भोपाल। गुजरात में विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट बंटवारे के फार्मूले से लेकर तक पार्टी के हर एक्शन की एमपी में भी रिएक्शन है. गुजरात में टिकट बांटने के फार्मूले में परिवारवाद पर ब्रेक लगाने के सवाल एमपी में पहले ही उठ चुके हैं. अब गुजरात में जिस तरह से उम्मीदवारों की पहली सूची में पार्टी ने सिटिंग एमएलए का पत्ता कटा है. इसने एमपी में बीजेपी के विधायकों की भी धड़कनें बढ़ा दी हैं. खास बात ये है कि इस सूची में दलबदलू सिरे से दरकिनार नहीं हुए हैं. जिससे एमपी में सिंधिया समर्थक विधायकों को उम्मीद बंधी है कि उनका पत्ता आसानी से नहीं कटेगा. एमपी में भी चुनाव नजदीक है ऐसे में सवाल ये कि 2018 में सबक ले चुकी बीजेपी 2023 में कितने सीटों पर बदलाव की बयार लाएगी.
MLA को सीट से पहले टिकट बचाने की चिंता:चुनावी साल लगते ही विधायकों की अगले चुनाव में जीत हार को लेकर चिंता तो लाजिमी है, लेकिन अब गुजरात में उम्मीदवारों के एलान के बाद एमपी में बीजेपी विधायकों को सीट से पहले टिकट बचाने की चिंता है. चुनौती कई मोर्चों पर है क्योंकि बुंदेलखंड और ग्वालियर चंबल में तो खींचतान नई और पुरानी बीजेपी के बीच भी है. जिन सीटों पर सिंधिया गुट प्रभावी है वहां तो एक एक विधानसभा सीट हालात एक अनार सौ बीमार वाले बन रहे हैं.
फार्मूला गुजरात का असर एमपी में:बीजेपी के पूर्व मंत्री अंतर सिंह आर्य सेंधवा विधानसभा क्षेत्र से दावेदारी की तैयारी कर रहे है लेकिन अब उन्हें इस बात की फिक्र है कि जब सिटिंग एमएलए के पार्टी टिकट काट रही है तो ऐसे में पिछला चुनाव में हारे उम्मीदवारों पर कौन दांव लगाएगा. अंतर सिंह आर्य ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि जनता से जो पार्टी को फीडबैक मिले उस पर फैसला लेना चाहिए. जिसकी जनता के बीच पकड़ है उसे पार्टी उसे टिकट दे. अंतर सिंह आर्य भी 2023 की तैयारी करते हुए जमीनी जमावट में जुटे हुए हैं. मंदसौर से बीजेपी के टिकट विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया बीजेपी के गुजरात टिकट वितरण फार्मूले पर कहते हैं कि पार्टी मेंं निर्णय समन्वित रुप से सामूहिक सोच से और सोच समझ कर होते हैं. अगर पार्टी को लगता है कि परिवर्तन करना है तो करना है तो फिर उसमें कोई सवाल नहीं उठता.
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कट सकते हैं 60 से ज्यादा विधायकों के टिकट:बीजेपी से जुड़े सूत्र बता रहे हैं कि इस बार एमपी में 230 सीटों में से 60 से ज्यादा सीटों पर सिटिंग एमएलए का पत्ता साफ हो सकता है. पार्टी की सर्वे रिपोर्ट में जनता से मिला फीडबैक तो है ही, कई विधायक ऐसे भी हैं जिन्हें लेकर जिले के संगठन पदाधिकारियों को भी शिकायत है. दूसरी तरफ बुंदेलखंड में सुरखी सीट पर बीजेपी से निष्कासित नेता राजकुमार धनौरा का बयान चुनाव के पहले का ट्रेलर कहा जा सकता है. जिसमें उन्होने कहा था कि 30 साल पार्टी की सेवा करने के बाद कीड़े मकोड़े की तरह उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. उनकी नाराज़गी तो खुलकर बाहर आई है, बाकी कई सीटों पर ऐसे घमासान की संभावनाएं हैं. सागर की आठ सीटों पर भूपेंद्र सिंह, गोपाल भार्गव और अब गोविंद सिंह राजपूत पार्टी के तीन कद्दावर मंत्रियों के बीच खींचतान जारी है. यहां कभी शिवराज के खास माने जाने वाले जयंत मलैया, रामकृष्ण कुसमारिया, खुरई से तीन बार विधायक रहे धरमू राय, सागर में दिवंगत पूर्व मंत्री हरनाम सिंह राठौर का परिवार भी टिकट का दावेदार है. सागर से चार बार के विधायक शैलेंद्र जैन, प्रदीप लारिया जो मंत्री नहीं बन पाए इनकी भी उम्मीदें आसमान पर हैं. ऐसे में बुंदेलखंड में असंतोष की बड़ी संभावना हैं जिसे संभालना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती होगी.
कांग्रेस का मानना-गुटों में बंटी बीजेपी 100 सीटों पर सिमट जाएगी:कांग्रेस मीडिया सेल की उपाध्यक्ष संगीता शर्मा के मुताबिक गुजरात का असर एमपी में बीजेपी में दिखना शुरु हो गया है. वे कहती हैं कि अब बीजेपी में नाराज भाजपा, शिवराज भाजपा, वीडी भाजपा नाम के 3 गुट हैं. सिंधिया गुट पहले से है ही जो मजबूती से उभर रहा है. ऐसे में सवाल ये है कि सिंधिया समर्थकों को टिकट दिए जाएंगे या बीजेपी पार्टी और संगठन के लोगों को टिकट दिए जाएंगे. इस खींचतान में शिवराज भाजपा, वीडी भाजपा में खलबली है कि टिकट किसे मिलेंगे. ऐसे में एमपी में हालात बिगड़ेंगे. कांग्रेस नेता आशंका जताती हैं कि 2023 के पहले बीजेपी में इतनी सिर फुटौव्वल होगी कि बीजेपी इसे संभाल नहीं पाएगी. ऐसे में वह इन चुनावों में 100 सीटों पर भी सिमटती नजर आ सकती है.
केन्द्रीय नेतृत्व का निर्णय होगा स्वीकार:बीजेपी के प्रदेश मंत्री रजनीश अग्रवाल का कहना है कि मध्यप्रदेश में विधानसभा का जब चुनाव आएगा तब यहां के समीकरण और स्थिति के हिसाब से टिकट वितरण का फार्मूला तय होगा. अग्रवाल कहते हैं कि गुजरात के मापदंड गुजरात की परिस्थितियों के अनुसार हैं. ऐसे में पार्टी की केन्द्रीय चुनाव समिति यहां की समितियों के अनुशंसाओं पर विचार करेगी. इसके बाद केन्द्रीय नेतृत्व जो निर्णय लेगा वो पार्टी में स्वीकार होगा.