भोपाल। कोरोना काल में बच्चों को शिक्षा देने के लिए शासन की ओर से ऑनलाइन कक्षाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन ऑनलाइन कक्षाओं से जुड़ पाना शासकीय स्कूलों के बच्चों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि प्रदेश के शासकीय स्कूलों में पढ़ने वाले 60 प्रतिशत छात्रों के पास स्मार्ट फोन की सुविधा नहीं है. हालांकि नई गाइडलाइन के अनुसार कक्षा 9वीं से लेकर 12वीं तक के छात्रों के लिए स्कूल खोले गए हैं. इसलिए कोरोना काल के बीच कुछ छात्र स्कूल आ भी रहे हैं. क्योंकि ऑनलाइन पढ़ाई करने के लिए उनके पास साधन नहीं हैं. लेकिन उनका क्या जो 20 प्रतिशत कंटेनमेंट जोन में आते हैं. आखिर वो कैसे लेंगे शिक्षा.
कंटेनमेंट जोन के बच्चे शिक्षा से वंचित
कोरोना काल मे स्कूल बंद होने की वजह से शासकीय स्कूलों के छात्रों को शिक्षा लेने में बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ने वाले छात्र आज 6 महीने बाद भी पढ़ाई से वंचित हैं. प्रदेश के शासकीय स्कूल भले ही खुल चुके हैं, लेकिन राजधानी के 20 प्रतिशत स्कूल कंटेंनमेंट जोन में हैं और ये ऐसे इलाके हैं जहां ज्यादातर बच्चे बेहद गरीब परिवारों से आते हैं, जिनके पास स्मार्ट फोन की सुविधा नहीं है और ना ही टीवी का साधन है. जिससे दूरदर्शन पर पढ़ सके. ऐसे में इन क्षेत्रों के छात्र आज स्कूल खुलने के बाद भी स्कूलों में पढ़ाई करने से वंचित हैं.
संसाधनों के अभाव में शिक्षा से दूर
ग्रामीण इलाकों में बच्चों के पास फोन नहीं है और अगर है भी तो इंटरनेट की सुविधा नहीं है, जिस वजह से छात्र संसाधनों के अभाव में शिक्षा से वंचित हैं. उच्चतर कन्या शाला जंहागीराबाद की प्राचार्य उषा खरे ने बताया कि उनके स्कूल में 50 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जो ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित हैं. कई प्रयासों के बाद भी बच्चों को कक्षाओं से जोड़ पाना शिक्षकों के लिए चुनौती है. 'हमारा घर हमारा विधालय' अभियान के तहत शिक्षकों ने घर-घर जाकर कक्षा लगाने का प्रयास किया, लेकिन स्कूल कंटेंनमेंट जोन में है. इसलिए संक्रमण के खतरे के चलते हर बच्चे के घर जाना मुश्किल है. प्राचार्य उषा खरे का कहना है कि ये बच्चों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे ना तो ऑनलाइन कक्षाओं से जुड़ पा रहे हैं और ना ही स्कूल खुलने के बाद स्कूल में कक्षाओं का लाभ ले पा रहे हैं.
ऑनलाइन क्लास से जोड़ना चुनौतीपूर्ण