भोपाल। आपातकाल लोकतंत्र पर लगा वो बदनुमा दाग है, जिसके साथ जीना ही इस लोकतंत्र की नियति बन गई है. हालांकि, आपातकाल को सभी राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से परिभाषित करते हैं. सत्तारूढ़ बीजेपी भले ही (Emergency) को (Democracy) का काला अध्याय बताती है, जबकि विपक्ष बीजेपी के शासनकाल को ही आपातकाल के रूप में परिभाषित करने की कोशिश कर रही है. एक ट्वीट को रिट्वीट करते हुए पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने लिखा- किसी ने क्या खूब कहा है- वर्तमान से पराजित लोग ही, इतिहास में जीते हैं! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी कृपया अब आज में आ जाइए! आपके कुप्रबंध से जीता #CoronaVirus, अर्थव्यवस्था इतिहास बना रहा है! मौत, महंगाई और महामारी जैसे शब्द, अब पर्यायवाची लग रहे हैं! माफ करो सरकार, मोदी मतलब बंटाधार.
वहीं जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव ने ट्विटर पर लिखा- लगा होगा कभी कोई आपातकाल, पर 16 मई 2014 से देश आफतकाल को भुगत रहा है.
25 जून 1975 की आधी रात को देश में आपातकाल लागू कर दिया गया था, जिसकी घोषणा 26 जून की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो के जरिए की थी, तब इंदिरा गांधी ने देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा बताते हुए आपातकाल का एलान किया था. आपातकाल लगते ही मीडिया को रेगुलेट कर दिया गया, विरोध करने वालों को जेल में ठूस दिया गया. अभिव्यक्ति की आजादी को भी कुचल दिया गया, जबकि नागरिकों के मौलिक अधिकार को भी सस्पेंड कर दिया गया.