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Flashback: सीएम शिवराज के लिए कैसा रहा साल 2020 ?

सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिए वैसे तो साल 2020 काफी लकी रहा. वे चौथी बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन इस साल शिवराज के सामने कुछ चुनौतियां भी रहीं. जिनका उन्होंने डटकर सामना किया.

CM Shivraj Singh Chauhan
सीएम शिवराज सिंह चौहान

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Published : Dec 30, 2020, 9:45 PM IST

भोपाल। संगठन में दायित्व की बात हो या फिर सत्ता चलानी हो, बीजेपी दिग्गज नेता शिवराज सिंह चौहान ने एक राजनेता की हैसियत से खुद को हर पैमाने पर साबित किया है.तभी तो कांग्रेस को करीब 13 सालों तक वे मध्यप्रदेश की सत्ता से दूर रख सके. हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली शिकस्त ने संगठन में शिवराज की छवि पर बट्टा लगा दिया. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में ये दाग धुल गया. साल 2020 की शुरूआत हुई. मध्यप्रदेश की सियासत में तूफान उठा और फिर शिवराज ने इतिहास रचते हुए चौथी बार मुख्यमंत्री की शपथ ली. लेकिन ये इतना आसान नहीं था. आइए जानते हैं कि 2020 सीएम शिवराज के लिए कैसा रहा...

शिव चौबे

साल 2020 की शुरूआत...

जनवरी 2020 में कमलनाथ, राज्य की बागडोर संभाल रहे थे. इस दौरान शिवराज लगातार किसान कर्ज माफी को लेकर राज्य सरकार को घेरने में लगे हुए थे. उधर बीजेपी लंबे समय से ही मध्यप्रदेश में ऑपरेशन कमल ऑपरेट करने की जुगत में थी. पर्दे के पीछे का खेल शुरू हो चुका था. इसी बीच शिवराज महाराज यानी सिंधिया से मिले. हालांकि की ये सामान्य मुलाकात ही थी. लेकिन सियासत की बिसात बिछ चुकी थी. कुछ दिनों बाद सिंधिया के बगावती तेवर दिखने लगे. अपनी ही पार्टी के खिलाफ सड़क पर उतरने जैसी बयानबाजी हुई. उसके बाद कांग्रेस में स्थितियां बिगड़ती गईं. ऑपरेशन कमल के खिलाड़ियों ने अपना काम करना शुरू कर दिया था. लेकिन सीधे तौर पर शिवराज इस सूची में शामिल नहीं थे. जिसके बाद अटकलें लगाईं जा रहीं थीं कि अगर कांग्रेस की सरकार गिरती है तो मध्यप्रदेश में बीजेपी बतौर मुख्यमंत्री किसी नए चेहरे को पेश कर सकती है. शिवराज को केंद्र में कोई जिम्मेदारी दी जा सकती है.

सीएम शिवराज सिंह चौहान

पार्टी की अंदरूनी लड़ाई जीती

बीजेपी की तरफ से सीएम उम्मीदरवारों में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव समेत कई दिग्गज नेताओं के नाम सामने आ रहे थे. ऐसे में शिवराज पार्टी आलाकमान को ये संदेश देने में कामयाब रहे कि वे मध्यप्रदेश में ही काम करना चाहते हैं और नेतृत्व में ही बीजेपी दोबारा सत्ता पर काबिज हो सकती है. बीजेपी का ऑपरेशन कमल एक्सीक्यूट हुआ. सिंधिया बीजेपी में शामिल हुए. 22 सिंधिया समर्थक विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई. रिसोर्ट पॉलिटिक्स से होते हुए मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और बात फ्लोर टेस्ट तक पहुंच गई. लेकिन उससे पहले ही कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया. जिसके बाद 23 मार्च को शिवराज ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और पहली चुनौती पार कर ली.

मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण समारोह

सत्ता संभालते ही कोरोना से लड़ने की चुनौती

शिवराज के मुख्यमंत्री बनने के बाद की डगर और भी मुश्किल थी. जिसमें सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश में फैल रहे कोरोना संक्रमण को रोकने के उपाय व लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करना था. यही वजह थी कि सीएम पद की शपथ लेते ही शिवराज वल्लभ भवन पहुंचे और अधिकारियों के साथ बैठक की. जिसमें प्रदेश में कोरोना से लड़ने की तैयारियों की जानकारी ली.

कोरोना एक बड़ी चुनौती

शिवराज ने कोरोना से बचाव को लेकर कई ऐसे हाथ कदम उठाए, ताकि मध्यप्रदेश में कोरोना को रोका जा सके. प्रदेश के कई बड़े अस्पतालों को कोविड-19 अस्पताल में तब्दील किया गया. कोरोना टेस्टिंग बढ़ाई गई. प्रवासी मजदूरों को दूसरे राज्यों से वापसी के लिए बसों का इंतजाम किया गया. खाने-पीने का इंतजाम हुए.

'वन मैन आर्मी बने शिवराज'

इसके बाद मंत्रिमंडल विस्तार की सरगरमी शुरू हुई.आखिर किसको कैबिनेट में जगह दी जाए. ये यक्ष प्रश्न था.क्योंकि सिंधिया खेमे के 6 मंत्रियों ने इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थामा था. लिहाजा शुरूआती दौर में टोटल लॉकडाउन और सियासी मंथन के चलते विस्तार को टाल दिया गया. इसी बीच शिवराज ने देश में अब तक बिना कैबिनेट के सबसे ज्यादा दिनों तक बतौर मुख्यमंत्री काम करने का नया रिकॉर्ड बना दिया. शिवराज ने पूरे 29 दिनों तक अकेले ही सरकार चलाई. इससे पहले ये रिकॉर्ड कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के नाम था.

कैबिनेट गठन व चयन में संतुलन

आखिर वो दिन आ गया, जब सीएम शिवराज की कैबिनेट का गठन हुआ. लेकिन इस दौरान चाहकर भी शिवराज अपने खेम के नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं कर पाए. आलाकमान की मुहर के बाद 21 अप्रेल को शिवराज कैबिनेट में पांच मंत्री शामिल हुए. जिनमें दो सिंधिया समर्थक( तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत) थे. बाकि तीन मंत्रियों के चयन में जातिगत समीकरणों का ध्यान रखा गया. चंबल क्षेत्र के ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले नरोत्तम मिश्रा, ओबीसी के नुमाइंदे तौर पर कमल पटेल और बतौर अनुसूचित जाति-जनजाति के रिप्रिजेंटेटिव के रूप में मीना सिंह को जगह मिली.

मंत्रिमंडल का विस्तार

कई दावेदार

कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. कैबिनेट में जगह पाने के लिए तमाम दावेदारों के नाम सामने आने लगे. सीएम शिवराज के सामने नया संकट था. क्योंकि उनके खेमे के नेता भी मंत्रिमंडल में शामिल होना चाहते थे. दूसरी तरफ नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेताओं के समर्थक थे. इस कतार में सबसे आगे वे नेता थे, जो हाल ही में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे.

...जब शिवराज ने पिया 'विष'

मंत्रिमंडल विस्तार के लिए काफी खींचतान हुई. कई बीजेपी नेताओं की नाराजगी भी देखने को भी मिली. लेकिन पार्टी अनुशासन के चलते खुलकर विरोध देखने को नहीं मिला. फिर वो तारीख भी आ गई, जब शिवराज कैबिनेट में अन्य नेताओं को जगह मिली. लेकिन उससे पहले शिवराज खुद असहज नजर आए. क्योंकि मंत्रिमंडल के विस्तार से पहले उन्होंने एक ट्वीट किया था, जिससे ये जाहिर हुआ कि सिंधिया ने मंत्री पद समर्थकों के लिए मांगे उससे शिवराज संतुष्ट नहीं थे.

शिवराज-महाराज एक साथ

शिवराज ने ट्वीट कर कहा था कि ‘आये थे आप हमदर्द बनकर, रह गये केवल राहजन बनकर.पल-पल राहजनी की इस कदर आपने कि आपकी यादें रह गईं दिलों में जख्म बनकर.’ इससे शिवराज की मनोदशा का अंदाजा लगाया जा सकता है.2 जुलाई को मंत्रिमंडल का विस्तार होना था.लेकिन उससे एक दिन पहले ही शिवराज ने खुद की तुलना शिव से की. मंत्रिमंडल के मंथन से निकलने वाला अमृत व विष किसको मिलेगा. इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि विष तो शिव ही पीते हैं. इससे साफ था कि उनके खेमे और बीजेपी के कई नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने वाली है. अगले दिन यानि 2 जुलाई को इसकी पुष्टि भी हो गई. 28 मंत्रियों ने शपथ ली. इनमें 12 मंत्री सिंधिया खेमे के थे. जबकि बीजेपी के 16 विधायक मंत्री बने. कैबिनेट में चंबल क्षेत्र का दबदबा रहा. ये लाजमी था,क्योंकि आगामी उपचुनाव में ये क्षेत्र निर्णायक भूमिका निभाने वाला था.

25 जुलाई को शिवराज कोरोना संक्रमित

सीएम शिवराज तमाम पड़ावों को पार करते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि इसी दौरान कोरोना संक्रमण ने बीजेपी नेताओं को भी अपनी जद में ले लिया. सीएम शिवराज सिंह चौहान की खुद भी कोरोना पॉजिटिव हो गए थे. शिवराज ने इस चुनौती का सामना किया और उन्होंने अस्पताल में रहते हुए भी कैबिनेट संबंधी काम किए. वीडियो कॉनफ्रेंसिंग के जरिए अपनी जिम्मेदारियों को निभाते रहे.

उपचुनाव की चुनौती

शिवराज कैबिनेट विस्तार के बाद विभागों का बंटवारा हुआ और आगे के कार्य शुरू हुए. साथ ही उपचुनाव की तैयारियां भी जोरों से होने लगीं.सिंधिया समर्थकों की बगावत के बाद 24 सीटों पर उपचुनाव होने थे, लेकिन एक के बाद एक कांग्रेस विधायक पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और ये संख्या 28 पहुंच गई.हालांकि इनमें तीन सीटें ऐसीं थीं,जिन पर सिटिंग विधायक का निधन हुआ था.

'उपचुनाव में धमाकेदार जीत'

मध्यप्रदेश में उपचुनाव की घोषणा हुई. प्रचार के दौरान, कभी अपने प्रतिद्विंदी रहे सिंधिया के साथ सीएम शिवराज ने कंधे से कंधा मिलाकर काम किया.3 नवंबर को मतदान हुआ. 10 नवंबर को रिजल्ट आया. जिसमें बीजेपी ने 28 में से 19 सीटों पर जीत दर्ज की. इस जीत के बाद सदन में स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया.

बीजेपी नेताओं का जीता विश्वास

उपचुनाव में बीजेपी के जिन नेताओं की टिकट कटी थी, उनमें दबे स्वर में कहीं ना कहीं विरोध तो था. शिवराज भी इसे भांप गए थे. लिहाजा उन्होंने सभी नेताओं को साधने के लिए संगठन में नेताओं की एक टीम तैयार की. बेहतर प्रबंधन की टीम के साथ उपचुनाव में शानदार जीत दर्ज की.

क्या बोले बचपन के दोस्त ?

सीएम शिवराज के बचपन के दोस्त शिव चौबे का कहना है कि शिवराज के पास आध्यात्मिक और संस्कारों की ताकत है. विपरीत परिस्थितियों में भी शिवराज चिराग जलाते हुए उजियारा फैलाते रहे.कई बार पारिवारिक समस्याएं भी सामने आईं. लेकिन उन्होंने बेहतर तरीके से काम किया है.

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