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उपचुनाव के रिजल्ट तय करेंगे BJP के नेताओं की राजनीतिक विरासत

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Published : Oct 30, 2020, 10:50 AM IST

मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के परिणाम बीजेपी के पुराने नेताओं का राजनीतिक भविष्य साफ करेंगे. नेताओं की राजनीतिक विरासत पिछले करीब 40 सालों से इन विधानसभा क्षेत्रों में चली आ रही है.

Political legacy of leaders
नेताओं की राजनीतिक विरासत

भोपाल। मध्यप्रदेश का ये उपचुनाव सरकार बनाने और बचाने के साथ-साथ उन नेताओं के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है. जिन नेताओं की राजनीतिक विरासत पिछले करीब 40 सालों से इन विधानसभा क्षेत्रों में चली आ रही है. कांग्रेस से भारतीय जनता पार्टी में आए नेताओं के चलते बीजेपी के इन मूल नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर संकट मंडराने लगा है. इस फेहरिस्त में डॉ गौरीशंकर शेजवार, जय भान सिंह पवैया, रुस्तम सिंह, दीपक जोशी, रामलाल रौतेल, लाल सिंह आर्य, जयंत मलैया के अलावा अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हैं और इन नेताओं का भविष्य तय होगा 10 नवंबर को, जब उपचुनाव के परिणाम सामने आएंगे.

नेताओं की राजनीतिक विरासत

उपचुनाव के परिणाम तय करेंगे नेताओं की राजनीतिक विरासत

पार्टी नेताओं की नाराजगी को लेकर भी बीजेपी को भितरघात का डर सता रहा है. हाटपिपलिया से पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे और शिवराज सरकार में मंत्री रहे दीपक जोशी की नाराजगी भी जगजाहिर है. हालांकि मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद वो पार्टी से संतुष्ट माने जा रहे हैं. इसी सीट से पूर्व विधायक तेज सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान किया था. हालांकि बाद में बीजेपी ने उन्हें साध लिया, तो वहीं मुंगावली में राव देशराज सिंह यादव, अनूपपुर में रामलाल रौतेला, ग्वालियर में पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया, मुरैना में पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह और गोहद से पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य, इसी सूची में शामिल हैं. हालांकि पार्टी का दावा है कि, सभी नेता संगठन के साथ कदम से कदम मिलाकर काम कर रहे हैं.

डॉ गौरीशंकर शेजवार

1977 में पहली बार जनता पार्टी से विधायक बने डॉ गौरीशंकर शेजवार तब से सांची में सक्रिय हैं. 6 बार से बीजेपी के टिकट से विधायक रह चुके हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में गौरीशंकर शेजवार ने अपने बेटे मुदित शेजवार को टिकट दिलाया था. हालांकि वो कांग्रेस प्रत्याशी प्रभुराम चौधरी से हार गए, लेकिन अब उपचुनाव में प्रभुराम चौधरी बीजेपी की तरफ से उम्मीदवार हैं और चौधरी की हार और जीत पर ही शेजवार परिवार के राजनीतिक भविष्य का फैसला होगा.

पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया

ग्वालियर में बीजेपी के सबसे पुराने नेता माने जाने वाले और राम मंदिर आंदोलन में शामिल पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ग्वालियर सीट से विधायक रहे हैं, सांसद भी रह चुके हैं. 2008 में चुनाव हारे थे, 2013 में जीते शिवराज सरकार में मंत्री रहे. हालांकि विधानसभा चुनाव- 2018 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और अब उनके ही पूर्व प्रतिद्वंदी प्रद्युम्न सिंह तोमर बीजेपी की तरफ से उम्मीदवार हैं. ऐसे में अब प्रद्युम्न सिंह तोमर की हार, जीत ही जय भान सिंह पवैया के राजनीतिक भविष्य का फैसला करेगी.

पूर्व मंत्री और रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी रुस्तम सिंह

मुरैना से विधायक रहे रुस्तम सिंह भी 2018 में चुनाव हार गए थे और आज अपने ही प्रतिद्वंदी ऐदल सिंह कंसाना के लिए काम कर रहे हैं. रुस्तम सिंह 2003 में जीते, 2008 में हारे, फिर 2013 में जीते शिवराज सरकार में मंत्री रहे और विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस के ऐदल सिंह कंसाना से चुनाव हार गए और अब जब कंसाना बीजेपी में शामिल हो गए हैं, तो उपचुनाव में उनके लिए ही वोट मांग रहे हैं. अब रुस्तम सिंह का भविष्य भी ऐदल सिंह कंसाना के चुनाव परिणाम पर टिका हुआ है.

पूर्व मंत्री और बीजेपी अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य

लाल सिंह आर्य भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पसंदीदा चेहरों में से माने जाते हैं. आर्य 2003 में गोहद से विधायक चुने गए थे. 2008 में चुनाव हारे, फिर 2013 में जीतकर शिवराज सरकार में मंत्री का कार्यभार संभाला. विधानसभा चुनाव- 2018 में हार के बाद अब अपने ही पुराने प्रतिद्वंदी रणवीर जाटव के लिए जनता से वोट मांगते नजर आ रहे हैं. लाल सिंह आर्य के राजनीतिक सफर का फैसला भी रणवीर सिंह जाटव के चुनावी परिणाम पर टिका है.

पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी

पिता की विरासत संभाले हुए दीपक जोशी हाटपिपलिया से 2008 और 2013 में चुनाव जीतकर विधायक रहे और शिवराज सरकार में मंत्री बनाए गए थे. यहीं से तेज सिंह सेंधव भी 1990 और 1998 में विधायक रह चुके हैं, लेकिन अब दोनों नेता कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए मनोज चौधरी के चुनावी परिणाम का इंतजार कर रहे हैं.

अनूपपुर से पूर्व विधायक रामलाल रौतेल

रामलाल रौतेल भी 1998 से चुनावी मैदान में रहे हैं. 2003 और 2013 में चुनाव जीतकर विधायक बने. लंबे समय से अनूपपुर में सक्रिय हैं और अब कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए बिसाहूलाल के लिए मैदान में डटे हुए हैं. इनका भी करीब 25 साल का सियासी सफर बिसाहूलाल के चुनाव परिणाम पर टिका है.

इसके अलावा भी बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता ऐसे हैं, जिनका राजनीतिक कद इन चुनाव परिणामों पर निर्भर करता है. जो शिवराज सरकार में मंत्री रह चुके हैं. जिनमें खासतौर से विंध्य क्षेत्र से आने वाले पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला, जबलपुर से अजय विश्नोई, रायसेन से रामपाल सिंह शामिल हैं. क्योंकि ये वही नेता हैं, जिन्हें कांग्रेस से आए नेताओं के कारण मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला है. ऐसे में इन नेताओं का राजनीतिक कद की विधानसभा चुनाव के परिणामों पर निर्भर करेगा.

बीजेपी नेताओं के भविष्य को लेकर पार्टी प्रवक्ता राहुल कोठारी का कहना है कि, संगठन में सभी के लिए उचित स्थान होता है. पार्टी हर नेता को सम्मान देती है और उपयोगिता के हिसाब से पार्टी उन नेताओं को संगठन में अलग-अलग सम्मानित स्थान प्रदान करती है.

उपचुनाव परिणामों पर नजर लगाए बैठे बीजेपी के मूल नेताओं के भविष्य को लेकर कांग्रेस का कहना है कि, बीजेपी खुद ही अंतर कलह से घिरी हुई है. बीजेपी के कई नेता खुले मंच से अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं. इसमें चाहे रुस्तम सिंह, गौरी शंकर शेजवार, दीपक जोशी, भंवर सिंह शेखावत, जय भान सिंह पवैया, अजय विश्नोई सबने अपने-अपने स्तर पर अपना विरोध जताया है और यही वजह है कि, पार्टी में अब अंदरूनी कलह सामने आने लगी है और उपचुनाव के परिणाम के बाद सब कुछ सामने आ जाएगा.

उपचुनाव के परिणामों को लेकर राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया का कहना है कि, वाकई ये उपचुनाव बीजेपी के कई नेताओं के राजनीतिक करियर का फैसला करेगा. क्योंकि जिन लोगों के कारण बीजेपी सरकार में आई है, वही लोग आज चुनावी मैदान में हैं. ऐसे में बीजेपी के पुराने नेता पार्टी से नाराज जरूर हैं, लेकिन संगठन स्तर पर सब को समझाइश दी गई है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कई बार इशारों-इशारों में नेताओं को समझा चुके हैं और रही बात संगठन की, तो सरकार के पास पर्याप्त स्थान होता है, जहां पर वो अपने नेताओं को चाहे सहकारी समितियां हो, निगम मंडल हो या अन्य ऐसे पद, जिनपर इन नेताओं को समाहित कर सकती है.

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