भोपाल।इसे खबर की तरह सरसरी निगाह से पढ़कर मत गुजर जाइए. ठहर कर जरा उस बच्चे के साथ खड़े होकर समझिए इस खबर को भी और उस तस्वीर को भी जिस तस्वीर में सबसे पीछे दौड़ रहा बच्चा विजेता कहलाता है. क्योंकि इस बच्चे की दौड़ साथ दौड़ रहे बाकी बच्चों से थी ही नहीं. ये बच्चा अपनी ही उम्र के बाकी बच्चों से जीतने दौड़ा भी नहीं था. कोई जिद्द नहीं थी उसे किसी को हरा देने की. वो बच्चा खुद को जीतने और खुद को हराने दौड़ा. खुद को ये बताने दौड़ा कि लड़खड़ाकर ही सही, दौड़ तो मैं भी सकता हूं. खुद को ये जताने दौड़ा कि केवल हौसले की बात हैं, केवल जिद्द की बात है. दौड़ भी मुमकिन है और जीत भी. खबर ग्वालियर जिले की है, जहां एक मासूम दिव्यांग बच्चा पिता के कंधे पर बैठकर रेस का हिस्सा बना और पैरों को पूरा हौसला बनाकर दौड़ता चला गया. ग्वालियर जिले के डीएसपी संतोष पटेल ने इस बच्चे को सम्मानित किया और बाद में इस बच्चे का वीडियो अपने ट्विटर हैंडल से शेयर किया.
पैरों से नहीं वो हौसले से दौड़ा थाःकुछ तस्वीरें मिसाल बन जाती हैं. ग्वालियर जिले में हुई बच्चों की दौड़ की ये तस्वीर ऐसी ही है. जो सिखाती है, प्रेरणा बनकर बताती है कि दौड़ हमेशा प्रतिस्पर्धी से नहीं होती. वीडियो में दिखाई दे रहा ये मासूम बच्चा भी दौड़ना चाहता था. तो क्या हुआ जो उसका शरीर इसकी इजाजत नहीं देता. हौसले तो उसके भी उसी तरह से बुलंद हैं जैसे बाकी बच्चों के. पिता ने भी बच्चे की ख्वाहिश का मान रखा और उसे कंधे पर बिठाकर दौड़ में लेकर आए. बच्चा पूरी ताकत से दौड़ा भी और कतार में आखिर में होने के बाद जीता भी. जीता इसलिए कि उसको खुद को जीतना आ गया. खिलखिलाते बच्चे को मालाएं पहनाई गईं विजेता की तरह और मिला पुरस्कार भी. पुरस्कार इसलिए कि उसने हिम्मत नहीं हारी. ताकि वो भविष्य में अपनी उड़ान पा सके.