भोपाल।कोरोना की दूसरी लहर ने हर ओर तबाही का आलम नजर आ रहा है. सरकार के आंकड़ों और श्मशान की हकिकत बिल्कुल अलग-अलग दिखाई दे रहे है. असर ऐसा है कि हर शख्स परेशान और लाचार दिखाई देता है. किसी को बीमारी का डर है, तो किसी को इलाज की फिक्र सता रही है. गली-मोहल्ले से लेकर रास्ते और चौराहों तक एक सा ही मंजर दिखाई देता है. अपनों की खैरियत की चिंता में लोग दवाखानों से लेकर अस्पतालों तक बेपरवाह से भाग रहे है. ना इनके खाने का ठिकाना है और ना प्यास बुझाने का इंतजाम. ऐसे में कोई आकर इनकी मदद कर दे तो उसे किसी मसीहा से कम नहीं माना जा सकता.
आज के दौर में ऐसे भी कुछ फिक्र मंद लोग हैं, जो इंसानियत की मिसाल बने हुए है. जिन्हें उन लोगों की फिक्र है, जो अस्पतालों में अपने परिजनों का इलाज करवाने आए हैं लेकिन उनके भोजन पानी का कोई इंतजाम नहीं है. अपनों को बचाने के लिए लाचार और बेबस लोगों के लिए राजधानी के कुछ लोग निस्वार्थ भाव से मदद के लिए दिन-रात जुटे हुए हैं. अस्पतालों में जाकर रोजाना भोजन और पानी का इंतजाम कर रहे हैं. कुछ समाजसेवियों ने एक टीम बनाई है जो 'कम्युनिटी किचन' चलाती है. ये टीम सुबह से लेकर शाम तक लोगों का पेट भरने के लिए भोजन लेकर रोज पहुंच रही है, साथ ही होम क्वारंटाइन लोगों के लिए खाने की होम डिलीवरी भी कर रही है.
- कोरोना से जंग जीत कर लिया फैसला
इस टीम में सभी लोग ऐसे हैं, जिन्होंने कोरोना को हराकर जंग जीती है. अब यही लोग अस्पतालों में लोगों की मदद करने जा रहे है. इन सब ने मिलकर एक कम्युनिटी किचन बनाया है. जिसमें रोजाना करीब 400 लोगों का खाना बनता है. टीम के सदस्य सुबह 5 बजे से तैयारियों में जुट जाते हैं. एक टीम भोजन बनाने का काम करती है, तो दूसरी टीम इस भोजन को अस्पतालों में जरूरतमंदों तक पहुंचाती है. टीम की सदस्य मीता वाधवा, पूजा अयंगर, प्रशांत पांडे, देवेंदु मलिक और अविनाश चौहान जैसे सैकड़ों लोग मानव सेवा में लगे हुए हैं. सदस्यों का कहना है कि जब हम तकलीफ में थे तो हमने महसूस किया की लोगों को अस्पतालों में कोरोना का इलाज करवाने के दौरान कितनी परेशानी होती है. खासकर उन लोगों को जो मरीजों के साथ अस्पतालों में रुके हुए है. मरीज के इलाज की चिंता के चलते उनके खाने-पीने की व्यवस्था कहीं दिखाई नहीं देती. इसलिए हमने फैसला लिया की ऐसे लोगों की मदद की जाए.
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