगावती तेवर इन दिनों सुर्खियों में बने हुए हैं. विंध्य की मांग पर अड़े नारायण त्रिपाठीन कांग्रेस में गए हैं, और न ही किसी ओर दल का दामन थमा है. उन्होंने खुद ही एक नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है. इस पार्टी का नाम उन्होंने वीजेपी यानि विंध्य जनता पार्टी रखा है. अब ये नाम हर किसी की जुबान पर है.
लेकिन बड़ा सवाल है कि आखिर उन्होंने पार्टी तो बनाई है, वो भी चुनाव से ऐन पहले, क्या कोई भी पार्टी बना सकता है? अगर बना सकता है, तो क्या निर्वाचन आयोग उस पार्टी को इतनी जल्दी मान्यता दे सकती है. क्योंकि, एमपी में 17 नवंबर को मतदान होना है. ऐसे में क्या निर्वाचन आयोग उनकी पार्टी को मान्यता देगा और अगर देगा तो उसका चुनाव चिन्ह क्या होगा. इन सबकी कानूनी प्रक्रिया क्या होगी. इन्ही सभी सवालों के जवाब हम आज तलाशेंगे. अगर कोई नई पार्टी बनती है, तो पूरी प्रक्रिया क्या होती है.आइए जानते हैं, ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट मध्यप्रदेश इलेक्शन की इनसाइड स्टोरी...
किस चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेंगे मैहर के नारायण त्रिपाठी?:मैहर से विधायक नारायण त्रिपाठी ने विंध्य जनता पार्टी नाम से एक दल बनाया है. इसी के बैनर तले वे 25 उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारेंगे. खुद नारायण त्रिपाठी मैहर सीट से चुनाव लड़ेंगे. उनकी पार्टी को चुनाव आयोग ने 'गन्ना चुनाव चिन्ह' से सुशोभित किया है. वे इसी के सहारे अपनी नई पार्टी और 25 रणाबजों के सहारे किस्मत आजमाएंगे.
(हमने चुनाव आयोग की वेबसाइट से नई पार्टी बनाने के पूरे नियम से जुड़े कुछ प्रश्न तलाशें हैं, आइए जानते हैं...)
देश में कितनी तरह की पार्टी चुनाव लड़ सकती हैं:अगर पार्टियों के चुनाव लड़ने की बात करें, तो हमे सबसे पता चलेगा, कि भारत में तीन तरह की पार्टियां होती है. इनमें सबसे पहले वो पार्टी होती है, जिनका राष्ट्रीय स्तर पर आधार होता है. यानी ऐसी पार्टियां जिनका दर्जा राष्ट्रीय स्तर पर होता है. इसमें तीन शर्ते होती हैं. पहली शर्त होती है कोई पार्टी ने तीन राज्यों में के लोकसभा चुनाव में 2% सीटें जीती हैं. इसके अलावा 4 लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा और विधानसभा चुनाव में 6 प्रतिशत वोट पाए हों. इनके अलावा पार्टी चार राज्यों में बतौर क्षेत्रीय पार्टी अपनी हैसियत रखती हो.
दूसरी पार्टी होती है, राज्य स्तरीय पार्टी होती है. इस पार्टी के लिए भी तीन शर्तें शामिल होती है. राज्य के विधानसभा सीटों में 3% सीटों पर जीत दर्ज की हो. या फिर 3 सीटें जीती हों. इनके अलावा लोकसभा या विधानसभा चुनाव में 6% वोट हासिल किए हों. इनके अलावा 1 लोकसभा सीट और 1 विधानसभा सीट उस पार्टी ने जीती हो.
वहीं, तीसरी तरह की पार्टी होती है, गैर मान्यता प्राप्त पार्टी. इस तरह की पार्टी नारायण त्रिपाठी की पार्टी की तरह होती है. जो चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन करा सकती है. साथ ही जो नई-नई बनी हो और चुनाव लडऩे का माद्दा रखती हो. कुल मानकर कोई भी पार्टी बना सकता है. बस इसके लिए आयोग में रजिस्ट्रेशन कराना होता है.
भारत में कितनी तरह की होती हैं पार्टी?:देश में कितनी पार्टियों को राज्य, राष्ट्रीय और गैर मान्यता का दर्जा प्राप्त है. अगर चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें, तो देश में कुल 7 पार्टी राष्ट्रीय स्तर का दर्जा हासिल कर सकी हैं. इनके अलावा 58 पार्टियों को राज्य स्तर का दर्जा प्राप्त है. इनमें भी समय-समय के साथ फेरबदल किया जाता है. ये सभी चुनावी प्रदर्शन के आधार पर किया जाता है. साथ ही गैर मान्यता प्राप्त पार्टियों की संख्या 1786 है.
अगर नई पार्टी बनाना चाहते हैं, तो क्या करें:अब हम इन सबसे हटकर मूल प्रश्न पर आते हैं. अगर हम पार्टी बनाने के कानून पर नजर डालें, तो सबसे पहले हमें कानून की किताबों में झांकना पड़ेगा. इसमें एक कानून है. ये कानून है, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 अंग्रेजी में इसे Representation of the People Act 1951 कहा जाता है. इसके तहत पार्टी बनाने की एक प्रक्रिया है. चुनाव आयोग की मानें तो इसके तहत व्यक्ति को एक प्रक्रिया के तहत चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जाकर, फॉर्म भरना होता है. ये फॉर्म भरकर 30 दिन के अंदर आयोग को भेजना होता है. इस फॉर्म की एक फीस है. यानि आपको 10 हजार रुपए चुकाने होंगे.
ये रुपए डीडी के जरिए जमा कराए जाते हैं. इनके अलावा कुछ और अन्य बातों का भी ध्यान रखना होता है, जिसमें पार्टी बनाने वाले फाउंडर मेंबर को एक पार्टी का संविधान तैयार करना होता है. इसमें पार्टी का नाम के अलावा, ये पार्टी किस तरह से काम करेगी, इसकी जानकारी देना होती है. साथ ही पार्टी का विजन भी देना होता है. इन सभी चीजों के अलावा पार्टी प्रेसीडेंट का चुनाव और भारत के संविधान के प्रति आस्था और निष्टा रखने की बातों का जिक्र होना भी जरूरी है.
चुनाव आयोग को पार्टी अध्यक्ष की जानकारी देना होती है, और एक संविधान की कॉपी भी भेजना होती है. इसके अलावा बैंक अकाउंट की जानकारी भी देना होती है. पार्टी बनाने के समय इसमें करीबन 100 या उससे ज्यादा सदस्य होने जरूरी है. इनके अलावा पार्टी के पदाधिकारी, कार्यकारी समिति और कार्यकारी परिषद से जुड़ी जानकारी भी आयोग के सामने भेजना होती है. ये सभी प्रक्रिया शुरु में पूरी की जानी जरूरी है. इनके अलावा एक बात का और ध्यान देना जरूरी है कि पार्टी में शामिल सदस्य किसी अन्य दल से न जुड़े होने चाहिए.
कैसे होता है चुनाव चिन्ह तय: अब जो सबसे जरूरी जानकारी है, वो कि पार्टी का चुनाव चिन्ह आयोग कैसे तय करता है. भारत के संविधान के अनुसार इसके पीछे दो कानून काम करते हैं. एक तो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और दूसरा कंडक्ट ऑफ इलेक्शन 1961 यानि चुनाव संचालन का कानून. इन्ही कानूनों के आधार पर चुनाव आयोग को चुनाव चिन्ह प्रदान करने का अधिकार दिया गया है. इन्हीं शक्तियों का उपयोग कर चुनाव आयोग ने चुनाव चिन्ह आदेश 1968 जारी कर रखा है. इसी के सहारे चुनाव आयोग चुनाव चिन्ह प्रदान करता है. हर समय चुनाव आयोग के पास 100 चिन्ह पहले से होते हैं. इनके अलावा चुनाव आयोग सुनिश्चित करता है कि चुनाव चिन्ह ऐसा हो, जो आम जनमानस को आसानी से याद रहे.