भोपाल।राजधानी भोपाल में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए तेजी से सर्वे और सैंपलिंग का काम किया जा रहा है. सर्वे टीमों ने भोपाल की तपती धूप में भी यह काम जारी रखा है. मई की चिलचिलाती धूप में पीपीई किट पहनकर काम करना डॉक्टर और नर्सों लिए बहुत ही मुश्किल भरा काम है, क्योंकि पीपीई किट के कारण पसीने से यह सब तरबतर हो जाते हैं और किट पहनने के बाद यह कुछ खा-पी भी नहीं सकते है. जिसके चलते अब सर्वे टीम के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ने लगा है.
भोपाल में सर्वे-सैंपलिंग की टीम के डॉक्टर-नर्सों को तेज गर्मी में लगातार किट पहनने से डिहाइड्रेशन हो रहा है. सर्वे टीम में शामिल जेपी के छह, हमीदिया के सात और रेडक्रॉस अस्पताल के एक कोरोना योद्धा सर्वे के दौरान बीमार पड़ चुके हैं. टीम का कहना है कि पहले के मुकाबले में अब ज्यादा मोटी किट हमें दी गयी है. गुरुवार को इस किट के पहनने के एक घंटे बाद ही एक दर्जन से ज्यादा डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की तबीयत बिगड़ गई.
जेपी अस्पताल में दो तो वहीं जहांगीराबाद में एक स्टाफ नर्स बेहोश हो गई. इनमें से एक को इमरजेंसी में एडमिट करना पड़ा. चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ का आरोप है कि उन्हें इस बार ज्यादा मोटी पीपीई किट्स दी गई है. इसको लेकर कुछ चिकित्सकों ने गांधी मेडिकल कॉलेज में नाराजगी भी जताई है. जानकारी के मुताबिक गांधी मेडिकल कॉलेज की नर्सिंग स्टाफ की सदस्य चंद्रिका पाटनकर की ड्यूटी जहांगीराबाद क्षेत्र में लगी थी. किट बहुत ज्यादा मोटी थी, जिससे तेज गर्मी के कारण बहुत ज्यादा पसीना आ गया और शरीर में पानी की कमी हो गई. इससे हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई. किट पहने रहने के कारण उन्हें भी काफी देर तक उल्टियां होती रहीं. इस स्थिति में भी टीम ने सैंपलिंग का काम पूरा किया.
टीम का कहना है कि इस बार किट अलग है, इसमें पसीना बहुत ज्यादा आता है.विशेषज्ञों की माने तो पीपीई किट में उपयोग किया जाने वाली प्लास्टिक 90 जीएसएम मोटाई की होनी चाहिए. इससे ज्यादा मोटी होने पर पहनने वाले को ज्यादा गर्मी लगेगी. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि पीपीई किट का विकल्प नहीं है और इसके पहनने से गर्मी भी लगेगी. किट नहीं पहनेंगे तो संक्रमित हो जाएंगे जो ज्यादा खतरनाक होगा. इसके अलावा टीम को किट पहनाकर मैजिक गाड़ी से साइट पर भेजा जाता है. मैजिक बहुत ज्यादा गर्म हो जाती है, जिससे दिक्कत बढ़ जाती है. किट के साथ एक लीटर सादा पानी दिया जाता है, जबकि नमक शकर का घोल देना चाहिए, जिससे शरीर में पानी की कमी ना हो. सैंपल लेने वाले कैंप में ना तो पंखा होता है ना ही बैठने की जगह होती है. कई बार मरीजों के सैंपल मैजिक ऑटो में लिए गए. इन सब कारणों से भी लगातार सर्वे और सैंपलिंग के काम में जुटी टीम के सदस्यों की तबियत बिगड़ने के मामले सामने आ रहे हैं.