भोपाल।कहानी क्या है...गौर से देखिए इस तस्वीर को...तस्वीर खुद बयानी कर गई है. बच्चा इतने इत्मीनान के साथ किसकी गोदी में सो पाता है. भला...कौन है जिसके बगलगीर होकर तसल्ली से पढ़ पाता है. ठीक समझ रहे हैं आप. खाकी वर्दी में बैठे सूबेदार देवनारायण पाण्डे हैं. और बगल में बैठा उनका बेटा है. जैसे पुलिस की ड्यूटी का की तय वक्त नहीं, बिल्कुल वैसे ही पिता की ड्यूटी भी किसी तय समय की नहीं होती. तो सूबेदार साहब को जब मौका मिला तब जिम्मेदारी के अंदाज़ में ये रास्ता निकाल लिया. तो क्या हुआ कि ट्रैफिक की जिम्मेदारी में सड़क किनारे ही खुल गया बेटे का बस्ता. तो क्या हुआ कि सड़क किनारे सुस्ताने रखी गई बैंच पर ही बेटे को पढ़ाने बैठ गए सूबेदार साहब.
बेटा भी पिता के साथ इत्मीनान से बैठा :स्कूल यूनिफार्म में पिता के साथ बैंच पर बैठा बेटा भी इत्मीनान में है कि पिता के साथ गुजारने वक्त तो मिला. पुलिस के साथ पिता की भी ड्यूटी. पुलिस जैसी मुश्किल नौकरियों में अक्सर ये कहा जाता है कि पिता की बच्चों से मुलाकात नहीं होती. लेकिन रास्ता निकाला जाता है. रास्ते पर बनाया गया ये वही रास्ता है कि कैसे ड्यूटी करते हुए भी दूसरी जरूरी ड्यूटी निभा ली जाए. इस एक तस्वीर में जज्बात भी हैं. जज़्बा भी. और वो कंधे भी, जिन पर कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी भी है. और बेटे की ख्वाहिशें भी.