भोपाल।जम्मू कश्मीर की चुनावी सुगबुगाहट के बीच इससे सटे हिमाचल प्रदेश में चुनावी घमासान शुरू हो गया है. हिमाचल की सर्द फिजा में चुनावी महासंग्राम गर्माहट घोल रहा है. (Himachal Election 2022) यहां चर्चा जम्मू कश्मीर के परिसीमन के मुद्दे की भी है. हिमाचल में आखिरी परिसीमन 2008 में हुआ था. इसके बाद से हिमाचल में विधानसभा के लिए कुल 68 सीटों पर चुनाव होते हैं. इसमें 17 निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं, जबकि 3 क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के आरक्षित हैं. आइए आपको बताते हैं कि आखिर क्या है परिसीमन का गणित. कैसे बढ़ती हैं विधानसभा सीटों की संख्या.
इसलिए किया जाता है परिसीमन:लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में परिसीमन का काम जनसंख्या के आधार पर किया जाता है. हालांकि किसी भी राज्य में परिसीमन का काम राज्य सरकार का नहीं होता. इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग गठित किया जाता है, जो लोकसभा और राज्य विधानसभा सीटों की सीमाओं का पुननिर्धारण यानी परिसीमन करता है. परिसीमन का मुख्य आधार जनसंख्या होता है, ताकि सभी विधानसभाओं में लगभग एक समान जनसंख्या हो. परिसीमन आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और यह निर्वाचन आयोग के साथ मिलकर काम करता है.
देश में 2026 में होगा परिसीमन:देश में आजादी के बाद पहला परिसीमन 1950-51 में किया गया था. इसके बाद 1952, 1962, 1972 और 2002 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया. 1976 में आपातकाल के दौरान संविधान में संशोधन कर इसे 2001 तक के लिए स्थगित कर दिया गया था. बाद में एक अन्य संशोधन के बाद इसे 2026 तक के लिए स्थगित कर दिया गया. हालांकि जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन और केन्द्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद इसका परिसीमन किया गया है. उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद भी इसका परिसीमन किया गया था. परिसीमन जनगणना के आधार पर किया जाता है. 2001 की जनगणना के आधार पर 2008 में परिसीमन किया गया था. इस दौरान हिमाचल प्रदेश का भी परिसीमन किया गया था, जिसके बाद प्रदेश में भी सीटों की संख्या बढ़कर 68 हो गई थी.