भोपाल। सिजेरियन डिलीवरी का ट्रेंड अस्पतालों में हाल के दिनों में ज्यादा तेजी से बढ़ा है. मध्यप्रदेश में प्राइवेट अस्पतालों की तुलना में सरकारी अस्पतालों में सिजेरियन डिलीवरी के मामले ज्यादा हैं. इस बात की तस्दीक ये आंकड़े दे रहे हैं. मध्यप्रदेश में अप्रैल माह से अब तक कुल 42 हजार 664 डिलीवरी हुई है. इनमें प्राइवेट अस्पतालों में 21 हजार 456 डिलीवरी हुई है. प्राइवेट अस्पतालों में 55 प्रतिशत सिजेरियन डिलीवरी हुई है. वहीं सरकारी अस्पतालों में 30 प्रतिशत सिजेरियन अप्रैल माह से अब तक हुई है.
एमपी के सरकारी अस्पताल में सिजेरियन डिलीवरी के केस ज्यादा
निजी अस्पतालों में 55 प्रतिशत सिजेरियन डिलीवरी
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अपर संचालक संतोष शुक्ला बताते हैं कि अस्पताल अपने स्तर पर पूरा प्रयास करता है कि महिला की नॉर्मल डिलीवरी हो, जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हो. लेकिन कई बार ऐसी क्रिटिकल कंडीशन सामने आ जाती है कि डॉक्टर्स ऑपरेशन करने पर मजबूर हो जाते है. क्योंकि उनके सामने 2 जिंदगियों को बचाने की जिम्मेदारी होती है. उन्होंने कहा ऐसी शिकायते सरकारी अस्पतालों में कम ही आती है लेकिन प्राइवेट अस्पतालों की आये दिन शिकायते आती है कि बिना किसी कारण डॉक्टर्स सिजेरियन डिलीवरी कर रहे हैं. इसमें हर साल आंकड़े बढ़ रहे हैं. प्राइवेट अस्पतालों में 40 प्रतिशत सिजेरियन डिलीवरी होती है. इस पर लगाम लगाने के लिए स्वास्थ विभाग हर माह अस्पतालों का निरीक्षण कर डाटा एकत्रित करता है और ज़्यादा सिजेरियन होने पर अस्पतालों से जवाब भी मांगा जाता है. वहीं सरकारी अस्पतालों में यह टारगेट दिया जाता है कि 90 प्रतिशत डिलीवरी नॉर्मल हो.
सिजेरियन डिलीवरी बढ़ने की यह है वजह
गांधी मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर एवं गायनोकॉलोजी डॉक्टर वरुणा पाठक बताती हैं कि नॉर्मल डिलीवरी महिला के भविष्य के लिए अच्छी होती है. नार्मल डिलीवरी में भविष्य में महिलाओं को कोई दिक्कत नहीं होती और अगर पहली डिलीवरी नॉर्मल होती है तो दूसरी भी संभवतः नॉर्मल ही होती है. उनका कहना है की डॉक्टर्स को हमेशा आखरी तक नॉर्मल डिलीवरी करने का प्रायास करना चाहिए और डॉक्टर्स अगर प्रायास करें तो 90 प्रतिशत मामलों में नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है. लेकिन अक्सर खुद परिवार के लोग ऑपरेशन करने को बोल देते है और डॉक्टर्स को ऑपरेशन करना पड़ता है.
नॉर्मल डिलीवरी है ज्यादा सेफ
डॉक्टर वरुणा पाठक एक ऐसी डॉक्टर है जिन्होंने अपने कैरियर में 90 प्रतिशत डिलीवरी नॉर्मल की है. वो बताती है कि उनके पास ऐसे कई मामले आते है जब फैमिली ही आखरी समय मे ऑपरेशन करने को बोल देती है. क्योंकि वे महिला का दर्द नहीं देख पाते, लेकिन डॉक्टर होने के नाते उनको समझाने की हम कोशिश करते है और कोशिश करते है कि डिलेवरी नॉर्मल हो. महिला को भविष्य किसी प्रकार की कोई दिक्कत ना हो.
सिजेरियन डिलीवरी में होती है यह दिक्कतें
डॉक्टर वरुणा पाठक बताती है कि बहुत सी मां दर्द से बचने के लिए ऑपरेशन से डिलेवरी कराती है. हालांकि ऐसा नहीं करना चाहिए. नॉर्मल डिलीवरी से आपको भविष्य में कोई दर्द या समास्याए सामने नहीं आती. बल्कि ऑपरेशन से जब डिलीवरी होती है तो सर्जिकल कॉम्प्लिकेशन होते है. क्योंकि अगर पहली डिलीवरी ऑपरेशन से होती है तो 40 प्रतिशत चांस होते है कि दूसरी भी ऑपरेशन से ही होगी. ऐसे में जब-जब बार टाके लगाए जाएंगे तो सर्जिकल कॉम्प्लिकेशन बढ़ने की संभावना होगी.
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इस वजह से होती है सिजेरियन डिलीवरी
डॉक्टर वरुणा पाठक का कहना है कि 40 प्रतिशत मामलों में फैमिली खुद ऑपरेशन डिलीवरी कराने की इछुक होती है और 30 प्रितशत मामलों में सिचुएशन क्रिटिकल होती है. वहीं 10 प्रतिशत मामले आजकल इसलिए बढ़ गए है. क्योंकि महिलाएं आजकल ओवर ऐज होने के बाद शादी करती है. ऐसे में 35 के बाद महिलाओं की बच्चा दानी इतनी स्ट्रांग नहीं होती कि वे नॉर्मल डिलीवरी करवा सकें और अक्सर अधिक उम्र की महिलाओं के साथ इस तरह के कंप्लीकेशन्स होते हैं. जब 90 प्रतिशथ सिजेरियन करना पड़ता है. उन्होंने यह भी बताया कि पिछले कुछ सालों में ऐसे मामले 70 फीसदी बढ़े है. 40 से 49 उम्र तक कि महिलाएं डिलीवरी कराने आ रही हैं.
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सिजेरियन से डरने की जरूरत नहीं, सावधान होने की जरूरत
डॉक्टर्स का मानना है कि सिजेरियन से बहुत ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है. बस सतर्क रहने की जरूरत है. आप कोशिश करें कि डिलीवरी नॉर्मल हो, लेकिन अगर नहीं होती है तो इससे डरने की जरूरत नहीं है. क्योंकि आजकल 60 प्रतिशत डिलीवरी सिजेरियन होती है और कई मामलों में सिजेरियन करना मजबूरी होती है. ऐसे में यह बात समझना भी जरूरी है कि आजकल तमाम टेक्निक्स आ गई है. जिससे सिजेरियन के बाद भी दर्द और अन्य समस्याओं से छुटकारा पाने के कई उपाय मिल जाते हैं. आजकल टाके भी काटने की बजाए घुलने वाले लगते है. ऐसे में महिलाओं को सिजेरियन से डरने की जरूरत नहीं है.